संजय कुमार सिंह।
बुलंदशहर की घटना अखबारों में खूब छपने के बाद अब कम छप रही है। आज अंग्रेजी अखबारों में घटना से संबंधित कई खबरें हैं पर हिन्दी में मुख्य रूप से सरकारी खबर है या कुछ नहीं है। दूसरी ओर, सीबीआई विवाद आज हिन्दी के कई अखबारों में लीड है। मैंने पहले भी लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट की कोई भी खबर हो, पहले पेज पर रखना आसान और सुरक्षित है। इसलिए कोई कायदे की खबर ढूंढ़ने की बजाय सुप्रीम कोर्ट की खबर को लीड बनाकर काम चला लेना हिन्दी अखबारों में आदत जैसा है।
कल इस मामले में जो भी बात हुई वह चाहे जितनी महत्वपूर्ण हो, दिलचस्पी मुख्य फैसले या आदेश में है। पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। फिर भी यह खबर आज कई अखबारों में पहले पन्ने पर लीड है। सूचना देने के लिए यह तो खबर पहले पन्ने के लायक हो सकती है पर लीड कोई दूसरी खबर नहीं हो तभी बन सकती है। और आज के अखबारों को हाल ऐसा ही है।
अमर उजाला में इस खबर का शीर्षक है, “सुप्रीम सवाल : जुलाई से था विवाद तो 23 अक्तूबर को रात दो बजे फैसला क्यों?”। सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल सरकार से पूछा है। हम भी इसका जवाब कई दिन से जानना चाहते हैं। जब जवाब है नहीं हो इसे लीड बनाने का क्या मतलब। इसी तरह उपशीर्षक भी सवाल है और याचिकाकर्ताओं से पूछा गया है। इसका जवाब याचिकाकर्ता जो दें हम सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था जानना चाहते हैं। पर कोई जवाब नहीं होने के बावजूद यह खबर लीड है। ठीक है, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को डांट लगाई है। लेकिन आम तौर पर सरकार के खिलाफ कुछ नहीं छापने वाले ऐसे सवालों से सरकार के खिलाफ होने का ढोंग कर सकते है पर इसे कौन नहीं समझेगा? आइए देखें अन्य अखबारों ने कैसे इस सवाल की आड़ में खुद को सरकार के खिलाफ दिखाने का नाटक किया है।
दैनिक जागरण में यह खबर तीन कॉलम में लीड है। फ्लैग शीर्षक है, “आलोक वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित, पूछा सीबीआई प्रमुख को क्या कार्यकाल तय होने से नहीं छू सकते”। यहां सरकार से पूछा गया सवाल नहीं, याचिकाकर्ताओं से पूछा गया सवाल महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसा लग रहा है जैसे रात दो बजे हटाना कोई मुद्दा ही नहीं है। इस खबर के साथ और जो खबरें हैं वो भी ऐसी ही हैं। एक का शीर्षक है, वर्मा और अस्थाना में रातों रात लड़ाई नहीं छिड़ी कोर्ट और दूसरी एक-दूसरे के खिलाफ जांच कर रहे थे अफसर सीवीसी। सीबीआई में घमासान शीर्षक के तहत दो बिन्दु है, सीवीसी ने वर्मा से कामकाज छीने जाने के आदेश को सही ठहराया और दूसरा, कहा - विशेष हालत में विशेष इलाज जरूरी।
नवोदय टाइम्स में यह खबर लीड तो नहीं है लेकिन पहले पेज पर दो कॉलम में टॉप पर है। फ्लैग शीर्षक है, “सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछे कड़े सवाल”। मुख्य शीर्षक है, “आलोक के अधिकार छीनने के पहले क्यों नहीं ली मंजूरी”। उपशीर्षक है, “केंद्र के फैसले के खिलाफ सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित”। अखबार ने इसके साथ सीवीसी की दलील को भी सिंगल कॉलम में छापा है। उन्होंने कहा है कि असाधारण स्थिति के लिए असाधारण उपाय जरूरी होता है।
राजस्थान पत्रिका में भी यह खबर लीड है। फ्लैग शीर्षक है, “सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी , केंद्र को जमकर फटकार। वर्मा को छुट्टी पर भेजने से पहले चयन समिति से पहले मंजूरी क्यों नहीं ली”। अखबार ने इसके साथ सिंगल कॉलम की दो खबरें छापी है। एक का शीर्षक है, “तीन माह से विवाद, अचानक फैसले पर सवाल। सिंगल कॉमल की एक खबर, यो चली जिरह भी है।
हिन्दुस्तान ने चार कॉलम में सुप्रीम कोर्ट के तल्ख तेवर के तहत दो कॉलम की दो खबरें छापी हैं। पहली का शीर्षक है, “आलोक वर्मा को क्यों अचानक हटाया गया”। दूसरी का शीर्षक है, “आंतकवादियों से भी ज्यादा कातिल सड़कों के गड्डे”। सुप्रीम कोर्ट की खबर ही लीड बनानी हो तो निश्चित रूप से दूसरी वाली ज्यादा महत्वपूर्ण या कम जानी पहचानी है। सड़क पर जो लोग यह समस्या झेलते हैं उन्हें भी यह जानकर अच्छा लगेगा कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। अब शायद कुछ हो। पर ज्यादा प्रमुखता सीबीआई की खबर को मिली है।
दैनिक भास्कर में यह खबर पांच कॉलम में लीड है। “सीबीआई की लड़ाई – आलोक वर्मा मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा रिजर्व”। मुख्य शीर्षक है, “विवाद तो पहले से था, डायरेक्टर से रातों रात अधिकार क्यों छीनने पड़े? : सुप्रीम कोर्ट”। उपशीर्षक है, “सीवीसी ने कोर्ट को बताया – हालात असाधारण हों तो वैसी ही कार्रवाई जरूरी है”। नवभारत टाइम्स में भी यही खबर तीन कॉलम में लीड है। सिर्फ शीर्षक अलग है, कोर्ट बोला, सीबीआई को तबाह नहीं होने देंगे।
इसके मुकाबले अंग्रेजी अखबारों में यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम टाइम्स ऑफ इंडिया में सिंगल कॉलम इंडियन एक्सप्रेस में दो कॉलम में है जबकि टेलीग्राफ में भी यह खबर सिंगल कॉलम है।
Comments