गणेश पांडे।
कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं साथ ही और लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो एक बार फिर पूरे देश में महिला आरक्षण का मुद्दा बनाया जाने लगा है।
चर्चा यह भी है कि विशेष सत्र में इस विधेयक को लोकसभा में फिर से प्रस्तुत किया जा रहा है।
सांसद और विधानसभा में महिलाओं की वर्तमान स्थिति को लेकर प्रस्तुत एक रिपोर्ट, जो यह कहती है कि महिलाओं का सांसद और विधानसभा में प्रतिनिधित्व कम होने लगा है।
वर्तमान राजनीति में महिलाओं की भागीदारी वैसी नहीं है, जैसी ढाई दशक पहले थी। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि महिलाओं की भागीदारी से राजनीतिक अपराधीकरण, भ्रष्टाचार और असुरक्षा को राजनीतिक क्षेत्र से बाहर किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में महिलाओं की समाज में भागीदारी तेजी से बढ़ रही है। जहां तक संसद के निचले सदन (Lower House-भारत में लोकसभा) की बात है तो महिला सांसदों के प्रतिशत के मामले में भारत विश्व में 193 देशों में 153वें स्थान पर है।
वर्ल्ड इकोनामिक फोरम जेंडर गैप रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत महिला राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में 18वें स्थान पर है। यह भी सत्य है कि सरकार और समाज में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी हेतु कदम उठाए हैं, परंतु यह पर्याप्त नहीं है।
राज्यसभा में लोकसभा से कम महिला प्रतिनिधित्व
भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) के आंकड़े के अनुसार: अक्तूबर 2021 तक महिलाएं संसद के कुल सदस्यों के 10.5% का प्रतिनिधित्व कर रही थीं।
17वीं लोकसभा के लिए देश ने सबसे अधिक 82 महिला सदस्य चुनकर भेजी थीं। सांसदों को सदन में प्रतिशत के रूप में देखें तो लोकसभा में 14.36% और राज्यसभा में 10% से अधिक महिला सदस्य हो गई हैं।
आज़ादी के बाद केवल 15वीं और 16वीं लोकसभा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में बढ़ोतरी देखने को मिली, जो इससे पहले 9% से कम रहती थी। भारत में सभी राज्य विधानसभाओं को एकसाथ देखें तो महिला सदस्यों (विधायकों) की स्थिति और भी बदतर है, जहां राष्ट्रीय औसत मात्र 9% है।
मप्र विधानसभा में घटी महिला विधायक संख्या
मध्य प्रदेश में भी महिला विधायकों की संख्या पिछले बार की तुलना में कम हो गई है। 15वीं विधानसभा में 21 महिला विधायक ही निर्वाचित हुईं जबकि पिछली विधानसभा में उनकी संख्या 32 थी।
जबकि तेरहवीं विधानसभा में मध्यप्रदेश में महिला विधायकों की संख्या 22 थी। देश की आजादी के बाद पिछले विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ है, जब 403 सीटों में से 47 पर महिला विधायक चुनी गईं। सही मायने में ये संख्या अभी भी काफी कम है।
ऐसा इसलिए क्योंकि आबादी के मामले में महिला और पुरुष दोनों लगभग बराबर ही हैं। वोट देने के मामले में भी महिलाएं पुरुषों के बराबर हैं। लेकिन जब विधायक बनने या किसी बड़े पद की बात आती है तो आधी आबादी की संख्या काफी कम हो जाती है। यही नहीं, राजनीतिक दलों के बड़े नेता जीत के फॉर्मूला बताकर महिलाओं के टिकट काट देते हैं।
मध्यप्रदेश विधानसभा में महिलाओं की स्थिति
विधानसभा महिला विधायक की संख्या
15 वीं 21
14 वीं 32
13 वीं 22
12 वीं 18
11 वीं 22
(सोर्स- विधानसभा वेबसाइट * मनोनीत महिला सदस्य शामिल नहीं )
लोकसभा में लगातार बढ़ रही है महिलाओं की भागीदारी
लोकसभा में 1952 से जनवरी 23 तक लगातार महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है। संसद में महिलाओं की भागीदारी संसद में बढ़ती हुई उनकी भागीदारी का आजाद भारत में महिला सशक्तिकरण का एक बेजोड़ नमूना है ।
लोकसभा महिला सांसदों की संख्या
17 वीं 82
16 वीं 68
15 वीं 64
14 वीं 52
13 वीं 52
12 वीं 44
11 वीं 41
( सोर्स- लोकसभा वेबसाइट )
12 साल बीतने से महिला आरक्षण विधेयक लंबित
महिला आरक्षण विधेयक, 2008 (108 वां संविधान संशोधन विधेयक) को राज्यसभा ने 9 मार्च 2010 को पारित किया था, लेकिन 12 साल बीतने के बाद भी यह लोकसभा से पारित नहीं हो पाया है। लोकसभा का कार्यकाल पूरा हो जाने की वज़ह से यह विधेयक रद्द हो जाता है। इस विधेयक में महिलाओं के लिये लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। सभी राजनीतिक दलों को सर्वसम्मति बनाते हुए महिला आरक्षण विधेयक को पारित करना चाहिये, जिसमें महिलाओं के लिये 33% आरक्षण का प्रावधान किया गया है। जब यह विधेयक कानून का रूप ले लेगा तो लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व स्वतः बढ़ जाएगा, जैसा कि पंचायतों में देखने को मिलता है।
शोधकर्ता ने लिखा राजनीतिक दलों का सहयोग कम
इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज की शोध छात्रा कविता पांडेय अपने शोध पत्र में लिखा है कि भारत का इतिहास इस बात का गवाह है कि आज तक महिलाओं की राजनीति में भूमिका को लेकर राजनीतिक दलों से बहुत कम सहयोग मिला है। राजनीतिक दल महिला भागीदारी को सुनिश्चित करने के प्रश्न पर मौन है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण महिला आरक्षण विधेयक को संसद और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है, इसे पारित कराने में राजनीतिक पार्टियों का रुख अत्यंत निराशाजनक रहा है।
राजनीतिक दलों का माहौल अनुकूल नहीं
राजनीतिक दलों का माहौल भी महिलाओं के अनुकूल नहीं है, उन्हें पार्टी में अपनी जगह बनाने के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। आजादी के 75 साल बाद भी पुरुषवादी सोच सभी राजनीतिक दलों की राजनीति में हाबी है। परिणामतः महिलाएं राजनीति की ओर उन्मुख नहीं होती और इस ओर जो भी उन्मुखी होती हैं उन्हें विधिक प्रकार से हतोत्साहित किया जाता है। जैसे व्यक्तिगत लांछन, दुष्प्रचार, छलयोजित प्रसार। संभ्रांत परिवार की महिलाएं राजनीति में आने से पहले सौ बार सोचती है। जोड़ – तोड़ , बल प्रयोग और फर्जी मतदान, चुनाव में विजय प्राप्त करने के गुण बन गये है और महिलाएं इन सबसे दूर रहतीं हैं। इन सभी कार्यों में महिलाओं की शालीनता उन्हें इन कार्यों से विमुख करती है और वे नुकसान में रहती हैं।
महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि के उपाय
महिलाओं के लिए पंचायत में आरक्षण की अपार समानता को ध्यान में रखते हुए संसद में महिलाओं के लिए प्रस्तावित आरक्षण विधेयक को पारित किया जाना चाहिए। यह कदम राजनीति में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेगा।
राजनीतिक दलों में अधिक महिलाओं को टिकट दिया जाना चाहिए। दल में भी महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए ताकि महिलाओं को पर्याप्त संख्या सुनिश्चित की जा सके।
महिलाओं के राजनीति में जाने को लेकर जो सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिबंध व रूढ़िवादिता है इसे दूर किया जाना चाहिए।
महिला के राजनीति में अधिकतम भागीदारी से उनमें आत्मविश्वास व नेतृत्व क्षमता का विकास होगा। महिला सशक्तिकरण व राजनीतिक भागीदारी को बल मिलेगा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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