राजेंद्र चतुर्वेदी।
आतंकवादी हमले के बाद गुस्सा स्वाभाविक है, लेकिन समाचार चैनलों को उत्तेजना बेचने से बचना चाहिए। पाकिस्तान पर हमला न संभव है, न व्यवहारिक। सरकार भी न कुछ करेगी, न कर पाएगी।
सरकार की संवेदना को इस तरह समझा जा सकता है कि आज जब संसद का आपातकालीन सत्र होना चाहिए था, जिसमें एक प्रस्ताव पारित करके पाकिस्तान से राजनयिक संबंध खत्म होने की घोषणा होनी चाहिए थी, तो दूसरे प्रस्ताव में व्यापारिक संबंधों के समापन की घोषणा, तीसरा प्रस्ताव पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने का पारित होना चाहिए था और चौथा प्रस्ताव उससे मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीनने का, तब हो क्या रहा है?
प्रधानमंत्री ने झांसी में रैली की और उसमें झूठ भी जमकर बोला। सबसे बड़ा झूठ यह है कि पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है जबकि, सच यह नहीं है। सच यह है कि चीन पाकिस्तान के पीछे मजबूती से खड़ा है।
रूस वहां के बुनियादी ढांचे में निवेश कर रहा है और अमेरिका तालिबानों से अफगानिस्तान में शांति के लिए बातचीत कर रहा है, जिसमें पाकिस्तान बिचौलिए की भूमिका में है।
16 फरवरी को संयुक्त अरब अमीरात का वही राजकुमार पाकिस्तान आने वाला है, जो जब भारत आया था, तो मोदी उसे रिसीव करने हवाई अड्डे पर गए थे। सोमवार को मलेशिया के प्रधानमंत्री वहां पहुंचेंगे।
और तो और, भारत भी पाकिस्तान को स्वयं से अलग-थलग नहीं कर पाया है। हमारे जिंदल, रिलायंस और अडाणी समूह के वहां अरबों रुपये लगे हुए हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के दूसरे पुत्र ने नोटबंदी के बाद जो कंपनी बनाई है, उसमें पाकिस्तान के तीन पूंजीपति पार्टनर हैं। डोभाल पुत्र, डोभाल पुत्र की कंपनी और इस कंपनी का मुख्यालय किस देश में है, यह हमें याद नहीं है। उम्मीद है, कोई मित्र ये नाम बता देगा।
कुल मिलाकर 2014 से कश्मीर के मसले को जिस गंदे तरीके से डील किया जा रहा है, आतंकी हमला उसी की परिणति है। कश्मीर को देश भर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का जरिया बना लिया गया है और जिन लोगों ने यह किया, वे आतंकी हमले के बाद अपने चेहरे पर शिकन लाने का नाटक तक नहीं कर पा रहे हैं। इसीलिए बातें केवल व्यवहारिक होनी चाहिए।
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