भारतीय जनता पार्टी संसदीय बोर्ड से बाहर कई दिग्गज नेताओं को रखा गया है। लेकिन चर्चा में नाम है मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रिय मंत्री नितिन गडकरी का। तीसरा नाम जो चर्चा में है वह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का।
भाजपा संसदीय बोर्ड से बाहर रखे जाने पर कई तरह के कयास राजनीतिक गलियारों में लगाए जा रहे हैं। जिसमें मुख्य तर्क यह दिया जा रहा है कि इन तीन नेताओं को अब किनारे लगाने की तैयारी शुरू कर दी गई है।
इसके पीछे उदाहरण दिया जा रहा है अटल बिहारी बाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी का, जिन्हें उनके पीक समय में संसदीय बोर्ड से बाहर किया गया था।
एक कयास यह भी लगाया जा रहा है कि उसी समय से पार्टी में अघोषित तौर पर यह नियम भी बनाया गया था कि किसी मुख्यमंत्री को संसदीय बोर्ड में शामिल नहीं किया जाएगा। हालांकि शिवराज बावजूद इसके संसदीय बोर्ड में शामिल रहे।
चौथा और मजबूत तर्क जो दिया जा रहा है वह नजरअंदाज करने लायक नहीं है और वह तर्क यह है कि शिवराज योगी और गडकरी भाजपा में ऐसे मास लीडर बन चुके हैं जो लोकप्रियता के मामले में मोदी-शाह के आभामंडल युक्त भाजपाई न होकर जनता के बीच अपना एक स्वतंत्र औरा रच चुके हैं।
नितिन गडकरी का प्लानिंग के मामले में कोई जवाब नहीं।
योगी के दम पर उत्तरप्रदेश में भाजपा दूसरी बार एतिहासिक रूप से विधानसभा में जीती। इसके अलावा योगी पिछले 6 साल में एक ताकतवर मुख्यमंत्री और हिन्दूवादी छवि के नेता के रूप में उभरने में कामयाब रहे हैं।
शिवराज चौथी बार फिर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और कई जनोन्मुखी योजनाओं के कारण जनता में आज भी लोकप्रिय हैं।
हालांकि विधानसभा चुनाव में पार्टी की सीटें कम होने के कारण भाजपा मध्यप्रदेश में सरकार बनाने से चूक गई थी।
लेकिन जोड-जुगाड की सरकार भी शिवराज की कवायद का नतीजा थी और उस कवायद का परिणाम उनका चौथी बार मुख्यमंत्री बनना।
आज मध्यप्रदेश में कई नेगेटिव फैक्ट होने के बावजूद शिवराज के खिलाफ विपक्ष भी उस तरह आक्रामक नहीं हो पाता जैसे होना चाहिए। वाक्चातुर्य के मामले में उनका मुकाबला किसी से है नहीं। यही उनकी ताकत है।
शिवराज के पक्ष में जो सबसे बडा तथ्य जाता है वह है उनकी सरलता और पार्टी के प्रति समर्पित रवैया।
इसका उदाहरण शिवराज सिंह का आज का बयान है कि यदि पार्टी दरी बिछाने को भी कहेगी तो राष्ट्रहित में वह भी करूंगा।
नितिन गडकरी और योगी आदित्यनाथ की तरफ से भी अभी तक कोई ऐसी प्रतिक्रिया नहीं आई है जिससे कोई नकारात्मक संदेश पार्टी से बाहर जा सके।
हालांकि अनुशासन भाजपा संगठन की रीढ है और इससे बाहर कोई जा नहीं पाता।
कई काडर के अलावा अनुशासन अपने आप में भाजपा का बडा काडर है, जिसमें सब बराबर हैं।
यह तो वे तथ्य हैं जो कयासों और कार्यशैली पर कहे लिखे जा रहे हैं।
लेकिन गौर से देखा जाए तो काडर बेस्ड भाजपा संगठन में संसदीय बोर्ड में कुछ तकनीकी पहलू भी हैं जिनको नजरअंदाज किया जा रहा है।
इस पहलू को समझने के लिए यहां गौर करने लायक तथ्य यह है कि भाजपा के संविधान के मुताबिक संसदीय बोर्ड में पार्टी अध्यक्ष और 8 अन्य सदस्य संसदीय बोर्ड का हिस्सा रहे हैं। इनमें से एक संसद में पार्टी का नेता भी रहा है।
भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में बड़े बदलाव किए हैं। संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान को बाहर किए जाने की काफी चर्चा हो रही है।
इन नेताओं को बाहर किए जाने के अलावा भाजपा ने इस बार के संसदीय बोर्ड में कुछ नियम भी तय किए हैं।
भाजपा ने किसी भी मुख्यमंत्री को संसदीय बोर्ड में शामिल न करने का फैसला लिया है। इसके अलावा पार्टी के सिर्फ एक ही महासचिव को इसमें जगह दी गई है।
इससे पहले आमतौर पर दो महासचिवों को संसदीय बोर्ड में जगह दी जाती रही है।
संविधान के अनुसार पार्टी का अध्यक्ष ही संसदीय बोर्ड का चेयरमैन होगा और एक महासचिव को बोर्ड में मानद सेक्रेटरी के तौर पर रखे जाने की परंपरा है।
पार्टी के एक नेता के अनुसार बीते कई सालों से पार्टी में दो महासचिवों को बोर्ड में रखने की परंपरा रही है। इसमें से एक संगठन महासचिव भी रहा है।
इनमें से ही किसी एक को सचिव बनाया जाता रहा है। इस बार बीएल संतोष ही एकमात्र पार्टी महासचिव हैं, जिन्हें बोर्ड में एंट्री दी गई है।'
ध्यान देने लायक बात है महासचिव की चर्चा है ही नहीं।
पार्टी लीडर ने कहा कि यह भी एक परंपरा ही रही है कि सभी पूर्व अध्यक्षों, कुछ मौजूदा मुख्यमंत्रियों और राज्यसभा में भी पार्टी के नेता को इसमें शामिल किया जाए।
इससे पहले 2014 में जब भाजपा के संसदीय बोर्ड का पुनर्गठन किया गया था तो पूर्व अध्यक्षों अटल बिहारी वाजपेयी, एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी को हटा दिया गया था।
लेकिन तब भी एक मुख्यमंत्री और राज्यसभा में नेता को इसमें रखा गया था।
गौरतलब है कि नए बने संसदीय बोर्ड में 6 नए सदस्यों को एंट्री दी गई है।
इनमें बीएस येदियुरप्पा, इकबाल सिंह लाल पुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया शामिल हैं।
इसके अलावा नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी इसके सदस्य हैं।
बीजेपी के सूत्र यह दावा भी कर रहे हैं कि एक तरफ इस बोर्ड में चुनावी राज्यों के चेहरों को शामिल कर जातीय संतुलन साधने की कोशिश की गई है।
भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा इसके पदेन अध्यक्ष हैं और बीएल संतोष सचिव हैं। असम के पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल और ओबीसी मोर्चे के प्रमुख के. लक्ष्मण को भी एंट्री दी गई है।
वह तेलंगाना से आते हैं और माना जा रहा है कि अगले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है।
फिलहाल एक लाईन की कहानी यह है कि उपर लिखे गए नामों का फिलहाल कोई विकल्प भाजपा के पास है नहीं। लेकिन राजनीतिक गलयारों में कयासी घोडे कितने भी दौडाए जा सकते हैं।
बावजूद भाजपा का एक अटल सत्य यह भी है कि हमेशा से जमीनी चेहरों को आसमानी चेहरा बनाकर पेश करने के खेल में माहिर रही है।
लेखिका मल्हार मीडिया की संस्थापक संपादक हैं।
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