मध्यप्रदेश कर्नाटक गुजरात नहीं है, शिवराज तो शिवराज ही हैं

खास खबर            Oct 01, 2023


ममता मल्हार।

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मध्यप्रदेश कर्नाटक गुजरात नहीं है, शिवराज तो शिवराज ही हैं

ममता मल्हार।

पिछले दिनों भोपाल के जंबूरी मैदान में हुए भाजपा के कार्यकर्ता सम्मेलन के बाद यह कयास और अटकलें मीडिया में तेज हो गईं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को नजरअंदाज कर रहे हैं।

ठीक उसी दिन जारी हुई भाजपा प्रत्याशियों की सूची से इन कयासों को बल मिला कि शिवराज के सामने चुनौतियां खड़ी करने की कोशिश की जा रही है। कहने को कहा जा रहा है कि पार्टी मध्यप्रदेश में गुजरात और कर्नाटक फार्मूला अपनाने के मूड में है।

इन तमाम कयासों, संभावनाओं के बावजूद अब यह भी कहा जा रहा है कि गुजरात और कर्नाटक पैटर्न पर मध्यप्रदेश में चुनाव लड़ना भाजपा के लिए फायदे का सौदा साबित नहीं होगा। ऐसे में अगर 18 सालों से पार्टी की सरकार को संभाले शिवराज को कॉर्नर किया जाता है तो यह भाजपा के लिए और भी घातक साबित होगा।  

दूसरी सूची जारी होने के बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा होने लगी है कि मप्र में भाजपा कर्नाटक की गलती दोहरा रही है। यहां पर 18 साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को ऐसे साइड करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि मध्यप्रदेश में शिवराज आज भी भाजपा का बड़ा, प्रभावी और स्थायी चेहरा हैं। इस चेहरे में फेरबदल करना भाजपा को तो भारी पड़ सकता है। पर शिवराज ने अपने व्यवहार और काम से जनता के बीच जो छवि बनाई है, जो भावनात्मक कनेक्शन जनता से जोड़ा है उसके कारण उनके प्रति सिंपैथी लहर भी बढ़ेगी, ऐसे में पार्टी चाहकर भी उन्हें नजरअंदाज करके भी नहीं कर पाएगी।

शिवराज की खासियत है कि जब भी उन्हें साईड लाईन करने की कोशिश की जाती है या उन पर संकट के बादल मंडरात हैं वे जनता के बीच जाकर ओवरएक्टिव होकर और ज्यादा पब्लिक कनेक्टिविटी बढ़ा लेते हैं। इसका सबससे बड़ा उदाहण है पिछले साल संसदीय बोर्ड से उनका हटाया जाना और उसके बाद शिवराज का 24 घंटे 7 दिन के मोड में एक्टिव हो जाना।

हालांकि चौथा टर्म पिछले तीन टर्म से कई मायनों में अलग रहा है बावजूद इसके शिवराज आज भी जनता की पहली पसंद बने हुए हैं।

पब्लिक फीडबैक पर नजर डालें तो कहा जाता है कि शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं। उनकी छवि एक दयालु, करुणामयी और जनसेवा के लिए समर्पित नेता की है। उनकी व्यक्तिगत सादगी और जनता के बीच उनकी पहुंच उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है।

गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने अभी तक 79 प्रत्याशियों की सूची जारी की है। दूसरी सूची में जिस तरह केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों सहित मप्र के वरिष्ठतम नेताओं को टिकट दिए गए उससे जाहिर होता है कि तीन चुनाव शिवराज सिंह के चेहरे पर लड़ चुकी भाजपा इस बार कुछ अलग प्रयोग करने के मूड में है।

वैसे तो भाजपा प्रदेश में डबल इंजन सरकार का दावा करती रही है लेकिन पिछले कुछ दिनों से जो दृश्य सामने आ रहे हैं उससे शिवराज को अलग-थलग किए जाने की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी हैं। लेकिन शिवराज इन सब कयासों, चर्चाओं से दूर जनता के बीच व्यस्त हैं।

कार्यकर्ता सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में उनके नाम का उल्लेख न होने को लेकर यह कयास ज्यादा जोर पकड़ा, पर सवाल यह उठता है कि उस दौरान पीएम मोदी ने ऐसे कितने नेताओं के नाम ले लिए कि शिवराज कॉर्नर होते दिखने लगे? स्थिति यह कि उस दिन जो मंच पर थे उन्हें भी अंदाजा नहीं था कि केंद्र की राजनीति और सरकार में पहुंचने के बाद उन्हें फिर विधानसभा चुनावों के मैदान में कुदा दिया जाएगा।

माना जा रहा है कि प्रदेश में चुनाव के ऐन पहले लीडरशिप की कमी दिख रही है। गुटबाजी का खतरा सिर पर अलग मंडरा रहा है। वहीं, कांग्रेस लगातार 50% कमीशन का दाग भाजपा पर लगा रही है। गौरतलब है कि कर्नाटक में भी भाजपा सरकार पर 50% कमीशन के आरोप कांग्रेस ने लगाए थे।कुछ महीने पहले कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए थे। यहां पर भाजपा सत्ता में थी और विपक्षी दल कांग्रेस सीएम बसवराज बोम्मई पर कई आरोप मढ़ रहा था।  चुनाव से ऐन पहले भाजपा ने सीएम बोम्मई को अलग-थलग कर दिया था, अब यही रणनीति मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान पर भी अप्लाई होते दिख रही है।

बोम्मई की तरह कर्नाटक में बीजेपी बीएस येदियुरप्पा को भी साइड कर दिया था। कर्नाटक में मुख्यमंत्री को नजरअंदाज करके पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चेहरे पर लड़ा गया था। मुख्यमंत्री बोम्मई विपक्षी दलों के आरोपों का प्रहार झेल रहे थे, वहीं अपनी भी पार्टी बीजेपी ने उन्हें अलग-थलग कर दिया था।

लेकिन मध्यप्रदेश में पार्टी के सारे नेता मुख्यमंत्री के साथ खड़े दिखते हैं चाहे बयानबाजी हो, प्रतिक्रिया हो या कोई और सवाल-जवाब। मध्यप्रदेश की जितनी भी लीडरशिप है वह शिवराज को अपना मुख्यमंत्री बताना नहीं भूलती। तमाम एजेंडों से परे यह एक अलग तरह रवैया है जो पार्टी लाईन पर सबके एक साथ चलने को साबित करता है।

मध्यप्रदेश के राजनीतिक माहौल पर जो भी तथ्यात्मक और मौलिक नजर रखता होगा वह यकीनन यह समझता है कि प्रदेश में एंटी इंकबेंसी जैसी कोई स्थिति नहीं है।

शिवराज भाजपा के वह नेता हैं जिनके कारण मध्यप्रदेश में 18 साल तक भाजपा सत्ता में रही है। 2018 का कठिन चुनाव भी उन्हीं के कारण मामूली अंतर से पार्टी हारी और फिर सरकार भी बनाई। इतना ही नहीं उपचुनाव में पूर्ण बहुमत की सरकार भी शिवराज के कारण बनी।

ऐसे में जिस तरह की संभावनाएं जताई जा रही हैं अगर भाजपा वाकई उस पैटर्न पर चल रही है तो मध्यप्रदेश में यह कामयाब नहीं होगा, क्योंकि मध्यप्रदेश गुजरात और कर्नाटक नहीं है। मध्यप्रदेश तो मध्यप्रदेश है और शिवराज तो शिवराज ही हैं। वे जितने जरूरी हैं उतनी ही मजबूरी भी हैं। ऐसे में शिवराज को लेकर किसी भी बदलाव के फैसले से पहले पार्टी कई एंगल से सोचेगी। क्योंकि इस चुनाव में भाजपा एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रख रही है। फिर विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव भी करीब ही हैं तो पार्टी कोई रिस्क उठाना नहीं चाहेगी कम से कम मध्यप्रदेश में।

 

 



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