सप्रे संग्रहालय में महिला पत्रकारिता पर केन्द्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन
मल्हार मीडिया ब्यूरो। भोपाल। आज मीडिया के क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी पहचान बनाई है। भले ही बड़े ओहदों तक नहीं पहुंच पाईं लेकिन सक्रिय भागीदारी तो निभा रही हैं। हम जहां काम कर रहे हैं वहां हम अपनी बात रखने का साहस पैदा करें, हमें अपनी चुप्पियां तोडऩी होंगी। पुरुषों से तुलना का भाव नहीं रखें, बल्कि स्वयं को उनके बराबर का समझें। आज महिलाएं उन क्षेत्रों में भी रिपोर्टिंग कर रही हैं जो कभी पुरुषों के लिए माने जाते थे। कुछ इस तरह के विचारों की अभिव्यक्ति के साथ सप्रे संग्रहालय में दो दिनों से महिला पत्रकारिता पर चल रही राष्ट्रीय संगोष्ठी -- पत्रकारिता में आधी दुनिया -- का समापन हो गया। संगोष्ठी का आयोजन माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र एवं शोध संस्थान द्वारा महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के सहयोग से किया गया था।
दूसरे दिन दो सत्रों में महिला पत्रकारिता से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विमर्श हुए। इसके अलावा कार्यक्रम में मौजूद महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल तथा कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय,रायपुर के छात्रों तथा पत्रकारिता के विशेषज्ञों के बीच संवाद भी हुआ।
पहले सत्र की अध्यक्षता शिक्षाविद् डा. मंजुला शर्मा ने की। इस सत्र में राजस्थान पत्रिका की पत्रकार उमा ने कहा कि हम पुरुषों से अपनी तुलना न करें बल्कि हम अपना क्या बेहतर दे सकते हैं। इस तरफ सोचें। हम अपने काम से अपनी जगह बना सकते हैं। हम संपादक के ओहदे की चाह ही क्यों रखें हम फीचर संपादक तक पहुंचे हैं यह भी कम नहीं है। आगे चलता रहना होगा। उन्होंने महिला पत्रकारों के टाइम फैक्टर को लेकर उठने वाले सवालों पर कहा कि हम जिस संस्थान में काम करते हैं वहां हमें अपनी बात कहनी आनी चाहिए। हम अपनी चुप्पियां तोड़ें तो समाधान निकलेंगे। पत्रकारिता की विद्यार्थी और हमीदिया महाविद्यालय की प्राध्यापक डा. अल्पना त्रिवेदी ने कहा कि हम सिर्फ गिने-चुने विषयों पर ही क्यों लिखें। हमें अपनी सोच का दायरा बढ़ाना होगा। समाज में ऐसी कई महिलाएं हैं जो असाधारण काम कर रही हैं लेकिन वे लोगों की नजर में नहीं आ रहीं। उन्होंने सुझाव दिया कि महिला पत्रकार समाज के ऐसे रोल मॉडल को सामने लेकर आएं। संग्रहालय की निदेशक डा. मंगला अनुजा ने कहा कि बीते कुछ समय से खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आने के बाद से तो इनकी संख्या में काफ बढ़ोतरी हुई है। लेकिन ऐसा नहीं है, मीडिया में महिलाओं की भागीदारी सदियों पुरानी है लेकिन अब यह उपस्थिति दिखाई देने लगी है। उन्होंने काम के साथ-साथ अपने पारिवारिक दायित्व निभाने का आग्रह भी महिलाओं से किया।
वेब पत्रकार ममता यादव का कहना था कि पुरुष-महिला में अंतर कुदरती है। महिलाओं में प्रकृति ने कुछ विशिष्ट गुण दिए हैं। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया में महिलाएं बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। हर विषय पर खुलकर बात कर रही हैं। भले ही सोशल मीडिया के कंटेक्ट को लेेकर प्रश्न उठते हों। ममता का भी कहना था कि अखबारों के दफ्तर में टाइम फैक्टर कोई मुद्दा नहीं है। जिन्हें काम करना होता है वो देर रात तक भी काम करती हैं। यह किसी दबाब से ज्यादा आपकी सामथ्र्य और रुचि पर निर्भर करता है।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डा. मंजुला शर्मा ने कहा कि सिर्फ आधी दुनिया ही नहीं पूरी दुनिया में हम हैं। आज महिलाएं ऐसी जगह जाकर रिपोर्टिंग कर रही हैं जो आम तौर पर पुरुषों के लिए ही माने जाते रहे हैं। फिर चाहे वे आतंकी हमले वाले स्थान हों या दुर्गम सीमावर्ती इलाके जहां युद्ध की आहटें रहती हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि मीडिया में काम कर रही महिलाओं के सामने चुनौतियां हैं लेकिन अपनी प्रतिभा और लगन के बल पर इसका सामना किया जा सकता है। इस सत्र का संचालन माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय की पत्रकारिता विभाग की प्रमुख राखी तिवारी ने किया।
हम स्वयं से प्रतिस्पर्धा रखें
दूसरे सत्र में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की पूर्व विभागाध्यक्ष छाया रॉय की अध्यक्षता में विमर्श हुआ। सत्र की शुरुआत करते हुए ऋतु शर्मा ने कहा कि हमारी प्रतिस्पर्धा स्वयं से हो न कि किसी लिंग विशेष से। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे विषय जिन्हें समाज में वर्जित माना जाता है उन पर समझ विकसित कर यदि लिखें तो शायद हम समाज में फैली कई भ्रांतियों को तोड़ सकते हैं। बाल भास्कर की सहायक संपादक इंदिरा त्रिवेदी ने भाषायी समझ विकसित करने पर जोर दिया। अध्यक्षता कर रही प्रो. रॉय ने कहा कि पत्रकारों पर बहुत दायित्व है। खासकर राष्ट्र और समाज के प्रति। इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही कार्य करें।
दो दिनी संगोष्ठी का सार पेश करते हुए पत्रकारिता के प्राध्यापक प्रो. पुष्पेंद्रपाल सिंह ने कहा कि हम अमेरिका या यूरोप की बातें तो करते हैं लेकिन आंकड़े बताते हैं कि वहां भी मीडिया में महिलाओं की भूमिका हमारे यहां से ज्यादा नहीं है। रूस और स्वीडन जैसे देशों में यह संख्या अच्छी है जबकि जर्मनी में बराबरी की संख्या है। इन अर्थों में कह सकते हैं कि सभी जगह समान स्थितियां हैं। उन्होंने कहा कि महिला पत्रकारों से जुड़े विषयों पर चर्चा करते समय हम केवल इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पर ही केन्द्रित न रहें बल्कि हमें साहित्य, फिल्म आदि विषयों को भी केन्द्र में रखना चाहिए।
सप्रे संग्रहालय के संस्थापक संयोजक विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि इस आयोजन के जरिए हम महिला पत्रकारिता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की शुरुआत कर रहे हैं। आने वाले समय में इसका और व्यापक रूप होगा इसमें नई पीढ़ी की सहभागिता बढ़ाएंगें। इस सत्र का संचालन डा. अल्पना त्रिवेदी ने किया।
छात्रों से संवाद भी हुए
इसके पूर्व इलेक्ट्रानिक मीडिया के विशेषज्ञ राजेश बादल तथा वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत नायडु ने विद्यार्थियों से संवाद किया। राजेश बादल ने कहा कि एक पत्रकार के पास शब्द भंडार होना चाहिए। विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एंकर या रिपोर्टर के लिए तो आवश्यक हैं। अन्यथा उसे कई बार स्क्रीन पर परेशानी का सामना करना पड़ जाता है। उन्होंने खबरों की विश्वसनीयता और तथ्यात्मकता पर भी जोर दिया। चंद्रकांत नायडु ने कहा कि एक पत्रकार में उत्सुकता होनी चाहिए तभी वह खबर की तह तक जा सकेगा। इस सत्र में विद्यार्थियों ने सवाल कर अपनी जिज्ञासाओं को भी शांत किया। इस अवसर पर आत्मानुशासन तथा स्वयं की बेहतरी के लिए सर्वसम्मति से संकल्प पत्र भी जारी किया गया।
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