राकेश कुमार पालीवाल।
वर्तमान मीडिया सिर्फ मीडिया नही है।यदि मीडिया समूहों की बैलेंस शीट जरा से गौर से देखी जाए तो पता चलता है कि अधिकांश मीडिया समूह के चैनल या अखबार मीडिया समूह के व्यापार के मुखौटे से है।
मीडिया समूह दाल चावल से लेकर पान मसाले तक के परचूनी धंधे भी कर रहे हैं।वहां पत्रकारो और सम्पादकों की भूमिका आम कर्मचारी(मजाक में कहूं तो ढाबों के छोटू) सरीखी ही है।
विगत में कई मीडिया समूहों पर कस्टम, एक्साइज, आयकर चोरी और प्रवर्तन निदेशालय के संगीन अपराधों के मामले उजागर हुए हैं।
यह अलग बात है कि भाई बिरादर होने के नाते दूसरे मीडिया समूह इन खबरों को ब्लेक आउट करते हैं या उसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताकर जनता को गुमराह करते हैं।
एक बड़ा सच यह भी है कि वर्तमान मीडिया राजा राममोहन राय, तिलक, गांधी और गणेश शंकर विद्यार्थी के उत्तराधिकारी नही चला रहे जो सत्य और जन के साथ खड़े थे।
याद रखने की जरूरत है कि भागने से कुछ साल पहले जनता की सहानुभूति का कवच ओढ़ने के
लिए माल्या ने गांधी की विरासत का चश्मा आदि विदेश की नीलामी से महंगी कीमत देकर खरीदे थे।वैसे ही ढोंग मीडिया के चालाक मलिकों को भी आते हैं।
वर्तमान मीडिया पवित्र गाय नही है।
फेसबुक वॉल से।
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