मनोज कुमार
समाज की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करना किसी भी राज्य की निर्वाचित सरकार का प्रथम दायित्व होता है। बुनियादी आवश्यकताओं से आशय शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा, सडक़, जल एवं बिजली से है किन्तु अपरोक्ष रूप से कुछ ऐसे भी कार्य होते हैं जिन्हें पूर्ण किया जाना बुनियादी जरूरतों की श्रेणी में ना हो किन्तु राज्य की परम्परा की श्रीवृद्धि में सहायक होता है। इस संदर्भ में मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने अपने 13 वर्षों के कार्यकाल में जो कुछ पहल की है, वह मध्यप्रदेश के लिए गौरव का विषय बन गया है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में देश में अपनी तरह का इकलौता शौर्य स्मारक का निर्माण, अलीराजपुर जिले के भाबरा (वर्तमान नाम चंद्रशेखर आजाद नगर) में वीर शहीद चंद्रशेखर आजाद और मुरैना जिले में वीर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल के पुश्तैनी ग्राम में देवालय का निर्माण किया जाना अनोखी एवं ऐतिहासिक पहल है। शिवराजसिंह सरकार के पहले भी सीमा पर मध्यप्रदेश के जवान शहीद होते रहे हैं किन्तु उनके परिवारों तक पहुंच कर उन्हें सम्मान देने की परम्परा का श्रीगणेश बीते सालों में हुआ है। देश के ह्दयप्रदेश मध्यप्रदेश के लिए वीर शहीदों के स्मरण की यह पहल हमें गर्व से भर देती है।
भोपाल स्थित शौर्य स्मारक मध्यप्रदेश ही नहीं, देश की शान है। 13 एकड़ के विशाल भू-भाग में स्थापित शौर्य स्मारक देश का इकलौता स्मारक है जहां भारतीय सेनाओं के पराक्रम और शूरवीर योद्धाओं की शौर्य गाथाओं के गीत गाए जा रहे हैं। कल्पना से भी बहुत दूर जाकर जो दृश्य शौर्य स्मारक में उभरता है, उसे शब्दों में बयान करना कुछ मुश्किल सा काम है। शौर्य स्मारक का रख-रखाव भोपाल स्थित भारतीय सेना व स्वराज संस्थान संचालनालय, मध्यप्रदेश शासन द्वारा किया जाता है।
भोपाल से देशभर में मशहूर नामचीन शायर दुष्यंत कुमार की पंक्तियां युवाओं में जोश भरती दिखती है जिसमें वे कहते हैं- ‘कुछ भी बन, कायर मत बन।’ वहीं पर महाभारत के शांतिपर्व का श्लोक लिखा दिखता है, ‘शूरबाहुषु लोकास्यं लम्बते पुत्रवत् सदा, तस्मात् सर्वास्ववस्थासु शूर:सम्मान मर्हति। न हि शौर्यात परं किंचित् त्रिषुलोकेषु विद्यते, शूर: सर्व पालयति सर्व शूरे प्रतिष्ठितम।।’ अर्थात ‘यह संसार वीरों की भुजाओं पर उसी तरह आश्रित है, जिस तरह पुत्र अपने पिता की भुजाओं पर आश्रित रहता है। इसीलिए शूरवीर हर स्थिति में सम्मान का अधिकारी है। वीरता से बढक़र तीनों लोकों में कुछ भी नहीं है। वीर सबका पालनहार है और सब कुछ वीर पर निर्भर करता है।’ इसी शौर्यवीथि पर प्रख्यात कवियों यथा सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की ‘मातृ वंदना’, सुब्रह्मण्यम भारती की ‘निर्भय’, सुमित्रानंदन पंत की ‘जय जन भारत, जन मन अभिमत’, सुभद्रा कुमारी चौहान की ‘स्वदेश के प्रति’, सोहनलाल द्विवेदी की ‘मातृभूमि’, कवि प्रदीप की ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’, बालकवि बैरागी की ‘मेरे देश के लाल’, माखनलाल चतुर्वेदी की ‘प्यारा भारत देश’ और जयशंकर प्रसाद की ‘भारत महिमा’ जैसी देशभक्ति पढऩे का अवसर देती हैं।
शौर्यवीथि में जैसे इतिहास उतर आया है। 1857 के संग्राम और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के संघर्ष गाथा आप देख सकते हैं तो तिरंगे के नीचे परेड करती सैनिक टुकड़ी की बड़ी सी तस्वीर के साथ ही तिरंगे का सचित्र इतिहास हमें गर्व से भर देता है। 1947 के बंटवारे से लेकर 1962, 1965, 1971 और 1999 की करगिल की लड़ाई का इतिहास चित्रों के साथ बताया गया है। दीवार पर लगी पेंटिंग्स के जरिए आदिमकाल की लड़ाई से, राम-रावण युद्ध, महाभारत युद्ध, चंद्रगुप्त मौर्य का संघर्ष, सम्राट अशोक का कलिंग युद्ध, मालवा के राजा यशोधर्मन की हूणों से लड़ाई, राणा प्रताप, टीपू सुल्तान की लड़ाइयां भी नुमाया हो रही हैं. इसी स्थान पर सेना के सामाजिक सरोकारों यथा द्वारा बाढ़, भूकंप, रेल हादसों आदि के दौरान किए गए राहत व बचाव के कामों की तमाम तस्वीरों की भी नुमाइश की गई है।
सियाचिन ग्लेशियर में सैनिकों की तैनाती का एहसास कराने के लिए बनाया गया 12 गुणा 20 का फ्रीजिंग चैम्बर है। जर्मनी से लाए गए कूलिंग सिस्टम की मदद से इस चैम्बर का तापमान शून्य डिग्री पर कायम रखा जा रहा है। यहां भी तीन डमी सैनिक ड्यूटी पर तैनात दिखते हैं। साथ ही, करगिल विजय आदि के बारे में जानकारी उपलब्ध है। बाहर एक हॉल में निकलते ही परमवीर चक्र, अशोक चक्र और अन्य पदक देखने को मिलता है जिन्हें संभाल कर कांच के बक्से में रखा गया है। यहां रखे गए चमकते पीतल के बर्तन आपको आकर्षित करते हैं। यह वह बर्तन है जिसमें मध्यप्रदेश के शहीदों के गांवों से बुलाई मिट्टी रखी गई है। लेह-लद्दाख में बनी हवाई पट्टी पर खड़े वायुसेना के विमान तथा हेलीकॉप्टर के साथ ही एक कोने में रेगिस्तान की रेत पर सेना के टैंक और तोपों की तैनाती नमूने के तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। शौर्य स्मारक में आने वाले दर्शकों के लिए लाईट एंड साउंड के जरिए वह सब दिखाया-बताया जाता है जो हर पल आंखों के सामने घटित होता दिखता है। ऊबड़-खाबड़ दीवारों से घिरे गोलाकार आंगन में गोलीबारी, बम धमाके, तोपों के गरजने, लड़ाकू विमानों के उडऩे की आवाजें, चीख-ओ-पुकार सुनाई देने लगती है। युद्ध के रंगमंच से आगे एक काली अंधेरी खोह के बीचों-बीच रखे दीपक की लौ आत्मा और उसकी अनश्वरता-अमरता का संकेत भी देती है। नौसेना के प्रतीक जलस्रोत के बीच, सेना को काले और वायुसेना को सफेद ग्रेनाइट से दिखाने वाले 62 फीट ऊंचे शौर्य स्तंभ के नीचे चबूतरे पर एक अत्याधुनिक अमर जवान ज्योति प्रज्जवलित है। पास ही सैनिकों के जूते और शहीदों के सम्मान में उल्टी बंदूकें अपनी अपनी कहानी कह रही हैं। यहीं करीने से रखी गई कांच के करीब 14 पटल पर शहीदों के नाम और वे किस युद्ध में शहीद हुए इसकी जानकारी दी गई है। स्मारक के बीच रक्त की बूंद को दिखाने वाली एक शिल्पकृति अपने आपमें अनोखी है।
उल्लेखनीय है कि 10 जुलाई 2008 को दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में कर्नल मुशरान की जयंति पर तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल ने अपने उद्बोधन में इस बात की शिकायत दर्ज करायी कि-‘आम आदमी और युवाओं के बीच सेना का आकर्षण बनाए रखने के लिए अब तक किया ही क्या गया है?’ इसी समय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भोपाल में शौर्य स्मारक बनाने का ऐलान कर दिया और 6-7 वर्षों में शौर्य स्मारक ने आकार ले लिया।
बरबई गांव में बिस्मिल और भाबरा में आजाद का देवालय
वीर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल के दादाजी नारायणलाल का पैतृक गाँव बरबाई (वर्तमान जिला मुरैना) था। यह गाँव तत्कालीन ग्वालियर राज्य में चम्बल नदी के बीहड़ों के बीच स्थित तोमरघार क्षेत्र के मुरैना जिले में था और वर्तमान में यह मध्यप्रदेश में है। बरबाई गांव के एक पार्क में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा राम प्रसाद बिस्मिल की एक प्रतिमा स्थापित कर दी गयी है। इसके अतिरिक्त मुरैना में बिस्मिल का एक मंदिर एवं जिला मुख्यालय पर ‘अमर शहीद पं रामप्रसाद बिस्मिल संग्रहालय’ भी बनाया गया है,जो चम्बल अंचल के अमर शहीदों एवं अंचल के ऐतिहासिक व पुरा स्थलों की जानकारी प्रदान करता है।
मध्यप्रदेश के वर्तमान अलीराजपुर जिले के भाबरा (वर्तमान नाम चंद्रशेखर आजाद नगर) में 23 जुलाई 1906 को हुआ था। चंद्रशेखर आजाद नगर में वीर योद्धा चंद्रशेखर की स्मृति में मंदिर का निर्माण कराया गया है। पावन तथ्य यह है कि स्थानीय नागरिक प्रतिदिन आजाद की मूर्ति को प्रणाम करने जाते हैं और यही नहीं अपने बच्चों को भी शीश झुकाने का आदर्श सिखाते हैं। गुजरात की सीमा से सटे चंद्रशेखर आजाद नगर के अनेक घरों में आजाद की मूर्ति या तस्वीर नुमाया हो जाएगी। ज्यादातर वे आजाद के नाम से लोकप्रिय हैं। उनके पूर्वज कानपूर (वर्तमान उन्नाव जिला) के पास के बदरका ग्राम से थे। उनके पिता सीताराम तिवारी और माता जगरानी देवी थी। दिसम्बर 1921 में जब गांधी के असहकार आंदोलन में 15 वर्ष के विद्यार्थी चंद्रशेखर आजाद भी कूद पड़े। परिणामस्वरूप उन्हें कैद कर लिया गया। चंद्रशेखर को जब जज के सामने लाया गया तो नाम पूछने पर चंद्रशेखर ने अपना नाम ‘आजाद’ बताया था, उनके पिता का नाम ‘स्वतंत्र’ और उनका निवास स्थान ‘जेल’ बताया। उसी दिन से चंद्रशेखर लोगो के बीच चन्द्रशेखर आजाद के नाम से लोकप्रिय हुए।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं रिसर्च जर्नल "समागम " के सम्पादक हैं
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