डॉक्टर रामावतार शर्मा ।
अक्सर देखा जा रहा है कि मामूली से बुखार या फिर गले में खराश होने के साथ ही लोग पैरासिटामोल, एजिथ्रोमाइसिन और कोई न कोई दर्द निवारक दवा का तुरंत सेवन कर लेते हैं। यहां पर रोगी और दवा विक्रेता दोनों ही अत्यंत नासमझी का काम कर रहे होते हैं। बात आगे और कष्टदायक हो जाती है जब कोई 50 प्रतिशत से भी ज्यादा चिकित्सक भी यही सलाह देते नजर आते हैं।
कितने ही डॉक्टर मोच, खरोंच, यहां तक कि छींक आने तक में एंटीबायोटिक्स लिख देते हैं। इसके अलावा कितने ही रोगी अपने डॉक्टर पर हर बीमारी में एंटीबायोटिक लिखने का दबाव डालते हैं और ऐसा न करने पर नाराज होते हैं या फिर किसी दूसरे चिकत्सक के पास जाकर एंटीबायोटिक्स लिखवा लेते हैं।
इस तरह का व्यवहार हमारे चारों तरफ दानवों की एक अदृश्य सेना खड़ी कर रहा है जिसके कारण किसी का भी जीवन खतरे में पड़ सकता है। यह दानव प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका लांसेट के अनुसार सन 2922 में 40 लाख 95 हजार लोगों को निगल गया । निगले तो इसके द्वारा और अधिक गए हैं पर हर मृत्यु का पंजीकरण संभव नहीं है।
स्वाभाविक सवाल उठता है कि यह मौत रूपी दानव है कौन? इस दानव का नाम है एएमआर यानि एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस जिसका आशय है एंटीबायोटिक के प्रभाव में बहुत बड़ी कमी। इस स्थिति में आपकी विश्वासपात्र एंटीबायोटिक बेअसर हो जाती है, बैक्टीरिया रोग को बढ़ाता रहता है, चिकित्सक असहाय हो जाते हैं और एक सामान्य सी बीमारी में भी कोई रोगी श्रेष्ठ चिकित्सा के बावजूद बचाया नहीं जा सकता।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस समस्या को मानव जीवन पर होने वाले दस प्रमुख खतरों में से एक माना है और 18 नवंबर से 24 नवंबर के दिनों को एंटीमाइक्रोबियल अवेयरनेस वीक ( सूक्ष्म जीवविरोधी तत्व जागरूकता सप्ताह ) घोषित किया है। सिंगापुर ने एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस कोऑर्डिनेशन कमेटी का गठन कर इनके अनुचित उपयोग के बारे में जागृति फैलाने का अभियान प्रारंभ किया है।
एंटीमाइक्रोबियल में बैक्टीरिया,वायरस, परजीवी और फंगस को नष्ट करनेवाली दवाएं आती हैं जिनमें सबसे व्यापक उपयोग या दुरुपयोग एंटीबायोटिक्स का होता है।
एंटीबायोटिक के प्रति रेजिस्टेंस यानि प्रतिरोध होने का मुख्य कारण उसका आधा अधूरा और अनावश्यक उपयोग है जिसमें बैक्टीरिया इस तरह से परिवर्तित हो जाता है कि यह तत्व उसके विरुद्ध प्रभावहीन हो जाता है।
बीमार का उपचार अति कठिन हो जाता है और काफी मामलों में मृत्यु भी हो जाती है।
सही निदान के बाद भी प्रभावहीन उपचार के कारण होने वाली मृत्यु बेहद पीड़ा जनक होती है। उपयुक्त प्रभावकारी एंटीबायोटिक के अभाव में सामान्य रोग भी कैंसर जैसा खतरनाक हो जाता है। चूंकि इन हालातों में कोविड 19 की तरह अल्प अवधि में मौतें नहीं होती इसलिए लोग अधिक संज्ञान नहीं लेते हैं परंतु लंबे समय में इस कारण से काफी लोग मारे जाते हैं इसलिए एक जागरूकता अभियान की आवश्यकता है।
अधिकतर लोग मानते हैं कि एंटीबायोटिक दुरुपयोग करने से व्यक्ति विशेष का शरीर ही प्रभावित होता है परंतु वास्तविकता बिल्कुल दूसरी है। इस दुरुपयोग से व्यक्ति के शरीर नहीं बल्कि बैक्टीरिया में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जिसके कारण वह एंटीबायोटिक से मरता नहीं है। ऐसा बैक्टीरिया किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है और जानलेवा बन जाता है।
इस तरह से यदि एक व्यक्ति एंटीबायोटिक का दुरुपयोग करता है या फिर उसको बिना वास्तविक आधार के एंटीबायोटिक की सलाह चिकित्सक द्वारा दी जाती है और उसके शरीर में उपस्थित कोई बैक्टीरिया एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है तो यह बैक्टीरिया संक्रमण द्वारा किसी भी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रविष्ट हो कर उसके जीवन को खतरे में डाल सकता है।
इस तरह से एक व्यक्ति पर होने वाले एंटीबायोटिक दुरुपयोग का खामियाजा लाखों लोगों को भुगतना पड़ सकता है।
चूंकि बैक्टीरिया वायरस की तरह त्वरित गति से संचारित नहीं होते हैं तो इस तरह से होने वाली मौतों पर जन जागरण नहीं होता है।
अधिकतर चिकित्सक खुद बिना वजह एंटीबायोटिक की सलाह देते रहते हैं तो फिर लोगों में जागृति कैसे फैलेगी ? एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक दीमक है है जो हर तरफ फैल कर लाखों लोगों को हर वर्ष मार रहा है इसलिए एंटीबायोटिक उपयोग का निर्णय ठोस आधार पर ही होना चाहिए वरना आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की जीवन रक्षक खोज प्रभावहीन होती जायेगी।
ध्यान रहे कि एक नई एंटीबायोटिक विकसित करना अति कठिन कार्य है। दशकों में कोई एक नई एंटीबायोटिक विकसित होती है और उसमें भी बहुत बड़ा धन खर्च होता है इसलिए प्रारंभिक वर्षों में बहुत महंगी होती है।
गले और त्वचा आदि के रोग मुख्यतया एलर्जी या वायरस से होते हैं जिनमें 90 प्रतिशत मामलों में एंटीबायोटिक का कोई उपयोग नहीं होना चाहिए परंतु चंद अपवादों को छोड़ कर कर हर रोगी एंटीबायोटिक खा रहा है। यह प्रवृत्ति घातक है, इस पर नियंत्रण होना चाहिए वरना कोई न कोई व्यक्ति कहीं न कहीं अपने जान गंवाता रहेगा क्योंकि ऐसा करके हम रेसिस्टेंट बैक्टीरिया रूपी एक दानव विकसित कर रहे हैं।
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