मल्हार मीडिया ब्यूरो।
मध्यप्रदेश के डॉक्टर हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर के अपराध शास्त्र और न्यायिक विज्ञान विभाग में डायटम रिसर्च यूनिट को उनके इंडो-फ्रेंच प्रोजेक्ट (सेफिप्रा) पर काम करते हुए जर्मनी से एक अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट प्रदान किया गया है।
यह पेटेंट फ्लोरोसेंस डाई युक्त डायटम नैनो-फिंगरप्रिंट पावडर के संश्लेषण पर है जो काफी सस्ता, कम हानिकारक, पर्यावरण के अनुकूल और अत्यधिक प्रभावी है। प्रोजेक्ट की प्रमुख अन्वेषक और सहायक प्राध्यापक डॉ. वंदना विनायक डॉक्टर हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर के अपराध शास्त्र और न्यायिक विज्ञान विभाग में पिछले एक दशक से अधिक समय से शैवाल डायटम के क्षेत्र में अनुसंधान कर रही हैं.
उन्होंने बताया कि फोरेंसिक मामलों की जांच में फिंगरप्रिंट महत्वपूर्ण भौतिक साक्ष्य होते हैं लेकिन मौजूदा फ़िंगरप्रिंट पाउडर ऐसे रासायनिक यौगिकों से मिलकर बने होते हैं जो मानव स्वास्थ और पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं। डायटोमाइट पाउडर गैर-विषाक्त, अपेक्षाकृत किफायती है और विभिन्न सतहों पर फ़िंगरप्रिंट को बिना उनकी विशेषताओं को नुकसान पहुंचाए हुए विकसित करता है।
उन्होंने बताया कि इस पाउडर के विकास में उनके साथ शोध छात्रों अंकेश अहिरवार, वंदना सिरोटिया, प्रियंका खंडेलवाल और गुरप्रीत सिंह और छात्रा उर्वशी सोनी ने महत्ववपूर्ण भूमिका निभाई है. इसके अलावा साहित्य समीक्षा पर भी कई विद्यार्थियों ने काम किया है।
इस तरह काम करेगा पावडर
फ्लोरेसेसेंट डायटम पाउडर की कार्यप्रणाली के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने बताया कि इसमें एक पॉली लिंकर के साथ एक फ्लोरोसेंट डाई और डायटम फ्रस्ट्यूल्स (डायटोमाइट) को क्रिया करके विभाग की डायटम लैब में बनाया गया है।
पाउडर भौतिक रूप से सतह पर पसीने में मौजूद पदार्थों के साथ रासायनिक क्रिया करके चिपक जाता है और फिर प्रतिदीप्ति फोटोग्राफी की मदद से विकसित उंगलियों के निशान की उच्च गुणवत्ता के साथ फोटो खींची जा सकती है।
पाउडर में उच्च कंट्रास्ट, प्रकृति के लिए गैर-विनाशकारी, अत्यधिक संवेदनशीलता, नवीनता और कई अन्य उन्नत विशेषताएं होने के कारण न्यायिक विज्ञान के क्षेत्र में यह अग्रणी योगदान देने वाला उत्पाद साबित होगा.
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