मल्हार मीडिया भोपाल।
पत्रकारिता का धर्म ही है ‘लोक’ की चिंता। आजादी के दौर में पत्रकारिता विशेष कर हिंदी पत्रकारिता ने समाज को एक दिशा दी, किंतु धीरे-धीरे वह अपने उद्येश्यों से भटक गई। जबसे दृश्य माध्यम आया है, पत्रकारिता के स्वरूप में बदलाव आया है।
यह कहना है ‘नवनीत’ के संपादक विश्वनाथ सचदेव का। वे शनिवार को ज्ञानतीर्थ माधराव सप्रे संग्रहालय में ‘हरिवंश: पत्रकारिता का लोकधर्म’ के विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
लोकार्पित पुस्तक अपने समय के प्रखर पत्रकार और वर्तमान में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश पर केंद्रित है। समारोह में स्वयं हरिवंश तथा पुस्तक के संपादक कृपाशंकर चौबे प्रमुख रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम के दूसरे चरण में पत्रकारिता के विद्यार्थियों और सम्मानित विभूतियों के बीच संवाद भी हुआ।
अपने उद्बोधन में मुख्य अतिथि विश्वनाथ सचदेव ने आगे उत्सवमूर्ति हरिवंश के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि हरिवंश की पत्रकारिता ही लोकधर्म की पत्रकारिता है। उन्होंने कोलकाता से अच्छी-खासी नौकरी छोडक़र झारखंड में ‘प्रभात किरण’ जैसे समाचार पत्र को खड़ा किया तथा समाज के वंचित वर्ग की आवाज यह पत्र बना, यही एक पत्रकार और पत्रकारिता का लोकधर्म है।
पत्रकारिता की बड़ी क्षति
विश्वनाथ सचदेव ने कहा कि हरिवंश जैसे व्यक्ति पत्रकारिता छोडक़र राजनीति में चले गए यह राजनीति के लिए बड़ी उपलब्धि हो सकती है, किंतु पत्रकारिता की बड़ी क्षति है। उन्होंने सप्रे संग्रहालय की पिछली यात्रा का स्मरण करते हुए कहा कि इस संस्थान ने हमारी कल्पना के अनुरूप ‘तीर्थ स्थल’ का स्वरूप धारण कर लिया है।
कार्यक्रम में उपस्थित हरिवंश ने इस अवसर पर कहा कि मुख्यधारा की पत्रकारिता उन्हीं समाचार पत्रों की मानी गई जो आमजन की आवाज बने। आदर्शवादी पत्रकारिता एक समय के बाद मुख्यधारा से दूर होती चली गई। उन्होंने कहा कि
आज से करीब 300-400 वर्षों पहले विचार ने इतिहास को बदला है, लेकिन नब्बे के दशक के बाद ‘तकनीक’ ने दुनिया को बदला है। हरिवंश ने किताब के लिए प्रकाशक,संपादक और सपे्र संग्रहालय का आभार माना।
किताब के संपादक कृपाशंकर चौबे ने कहा कि लेखन बहुत ही आसान कार्य है, लेकिन ‘संपादन’ एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य है। उन्होंने अपने द्वारा पूर्व में संपादित अन्य ग्रंथों के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि इन ग्रंथों का एक स्वरूप था, किंतु हरिवंश जैसे व्यक्तित्व के लिए सामग्री जुटाना और उसे पुस्तक की शक्ल देना कठिन था। फिर भी यह संभव हो पाया मेरे लिए संतोष की बात है। उन्होंने यह भी कहा कि विश्वनाथ जी और हरिवंश जी जैसे लोगों की बदौलत ही पत्रकारिता का लोकधर्म आज बचा हुआ है।
पत्रकारिता के विद्यार्थियों को लाभ मिले
इसके पूर्व आयोजन के उद्येश्यों पर प्रकाश डालते हुए संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि हरिवंश जी आई किताब पत्रकारिता की धरोहर है इसके लोकार्पण के साथ ही यह भी मंशा थी कि विश्वनाथ जी, हरिवंश जी और कृपाशंकर चौबे जैसी विभूतियों से पत्रकारित के बच्चों का संवाद हो, जिससे उनके अनुभवों का लाभ मिल सके। इसमें पत्रकारिता शिक्षण संस्थानों ने रुचि दिखाई, यह भी शुभ शगुन है।
विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान
दूसरे चरण में पत्रकारिता के विद्यार्थियों ने तीनों विभूतियों से पत्रकारिता के मौजूदा परिदृश्य को लेकर सवाल किये। जिसका तीनों ने सहज अंदाज में समाधान किया। इस दौरान विद्यार्थियों ने नये समय की पत्रकारिता, पत्रकारिता और राजनीति, मीडिया में नई तकनीक का प्रवेश आदि विषयों पर सवाल पूछे। विद्यार्थियों में उत्साह इतना था कि समय की कमी को देखते हुए प्रश्नों को सीमित करना पड़ा।
आरंभ में संग्रहालय की ओर से डॉ. शिवकुमार अवस्थी, डॉ. रत्नेश, अरविंद श्रीधर ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन मीडिया शिक्षक लालबहादुर ओझा ने किया तथा आभार प्रदर्शन वरिष्ठ टीवी पत्रकार राजेश बादल ने किया। इस अवसर पर शहर के पत्रकार तथा अन्य प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।
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