डॉ.वेदप्रताप वैदिक।
सर्वोच्च न्यायालय ने हमारे नेताओं पर फिर बड़ी मेहरबानी कर दी। बिड़ला और सहारा-समूहों से जब्त किए गए कागजात को उसने प्रमाण मानने से इनकार कर दिया। उन कागजों में चार-पांच मुख्यमंत्रियों, अनेक पार्टियों के नेताओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी था।
प्रशांत भूषण ने एक याचिका लगाकर मांग की थी कि इन नेताओं के भ्रष्टाचार की जांच हो लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उनके तर्क को रद्द कर दिया। अदालत ने पूछा कि डायरी के इन खुले कागजात में यद्यपि नेताओं के नाम लिखे हैं, उन्हें दी गई राशियां लिखी गई हैं, देने की तारीख लिखी गई हैं और देनेवालों के नाम भी लिखे गए हैं, तब भी उन्हें प्रमाण कैसे मान लिया जाए? ऐसे नाम और राशियां वगैरह तो कोई भी लिख सकता है और जिसको चाहे, उसे फंसा सकता है, बदनाम कर सकता है, अदालत में घसीट सकता है। इसके अलावा यह प्रमाण भी होना चाहिए कि किसी नेता ने रिश्वत खाई है तो किस काम के लिए खाई है? उसने रिश्वत लेकर कौनसा गलत काम किया है? किसी कारण को सिद्ध करने के लिए कार्य होना भी जरुरी है। जब कोई कार्य ही नहीं है तो उसका कारण कैसे हो सकता है?
अदालत का यह तर्क अपने आप में अकाट्य है और इस तर्क के आधार पर वह किसी नेता को जेल में नहीं बिठा सकती लेकिन क्या हमारे जजों को यह पता नहीं कि बिना सेठों से पैसा लिए कोई नेता पार्षद का चुनाव भी नहीं लड़ सकता। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनना तो बिल्कुल असंभव है।
मान लिया कि हमारे नेताओं ने सहारा और बिड़ला समूह से रिश्वत लेकर उनके लिए कोई गैर-कानूनी काम नहीं किया होगा लेकिन यदि ऐसा है तो वे खुले-आम क्यों नहीं कहते कि हां, हमने पैसा लिया है और आगे भी लेते रहेंगे। पैसे के बिना, भला, राजनीति कैसे चलेगी? और यदि इन नेताओं ने उन दोनों समूहों से सचमुच पैसा नहीं लिया होता तो वे कुछ तो मुंह खोलते। उन्हें कुछ तो गुस्सा आता लेकिन एक भी नेता को गुस्सा नहीं आया। इसका मतलब क्या हुआ? यही न, कि उन्होंने पैसा लिया है।
क्या इतनी-सी बात हमारे महान जजों को समझ में नहीं आई? वे जांच बिठा देते तो नेताओं के नाम पर लग रहा कीचड़ भी धुल जाता और अदालत की इज्जत भी बनी रहती। यही बात हवाला के मामले में हुई थी। उसमें कई नेता फंसे थे लेकिन बोफोर्स में अकेले प्रधानमंत्री राजीव गांधी फंस गए थे। अदालत और सरकार ने उन्हें भी बचा लिया था, लेकिन जनता ने उनका हिसाब चुकता कर दिया था। नरेंद्र मोदी भाग्यशाली हैं कि बिड़ला-सहारा की नांव में वे अकेले नहीं है। दूसरे सभी हैं। वे कहते हैं कि न तो हम डूबेंगे और न ही तुमको डूबने देंगे।
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