14 सीटों पर दिल्ली का दखल, उठापटक जारी

खास खबर            Oct 10, 2023


मल्हार मीडिया भोपाल।

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 की तारीखें तय होते ही सभी पार्टियों ने कमर कस ली है। सोमवार को बीजेपी ने प्रदेश की 57 सीटों पर अपने दावेदारों की सूची जारी कर दी है। इसमें मालवा-निमाड़ की 14 सीटें शामिल हैं, लेकिन कुछ सीटों पर अभी भी उठापटक की स्थिति बनी हुई है।

मध्यप्रदेश में 57 प्रत्याशियों की चौथी सूची जारी होने के साथ ही मालवा- निमाड़ की ज्यादातर सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का परिदृश्य स्पष्ट हो गया है। अब सब की निगाहें यहां के उन 10 निर्वाचन क्षेत्र पर है, जहां से पार्टी के टिकट को लेकर बहुत मारामारी है।

इनमें से कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां वर्तमान विधायकों का मजबूत विकल्प तलाशने में पार्टी को पसीना आ गया है। वहीं, कुछ सीट पर पार्टी के बड़े नेताओं की रुचि है। ऐसा माना जा रहा है कि प्रदेश के नेताओं को दरकिनार कर इनमें से ज्यादातर टिकट दिल्ली की दखल से ही तय होंगे।

महू विधानसभा से अभी मध्यप्रदेश सरकार की कबीना मंत्री उषा ठाकुर विधायक हैं। पार्टी यह तय नहीं कर पा रही है कि यहां से ठाकुर को ही एक बार फिर मौका दिया जाए या किसी नए चेहरे को सामने लाया जाए। इस बार महू में स्थानीय चेहरे को मौका दिए जाने की बात प्रमुखता सेट सामने आई है और स्थानीय नेता पार्टी के दिग्गजों के सामने भी दमदारी से यह बात रख चुके हैं। ठाकुर पर बड़ा आरोप स्थानीय नेताओं को अनदेखा करने और क्षेत्र के विकास में रुचि नहीं लेने का है।

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और संघ के दिग्गज भैया जी जोशी से नजदीकी ठाकुर का मजबूत पक्ष है और इसी के चलते हुए अपनी उम्मीदवारी को लेकर आश्वस्त हैं। एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप के चलते ठाकुर की अपने पुराने निर्वाचन क्षेत्र इंदौर तीन में भी वापसी हो सकती है। महू से भाजपा के टिकट पर उम्मीदवारी के लिए एक मजबूत दावा मध्यप्रदेश युवा आयोग के अध्यक्ष डॉ निशांत खरे का भी है।

इंदौर 5 विधानसभा से लगातार चार चुनाव जीत चुके महेंद्र हार्डिया का इस बार पार्टी के ही कुछ नेताओं ने विरोध किया है। लेकिन यह बात भी अलग-अलग स्तर से सामने आई है कि यहां कांग्रेस की चुनौती से हर्डिया ही निपट सकते हैं। दो महीने पहले तक उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर माने जा रहे हार्डिया मजबूत विकल्प न मिलने के कारण अभी भी दौड़ में सबसे आगे हैं। उनके विकल्प के रूप में बीजेपी के नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे और मध्यप्रदेश युवा आयोग के अध्यक्ष डॉ निशांत खरे के नाम सामने आ रहे हैं।

धार विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा यहां से विधायक हैं, वे तीन चुनाव यहां से जीत चुकी हैं और चौथी बार उम्मीदवारी को लेकर आश्वस्त हैं। पार्टी के पास इस बार उन्हें लेकर अच्छा फीडबैक नहीं था। इसी कारण अभी तक धार की सीट पर फैसला नहीं हो पा रहा है। इस सीट पर भी उषा ठाकुर की निगाहें हैं।

सूत्रों के अनुसार , वर्मा ने पत्नी की उम्मीदवारी तय करवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है और उन्हें उम्मीद है कि आखरी में उनकी बात मान ली जाएगी। यहां से एक अन्य दावेदार कुछ महीने पहले तक भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष रहे राजीव यादव भी हैं।

उज्जैन उत्तर विधानसभा सीट पर 1998 को छोड़ 1990 से लेकर 2018 तक बीजेपी के पारस जैन चुनाव जीतते रहे हैं। इस बार जैन की उम्मीदवारी को लेकर संशय की स्थिति है। बढ़ती उम्र भी जैन का नकारात्मक पक्ष है। उज्जैन नगर निगम में सभापति सोनू गहलोत यहां पर जैन का स्थान ले सकते हैं।

जावरा विधानसभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया की पूरी कोशिश है कि पिछले चुनाव में एक बागी उम्मीदवार के मैदान में होने के बावजूद कांग्रेस के टिकट पर बहुत कम अंतर से हारने वाले केके सिंह कालूखेड़ा को इस बार बीजेपी से मौका मिले। वर्तमान विधायक राजेंद्र पांडे को पार्टी के कुछ दिग्गज नेता फिर से मैदान में देखना चाहते हैं। वैसे पांडे को लेकर अच्छा फीडबैक नहीं है और इसी के चलते अभी तक जावरा सीट पर पार्टी निर्णय नहीं ले पा रही है।

आलोट विधानसभा मामला कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत के कारण लटका हुआ है। गहलोत यहां से अपने बेटे जितेंद्र गहलोत को फिर मैदान में लाना चाहते हैं, जबकि उनकी स्थिति ठीक नहीं है। इस सीट पर उज्जैन के पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय के साथ ही वर्तमान सांसद अनिल फिरोजिया की भी नजर है।

महिदपुर से वर्तमान विधायक बहादुर सिंह की स्थिति बहुत खराब है। पार्टी में तो उनका विरोध है ही, इस विधानसभा क्षेत्र के नागरिक भी उनसे बहुत रुष्ट हैं। जातिगत समीकरणों के चलते यहां से इस बार भी सोंधिया समाज के ही किसी व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया जा सकता है। यहां का मामला भी दिल्ली की दखल से ही निपट पाएगा।

नीमच सीट को लेकर बीजेपी में ही असमंजस की स्थिति है। पार्टी के एक बड़े वर्ग का कहना है कि वर्तमान विधायक दिलीप सिंह परिहार को ही फिर मौका मिलना चाहिए। वहीं कुछ नेताओं ने बीजेपी के जिला अध्यक्ष पवन पाटीदार और वरिष्ठ नेता महेंद्र भटनागर का नाम आगे बढ़ाया है।

गरोठ के वर्तमान विधायक देवीलाल धाकड़ को संघ की पसंद के चलते पिछली बार टिकट मिला था। लेकिन इस बार पार्टी उन्हें मौका देने के पक्ष में नहीं है। जातीय समीकरणों के चलते इस सीट से मंदसौर के सांसद सुधीर गुप्ता को भी उम्मीदवार बनाया जा सकता है।

खरगोन सीट को लेकर भी बीजेपी के दिग्गजों की अलग-अलग राय है। स्थानीय स्तर से पार्टी के जिला अध्यक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ और पूर्व विधायक बालकृष्ण पाटीदार के साथ ही बीजेपी में संगठन मंत्री रहे श्याम महाजन के नाम आगे बढ़े थे। राठौड़ खुद की उम्मीदवारी को लेकर बहुत आश्वस्त हैं, वहीं सेठ के नाम से मशहूर पाटीदार के समर्थक भी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। पार्टी के पास इस सीट को लेकर अलग-अलग फीडबैक है और इसी कारण फैसला नहीं हो पा रहा है।

 



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