मल्हार मीडिया डेस्क।
विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय’ (डीएवीपी) की नई ऐड रेट स्कीम का लगातार विरोध किया जा रहा है। कई बड़े ब्रॉडकास्टर्स नई पॉलिसी गाइडलाइंस से बचने का विकल्प तलाश रहे हैं। परिणाम स्वरूप, बड़े न्यूज नेटवर्क्स और जनरल ऐंटरटेनमेंट चैनल्स (GECs) जैसे- ‘नेटवर्क18’, ‘सोनी’, ‘स्टार इंडिया’, ‘टीवी टुडे’ और ‘जी ग्रुप’ आदि छह जुलाई को जारी हुई सूचीबद्ध चैनलों की लिस्ट से गायब दिखे। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) की नोडल एजेंसी (डीएवीपी) द्वारा नौ जून को ये नई गाइडलाइंस जारी की गई थीं।
अब सिर्फ वही चैनल्स इस लिस्ट में शामिल हैं, जिन्होंने इन गाइडलाइंस को लिखित में स्वीकार कर लिया है। 600 से ज्यादा न्यूज चैनल्स और 90 से ज्यादा जनरल ऐंटरटेनमेंट चैनल्स ने इन गाइडलाइंस को स्वीकार कर लिया है। नए रेट दिसंबर 2018 तक प्रभावी रहेंगे। इसके बाद केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय इस पॉलिसी की समीक्षा कर सकता है।
ब्रॉडकास्टिंग जगत का मानना है कि डीएवीपी द्वारा जारी किए गए नए रेट उनकी उम्मीदों से कम हैं। इस मामले में सरकार के साथ बातचीत में शामिल रहे एक बड़े मीडिया एग्जिक्यूटिव ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि डीएवीपी द्वारा जारी किए गए नए रेट काफी समय से लंबित पड़े हुए थे। इस मामले को लेकर सरकार के शीर्षस्थ अधिकारियों के बीच काफी माथापच्ची हुई थी। हालांकि डीएवीपी द्वारा जारी किए गए रेट ज्यादा अच्छे नहीं हैं, क्योंकि ब्रॉडकास्टर्स ज्यादा रेट चाहते थे।
डीएवीपी द्वारा नए ऐड रेट के लिए ‘कॉस्ट पर रेटिंग पाइंट’ (CPRP) 30 हजार रखा गया है। इंडस्ट्री के सूत्रों के मुताबिक, ‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (BARC) ने इस साल के शुरू में अपने यूनिवर्स अपडेट किए थे। ऐसे में ब्रॉडकास्टर्स ज्यादा रेट चाह रहे थे। यह संकेत दिए गए थे कि ‘कॉस्ट पर रेटिंग पाइंट’ 36 हजार से 38 हजार के बीच में होना चाहिए। इससे पहले सरकार की ओर से कॉस्ट पर रेटिंग पाइंट 23 हजार से 25 हजार के बीच में रखा गया था।
इस बारे में एक बड़ी एजेंसी के वरिष्ठ मीडिया प्लानर ने कहा, ‘सबसे बड़ी बात यह है कि डीएवीपी द्वारा पेश किए गए रेट मार्केट रेट की तुलना में काफी कम हैं और ब्रॉडकास्टर्स इससे सहमत नहीं हैं।’
ऐड रेट्स के अलावा ब्रॉडकास्टर्स टाइम बैंड्स में बढ़ोतरी के मामले में किए गए बदलावों को लेकर भी खुश नहीं हैं। पहले, न्यूज चैनल्स के पास समान अवधि के तीन टाइम बैंड्स थे। अब उन्हें पांच अलग-अलग टाइम बैंड मिलेंगे जबकि जनरल ऐंटरटेनमेंट चैनल्स को छह।
मीडिया में उच्च स्तर पर पदासीन व्यक्ति ने कहा, ‘हमने सरकारी गाइडलाइंस में इन बदलावों को करने की मांग की थी ताकि विभिन्न चैनलों के लिए रेवेन्यू जुटाया जा सके। यह भी कहा गया था कि न्यूज ब्रॉडकास्टर्स के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार को पुराने तीन टाइम बैंड्स को ही दोबारा कर देना चाहिए।’
इस बारे में एक और मीडिया एग्जिक्यूटिव का कहना है कि तीन टाइम बैंड्स से ब्रॉडकास्टर्स को कॉमर्शियल ब्रेक स्लॉट्स के लिए ज्यादा अवसर मिलते थे। ब्रेकिंग न्यूज की स्थिति में चैनल को ऐड ब्रेक नहीं मिल पाएगा। यदि ज्यादा टाइम बैंड्स होंगे तो ब्रेकिंग न्यूज कवरेज बढ़ने पर ऐड ब्रेक गायब हो जाएंगे। इससे नेटवर्क को रेवेन्यू का नुकसान हो सकता है। ऐसे में कोई भी चैनल इसका विरोध करेगा।
डीएवीपी की नई पॉलिस 10 जुलाई से शुरू होने वाली है, ऐसे में इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का मानना है कि सरकार और प्राइवेट टेलिविजन नेटवर्क्स के बीच गतिरोध बढ़ जाएगा। इसके बावजूद इस दिशा में कोई प्रयास नहीं हुआ है। पहले यह गाइडलाइंस एक जुलाई से प्रभावी होने वाली थीं लेकिन दस दिन का और समय देने के बावजूद अभी भी दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बन पाई है।
हालांकि ‘द इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन’ (IBF) और ‘न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन’(NBA) इस दिशा में प्रयासरत हैं। इस बारे में एनबीए बोर्ड के एक सदस्य ने हमारी सहयोगी वेबसाइट ‘एक्सचेंज4मीडिया’ (exchange4media) को बताया कि जल्द ही बोर्ड की मीटिंग होने जा रही है और इनमें से कुछ मामले वहां उठाए जाएंगे।
हालांकि कई लोग मान रहे हैं कि सरकारी की यह नई पॉलिसी मीडिया को अपने इशारों पर घुमाने की है। वहीं, ऐड सेल्स से जुड़े लोगों का कहना है कि ऐसे में ब्रॉडकास्ट कंपनियों को साथ में मिलकर खड़े रहने की जरूरत है।
समाचार4मीडिया
Comments