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बोगस वेबसाइ्टस और फेक न्यूज से पत्रकारों को बदनाम करने के हथकंडे की खुली पोल

मीडिया            Dec 28, 2018


डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही पोस्ट में दावा किया गया था कि देश के 68 पत्रकारों, लेखकों और पूर्व नौकरशाहों को मोदी सरकार के खिलाफ लिखने के लिए दो से पांच लाख रुपए प्रतिमाह दिया जा रहा है। यह भी दावा किया जा रहा था कि यह भुगतान कैम्ब्रिज एनेलिटिका कंपनी के माध्यम से हो रहा था।

एक प्रमुख वेबसाइट के अनुसार इन सभी 68 लोगों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा को बदनाम करने के लिए ठेका दिया गया था और वे अपने काम को अंजाम दे रहे थे। वेबसाइट के अनुसार ये लोग इसीलिए मोदी और भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहे थे।

उस वेबसाइट के लिंक को सोशल मीडिया के प्रमुख प्लेटफार्म टि्वटर, फेसबुक, लिंक्डइन आदि पर शेयर किया जा रहा था। इसमें कई नामी-गिरामी लोग शामिल बताए जा रहे हैं। यह भी लिखा जा रहा था कि यह सारी रकम इन बुद्धिजीवियों को ब्लैक में भुगतान की जा रही थी। इस पर उन्हें कोई आयकर वगैरह भी नहीं देना पड़ता था।

कुछ प्रसिद्ध संपादकों के नाम भी उजागर किए गए और लिखा गया कि ये लोग मोदी और सरकार को बदनाम करने के लिए जिम्मेदार है। सोशल मीडिया पर इस तरह के पोस्ट आने के बाद लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी और लोगों ने इन बुद्धिजीवियों की आलोचना करते हुए पोस्ट शेयर किए।

बुद्धिजीवियों को बदनाम करने का अभियान
अब यह बात सामने आई है कि बुद्धिजीवियों को बदनाम करने का यह अभियान मोदी समर्थकों का हथकंडा था। किसी भी पत्रकार को मोदी या भाजपा के खिलाफ लिखने के लिए एक पैसे का भुगतान नहीं किया गया। उन्होंने जो कुछ लिखा, वह अपने विवेक और अनुभव से लिखा, उसमें न तो कांग्रेस का कोई योगदान था और न ही मोदी विरोधी दूसरे लोगों का।

द क्विंट नामक वेबसाइट ने इस मामले की पड़ताल की। इस वेबसाइट में पूरी रिपोर्ट प्रकाशित की है। जिन लोगों को बदनाम किया जा रहा था, उनमें सिद्धार्थ वरदराजन, रवीश कुमार, शेखर गुप्ता, मिहिर शर्मा, आकार पटेल, मिताली सरन आदि के नाम थे।

पूर्व आईएएएस और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदार का नाम भी इस सूची में था। क्विंट की पड़ताल में यह बात सामने आई कि यह सभी लोग निजी स्तर पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर रहे थे। इनमें से किसी को कोई भुगतान नहीं किया जा रहा था।

उपेक्षा करना ही उचित कदम
शेखर गुप्ता ने ऐसे संदेशों पर कहा कि यह बेहद गलत काम था, लेकिन इसकी तरफ ध्यान देना, इनको महत्व देना ही है। ऐसे संदेशों को नजरअंदाज करना ही बेहतर है। हर्ष मंदार ने कहा कि लोग लोकतंत्र के बावजूद असहमति को स्वीकार करने का साहस नहीं रखते। उन्हें लगता है कि सत्ता के खिलाफ अगर कोई बोल रहा है, तो जरूर उसे पैसे मिल रहे होंगे।

एमनेस्टी इंडिया के कार्यकारी संचालक आकार पटेल ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जो लोग इस तरह की बातें फैला रहे है, वे ही बता सकते है कि यह पैसा किसे और कब भुगतान किया गया। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा कि मेरे खाते में तो अभी भी 15 लाख रूपए कम पड़ रहे है।

नाम के स्पेलिंग गलत लिखे
सबसे खतरनाक बात यह रही कि जिन लोगों को बदनाम किया जा रहा था, उनके बारे में सोशल मीडिया पर लिखते वक्त अंग्रेजी में उनके नामों की स्पेलिंग गलत लिखी गई। यह शायद इसलिए किया गया कि कानूनी पचड़ों से बचा जा सके।

इस तरह की फेक न्यूज का प्रचार करने वाली वेबसाइट पोस्ट कार्ड न्यूज को फेसबुक ने प्रतिबंधित कर दिया। इस वेबसाइट के जरिये दुष्प्रचार करने वाली संस्था के पदाधिकारियों को कर्नाटक पुलिस ने फेक न्यूज मामले में गिरफ्तार किया था।

जैन मुनि की दुर्घटना को बता दिया हमला

उसी वेबसाइट ने यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित की थी कि कर्नाटक में एक जैन मुनि पर कुछ मुस्लिम युवकों ने प्राणघातक हमला किया है। बाद में जब पुलिस ने जांच की, तो पाया कि यह मामला सही नहीं था। सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के लिए इस तरह की खबरें प्रचारित की जा रही थी।

वास्तव में जैन मुनि एक दुर्घटना में घायल हुए थे और जिस व्यक्ति की पिटाई की जा रही थी, वह जैन मुनि नहीं था, बल्कि एक असामाजिक तत्व था। दोनों खबरों के चित्र मिलाकर वेबसाइट ने प्रकाशित कर दिए थे। उत्तर कनारा (कर्नाटक) जिले में की एक झील में 23 वर्ष के एक युवक की लाश तैरती पाई गई थी। उसे भी गलत तरीके से वेबसाइट ने प्रकाशित किया था और लिखा था कि जेहादियों द्वारा टाॅर्चर के बाद युवक की मौत हो गई, तो उसकी लाश को झील में फेंक दिया गया। युवक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह बात गलत साबित हुई।

प्रणब मुखर्जी की किताब के अंश भी तोड़े-मरोड़े

इस वेबसाइट ने तो तब अति ही कर दी, जब उसने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के किताब का एक अंश तोड़-मरोड़ कर इस तरह छापा कि अर्थ का अनर्थ हो गया। लिंगायद समाज के मुद्दे पर सोनिया गांधी की कर्नाटक के मंत्री को लिखी गई चिट्ठी ही फर्जी बना दी गई। फरहान अख्तार और ए.आर. रहमान के झूठे कोटेशन भी इस वेबसाइट ने जारी कर दिए थे। राजदीप सरदेसाई के बेटे के बारे में भी मनगड़ंत खबरें बनाकर छापी गई। एक खबर में तो उस वेबसाइट ने अति ही कर दी, जिसमें बताया गया था कि किसी एक वर्ष में देश में कुल जितने बलात्कार हुई, उनमें से 96 प्रतिशत एक धर्म विशेष के लोगों ने किए है। बाद में एनसीआरबी को सफाई देनी पड़ी कि देश में कही भी इस तरह के आंकड़े रिकॉर्ड नहीं किए जाते। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की तस्वीरों से भी छेड़छाड़ की
गई। जिस कारण अनेक लोगों ने इसकी शिकायत पुलिस को की थी।

आप इसे रोक सकते हैं

दुष्प्रचार करने वाले लोगों ने सोशल मीडिया को अपना अड्डा बना रखा है और वे अपनी बात को सही साबित करने के लिए इस तरह की बोगस वेबसाइट का सहारा लेते हैं। ये वेबसाइट्स इस तरह समाचारों को प्रकाशित करती है कि उसे शेयर करने पर उसकी विश्वसनीयता बढ़ी हुई लगती है, जबकि होती है वह पूरी तरह से बोगस खबर।विशेषज्ञों का मानना है कि फेक न्यूज पर रोक लगाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप ऐसी खबरों को कभी भी प्रचारित-प्रसारित करने में मददगार न बने। मौका आए, तो पुलिस को इसकी शिकायत करें और संबंधित वेबसाइट पर भी उसकी शिकायत करने से न चूके।

 


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