सोमदत्त शास्त्री।
मीडिया महोत्सव 2018 के लिए अनिल सौमित्र को शुभकामनायें। इस महोत्सव में हमेशा की तरह मै आमंत्रित नहीं हूँ इसलिए अपनी बात यहीं से सम्प्रेषित कर रहा हूँ।
मीडिया महोत्सव का यह आयोजन ऐसे समय पर हो रहा है जब मप्र का समूचा मीडिया जगत अपने भिंड के एक साथी की निर्मम हत्या के शोक में डूबा है।
मीडिया महोत्सव की चर्चा की विषय सूची में जलेबी सरीखे घुमाव भरे अंदाज़ में राजनीतिक मुद्दों की भरमार तो है पर यह ज्वलंत मुद्दा क्यों नहीं है यह मेरी समझ से परे है।
हमारे एक युवा पत्रकार मित्र दीपक तिवारी की बात से मैं सहमत हूँ कि मप्र में निष्पक्ष पत्रकारिता अब लगातार दुरूह होती जा रही है।
पत्रकारों को पहले प्रलोभन दिया जाता है फिर धमकाया जाता है और फिर भी बात न बने तो उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश शुरू हो जाती है।
भिंड से पहले बालाघाट में भी यही हुआ था,वहां के युवा पत्रकार संदीप कोठारी को अपहरण के बाद बेरहमी से जिंदा जला दिया गया था और उसके परिजन हफ्तों भोपाल के बाणगंगा इलाके में धरना देने के बावजूद मुख्यमंत्री से मिलने में नाकाम रहे थे।
यह और बात है कि उन्ही दिनों व्यापमं की रिपोर्टिग करने आये पत्रकार की मौत के बाद घबराए मुख्यमंत्री दिल्ली जाकर उसके परिवार वालों से मिले थे और उनके लिए कुछ भी करने को तैयार नज़र आये थे उनके व्यवहार का यह दुखद दोहरापन हैरान करने वाला ही था।
मीडिया महोत्सव में अगर इन मुद्दों पर बात नहीं होती तो उसकी सार्थकता पर सवालिया निशान लगते रहेंगे।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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