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पत्रकार होना मानो पाप हो गया

मीडिया            Dec 04, 2018


आशीष एनके पाठक।

मीडिया काफी दिनों से सबके निशाने पर है....नेता हो या नौकरशाह...आम हो या खास...सब उपदेशक की भूमिका में हैं...पत्रकार होना मानो पाप हो गया हो.....

मैं इस बात से कतई इंकार नहीं करता कि पत्रकारिता का पाक पेशा मैला नहीं हुआ.....पर क्या इस गंदगी के लिए जिम्मेदार महज बेचारा पत्रकार ही है जो उसे इस घ्रणित नज़रिये से देखा जाने लगा.....

मोदी समर्थक, केजरीवाल को हीरो बनाने के लिए मीडिया को पानी पी पी कर कोसते रहे ....और अब जब मोदी दिख रहे हैं तो केजरीवाल मीडिया को बिका हुआ करार दे रहे हैं......

मतलब हमारे लिए करे तो अच्छा नहीं तो थू थू.....बेचारा पत्रकार ...जी हाँ, वो ही सक्श जो जंगल में लगी आग को भी ऐसे कवर करता हैं मानो उसका घर जल रहा हो.....दुर्घटना में घायल को मदद ना पहुचे तो ऐसे चिल्लाता हैं मानो उसके अपने की सांस जा रही हो...और हाँ इन सबके बीच कुछ ढीट नौकरशाहो की व्यंग्य भरी नजर कि उनके आराम में खलल डालने की गुस्ताखी क्यूँ की गई।

सब झेल कर किसी पर एहसान नहीं करता वो अपितु अपने काम को अंजाम देने की एक छोटी सी कोशिश करता है उतनी ही छोटी सैलरी में.....कुछ चालबाज नौकरशाह और नेताओ की राजनीति का शिकार वो कब बन जाता है इसका उसको कई बार तो एहसास ही नहीं होता.....फिर भी उसकी अधिकतम कोशिश यही रहती है की ग़लती से भी ग़लती ना हो......

हैरानी इस बात पर ज्यादा होती हैं कि पत्रकार की कमीज हर हाल में साफ़ रहे हमारी चाहे कैसी भी हो....ना ना मैं नेताओ की तरह दूसरे को मैला कर पत्रकार को उजला नहीं कहलवाना चाहता......पर दोस्तो पत्रकार आसमान से भेजे फरिश्ते नहीं होते...वे भी इसी समाज से आते हैं और वो कहावत हैं ना की बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए.....

आसपास के वातावरण का असर पत्रकार पर भी हुआ हुआ है ये एक कड़वा सच है पर हर पल महज आलोचना समाधान नहीं हो सकता।

पेड न्यूज़ है सही है पर उसे रोकेगा कौन....निसंदेह आप और हम ! केवल पत्रकार नहीं रोक सकता...ये सच है कड़वा सच उसके लिए आपको रास्ता खोजना होगा..घाव को महज कुरेदने से वो ठीक नहीं हो सकता उसे दवा से ही ठीक किया जा सकता है....तेजपाल गलत है तो रविश जी की सच्चाई नहीं छीनी जा सकती.....पेज थ्री की खबरों पर फोकस का आरोप झेलने वाले इसी मीडिया ने जेसिका के हत्यारों को अपनों की चुप्पी के बाद भी बेनकाब किया था....

ना बिका था मीडिया ना डरा था मीडिया... आपात काल में भी कुलदीप नायर जैसे लोगो की कलम की स्याही ना खरीदी जा सकी ना उड़ेली जा सकी....चाहे 2जी, कॉमनवेल्थ, वाड्रा जमीन हो या कोलगेट घोटाला हो.......जाने कितने अनगिनत किस्से हैं ऐसे..... बस तब उस पत्रकार के साथ अनगिनत लोगो का हौसला होता था कि वो लड़ जाता है व्यवस्था से भी और अपने मीडिया हाउस से भी....

मानता हूँ हमारी बिरादरी के कुछ लोगो से गलतियाँ हुई हैं पर उसके लिए पूरी जमात को सजा ना दीजिये.......ये बात पत्रकार के लिए कितनी नुकसान दायक है पता नहीं पर व्यवस्था के लिए घातक हैं .....लोकतंत्र के घोषित तीन स्तंभों की हालत किसी से छिपी नहीं है और अब यदि इस अघोषित चौथे स्तंभ का हाल भी ये हुआ तो दोस्तो परिवर्तन के लिए ये इंतजार कही इंतजार बन कर ना रह जाए.......

सोशल मीडिया के मित्रों, कम से कम आप तो समझिये इस व्यथा को....पत्रकार की आलोचना की गुंजाइश हैं पर सम्पूर्ण मीडिया पर सवाल?!!!!!

जय कलम......

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