मल्हार मीडिया भोपाल।
मध्यप्रदेश सरकार ने इस बार एक ऐसा काम किया है जो इससे पहले शायद कभी नहीं किया था।
कर्मचारियों की वेतन विसंगति की समस्या को दूर करने के लिए गठित किए गए सिंघल आयोग द्वारा अपने काम खत्म करने और रिपोर्ट सरकार को सौंप देने के बाद, इस रिपोर्ट को एक्सेप्ट या रिजेक्ट करने के स्थान पर सरकार ने सिंघल आयोग का कार्यकाल बढ़ा दिया।
यह राज्य के लगभग 5 लाख शासकीय कर्मचारी का विषय है। मध्यप्रदेश शासन के अंतर्गत आने वाले समस्त 52 विभागों में लिपिक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी कार्यरत हैं जिनके वेतन में विसंगतियां बनी हुई हैं। लिपिकों के वेतन की विसंगति 1984 से चली आ रही है।
तृतीय श्रेणी में लिपिकों का वेतन सबसे ज्यादा था। लिपिकों का वेतन पटवारी, सहायक शिक्षक, ग्राम सेवक, ग्राम सहायक, पशु क्षेत्र चिकित्सा अधिकारी संवर्ग से ज्यादा था लेकिन धीरे-धीरे नीचे वाले सभी संवर्गों के वेतन बढ़ते गए और उनके पदनाम भी बदल गए।
आज की स्थिति में लिपिक तृतीय श्रेणी के संवर्गों में वेतन में निम्न स्तर पर है। लिपिक और चतुर्थ श्रेणी की ग्रेड-पे में केवल 100 रुपए का अंतर है। राजस्थान में लिपिकों का वेतनमान बढ़ाया जा चुका है। वहीं, सहायक ग्रेड-3 की ग्रेड-पे 1900 रुपए है, जबकि डाटा एंट्री आपरेटर की 2400 रुपए। पटवारी की ग्रेड-पे 2100 रुपए है।
कर्मचारियों की इस प्रकार की तमाम समस्याओं को दूर करने के लिए सिंघल आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने सभी पक्षों से बातचीत की। सभी बिंदुओं पर गौर किया और फिर अपने सुझाव सहित रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। विधि के अनुसार इसी के साथ आयोग का कार्यकाल समाप्त हो गया।
वित्त मंत्री श्री जगदीश देवड़ा ने भी आयोग की रिपोर्ट मिल जाने की पुष्टि की थी। अब सरकार को आयोग की रिपोर्ट पर विचार करना था और यह सुनिश्चित करना था कि आयोग की सिफारिश लागू करना है या नहीं।
ऐसे मामलों में यदि सरकार आयोग की रिपोर्ट से सहमत नहीं होती और उसे लगता है कि आयोग ने सही काम नहीं किया तो दूसरा आयोग गठित कर दिया जाता है परंतु इससे पहले इससे पहले आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाती है।
मध्य प्रदेश सरकार ने आयोग की रिपोर्ट तो सार्वजनिक नहीं की उल्टा आयोग का कार्यकाल 31 दिसंबर तक बढ़ा दिया। अर्थात कर्मचारियों की वेतन विसंगति के मामले में जो फैसला होने वाला था, अब कम से कम 6 महीने के लिए टल गया है।
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