अशोक कुमार चौहान।
तुलसी पूजने वाले कितने शुद्ध देशी हैं? हिन्दू हैं?
क्रिसमस को अंग्रेज़ी त्योहार बताकर तुलसी पूज डालने की संस्कृति वालों ने कभी अपनी चारपाई के नीचे देखा भी है ध्यान से?
हम सब अपने ज्यादातर काम अंग्रेज़ी कलेंडर से करते हैं। आग के चक्कर काटकर होने वाले शादी-ब्याह की तारीख अंग्रेज़ी की ही होती है। चाँद की तिथियां कितनी अप्रामाणिक और उलझाव भरी होती है ये सब जानते हैं। पोथी-पत्रों और पंचांगों से सिर्फ धर्म का कारोबार ही चलता है, घर का हिसाब-किताब नहीं।
देश का लगभग सारा सरकारी काम-काज अंग्रेज़ी पद्धति पर हो रहा है। पुलिस, सेना, कोर्ट और कचहरी अंग्रेज़ी ढंग की हैं। कारखानों दुकानों में लगी मशीनों के ज्यादातर आविष्कारक अंग्रेज़ या यूरोपीय हैं। हमारे कपड़े, मकान, रसोई और गैस चूल्हा और फर्नीचर, बेड, सोफे का डिज़ाइन अंग्रेज़ी है।
मोबाइल और घड़ी अंग्रेज़ी है। घर मे लगे पंखे, एसी, टीवी, कम्प्यूटर और रोशनी करने वाले बल्ब अंग्रेज़ी हैं। लिखा-पढ़ी और गप्पबाज़ी का सामान अंग्रेज़ी है। सब्ज़ी लाने का थैला और ससुराल में कपड़े-लत्ते लाने-ले जाने का पहियेदार बक्सा अंग्रेज़ी है। सड़कों पर दौड़ रही बाइक, कार, ऑटो और देवी के मंदिर जाने की बस अंग्रेज़ी है।
अस्पतालों की मशीने अंग्रेज़ी हैं। स्वस्थ होने के लिए ली जा रही बहुत सी दवाइयां अंग्रेज़ी हैं। ढोंगी बाबाओं और बाबियों के प्रवचन में लगे माइक और लाउडस्पीकर अंग्रेज़ी है।
लेकिन क्रिसमस और नए साल के मौके पर इन तमाम चीजों के नीचे दबी हुई हिंदू आत्मा चिल्लाकर कहती है कि आइये तुलसी की पूजा करें। नए साल का विरोध करें।
मेरे हिसाब से यहां सिर्फ एक ही चीज़ बिल्कुल शुद्ध मिलती है-
और वो है- बेवकूफ़ी और पाखण्ड।
व्हाया डॉ. राकेश पाठक की वॉल से।
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