अशोक अनुराग।
आकाशवाणी की राष्ट्रीय प्रसारण सेवा के बंद होने की ख़बर और इसके बंद होने में ये अंडरटेकिंग की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
इस अंडरटेकिंग को पढ़ने के बाद उस पर साइन करने का मतलब कोई भी समझ सकता है कि उसके हाथ काटे जा रहे हैं।
लेकिन दिल्ली के सभी कैज़ुअल एनाउंसर इस अंडरटेकिंग पर साइन कर चुके हैं सिर्फ़ मुझे छोड़ कर, तो जब आप ख़ुद अपनी तबाही के फ़रमान पर ख़ुश होकर, डर कर, ड्यूटी की लालच में और सरकार का कहना मान कर साइन कर चुके हैं तो ये तो एक दिन होना ही था।
वो तमाम कैज़ुअल एनाउंसर जो अंडरटेकिंग साइन कर चुके हैं और बजाप्ता कोर्ट के स्टैम्प पेपर पर और नए पी-5 कॉन्ट्रैक्ट पर।
तो ये वो जान ही लें कि आज न कल उनको रेडियो से निकलना था या निकाला जाना ही था। और राष्ट्रीय प्रसारण सेवा को बंद होना ही था।
क्योंकि पूरी दिल्ली में इसे कोई नहीं सुनता था क्योंकि इसका ट्रांसमिशन ही इतना ख़राब था कि ये मीडियम वेव रेडियो पर सुनाई ही नहीं पड़ता था।
हाई पावर ट्रांसमीटर नागपुर से भी बहुत कम लोग जुड़े हुए थे, FM चैनल आने के बाद राष्ट्रीय प्रसारण सेवा और भी दूर हो गया।
मीडियम वेव के रेडियो पर इतना शोर और दूसरी तरंगों का जिनमें केबल टीवी, डी टी एच, बिजली के तार और मोबाइल फ्रीक्वेंसी का इतना बुरा असर हुआ कि मीडियम वेव सुनाई पड़ना लगभग मुश्किल हो गया।
राष्ट्रीय प्रसारण सेवा का मीडियम वेव ट्रांसमीटर क्योंकि बहुत कम पावर का और सिर्फ़ दिल्ली के लिये था इस कारण इसका प्रसारण सुनाई देना कम से कम होता गया और श्रोता भी दूर होते गये।
कुछ वर्षों से स्थिति और बदतर हो गई, अंडरटेकिंग का भय दिखा कर और स्क्रीनिंग के द्वारा स्वर परीक्षा में फेल करके पुराने कैज़ुअल एनाउंसर को बाहर किया जाने लगा।
अंडरटेकिंग पर अपनी मर्ज़ी से साइन करने के कारण विरोध के सभी रास्ते बंद हो चुके थे। ऐसे में जो कुछ हुआ है उसकी संभावना तो तय थी।
फ़िलहाल सरकार से ज़्यादा दोषी वो सभी कैज़ुअल एनाउंसर हैं जिन्होंने इस अंडरटेकिंग का विरोध कभी किया ही नहीं।
स्वार्थ में अंधे होकर ग़लत अंडरटेकिंग पर साइन करने का परिणाम ये है कि विरोध के सभी रास्ते बंद हैं और क्यों बंद हैं उसके लिये आप इस अंडरटेकिंग को पढ़िये सब समझ में आ जायेगा।
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