सोशल मीडिया के गैरकानूनी कंटेंट पर सरकार की तीखी निगाहें

मीडिया            Dec 27, 2018


डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
केन्द्र सरकार चाहती है कि प्रिंट और टेलीविजन की तरह सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर भी गैरकानूनी बातें लिखने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकें। सरकार ने इसके लिए पहल शुरू की है।

गैरकानूनी कंटेंट के बारे में सरकार ने मसौदा तैयार किया है कि क्या-क्या कानून बनाए जा सकते है। इसी के साथ सोशल मीडिया के प्लेटफार्म से कहा गया है कि वे इस बारे में सरकार की मदद करें कि गैरकानूनी कंटेंट की शुरुआत कहा से हो रही है और उसे पहचानने के तरीके क्या-क्या हो सकते है।

सरकार यह भी चाहती है कि सोशल मीडिया के प्लेटफार्म सरकार की इच्छा के अनुसार मदद करने के लिए आगे आए और ड्रॉफ्ट के मसौदे पर अपनी राय दें। इसके लिए सरकार ने 15 जनवरी 2019 तक सलाह मांगी है।

सरकार चाहती है कि गैरकानूनी कंटेंट को रोकने के लिए एक तरफा कानून नहीं बनाए जाए, बल्कि उसमें सोशल मीडिया के प्लेटफार्म और नागरिकों की ही मदद मिल जाए।

इसी मसौदे के आधार पर सरकार इंफर्मेशन टेक्नोलॉजी रूल्स 2018 जारी करेगी, जो आईटी एक्ट 2000 के सेक्शन 79 की जगह लेगा। इस कानून के तहत यह व्यवस्था है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म 24 घंटे के भीतर इस तरह के गैरकानूनी कंटेंट को हटा देगा।

वर्तमान में बहुत से सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर लोग प्रतिक्रिया के रूप में ऐसी बाते लिख देते है, जो गैरकानूनी है। इनमें से कई बातें राष्ट्र विरोधी होती है, कई जातिवाद और सांप्रदायिक हिंसा बढ़ाने वाली भी होती है।

सरकार इन सभी को गैरकानूनी मानती है और चाहती है कि इस तरह के कंटेंट पर रोक लगे। केन्द्र सरकार की सुरक्षा एजेंसियों को इस बात की भी भनक लगी है कि सोशल मीडिया के प्लेटफार्म का उपयोग आतंकवादी और देशविरोधी गतिविधियों में शामिल अलगाववादी लोग अपने संदेशों के प्रचार के लिए भी करते है।

गौ हत्या के नाम पर 2018 में मॉब लिचिंग के बहुत से मामले सोशल मीडिया पर आए संदेशों के कारण ही हुए थे। सुरक्षा एजेंसियां समझती है कि सोशल मीडिया पर इस तरह की गतिविधियां शुरू करने वाले लोगों को पकड़कर और उन पर कार्रवाई करके ऐसी समस्याओं से काफी हद तक मुक्ति पाई जा सकती है।

नक्सलवादी और प्रथकतावादी समूह भी सोशल मीडिया का उपयोग अपने संदेशों को पहुंचाने के लिए करते हैं। सरकार चाहती है कि इस तरह के संदेशों के प्रचार-प्रसार पर रोक लगे।

जम्मू-कश्मीर में हो रही हिंसक वारदातों में भी सोशल मीडिया का उपयोग करने के सबूत मिले है। विरोधी दल सरकार के इस प्रयास का भी विरोध कर रहे है। उनका कहना है कि यह अभिव्यक्ति की आजादी को रोकने की कोशिश है।

 


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