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विश्व पत्रकारिता दिवस:पत्रकार काम करते हुए मरते हैं शहीद नहीं होते

मीडिया            May 03, 2019


राकेश दुबे।
आज 3 मई है। आज से 44 साल पहले आज ही की तारीख में 1975 को इस वृत्ति को चुन कर समाचारों की दुनिया में रिपोर्टर के रूप दाखिल हुआ था। कई उतार-चढाव देखे। पत्रकारीय दुनिया के कई मित्रों पर हमले, उनकी सरल जिन्दगी पर असहनीय कष्टों से भरी देखी। लिखने को लेकर किये गये हमले का स्वाद भी चखा।

पत्रकारों के खून से रक्तरंजित कई कहानियाँ पढ़ी, सुनी। दुर्भाग्य से कर्तव्य पर शहीद किसी भी पत्रकार की मौत को शहादत का दर्जा नहीं मिला। 3 मई एक तारीख है, हर साल आती है, इस साल भी आई है।

भारत पिछले साल के मुक़ाबले दो पायदान नीचे गिरा है, भारत 138 वें नंबर से खिसककर 140 वें स्थान पर आ गया है। 2017 में भारत 136 वें स्थान पर था। यह गिरावट लगातार हो रही है।

2018 में भारत में कम-से-कम छह पत्रकार अपना काम करने की वजह से मारे गए हैं। कोई कुछ भी कहे, मैं उन्हें शहीद मानता हूँ। कर्तव्य की प्राथमिकता, मौत की भी चिंता न करना शहादत है, इसे स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए । विश्व में अपने कर्तव्य पर शहीद समस्त पत्रकारों को प्रणाम।

1991 में यूनेस्को के आम सम्मेलन के छठे सत्र में अपनाई गई एक सिफारिश के बाद 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया। यह दिवस प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन के बारे में नागरिकों को सूचित करने का कार्य करता है।

एक चेतावनी है कि दुनिया भर के दर्जनों देशों में प्रकाशनों को सेंसर, जुर्माना, निलंबित और बंद कर दिया जाता है। जबकि पत्रकारों, संपादकों और प्रकाशकों को परेशान किया जाता है, उन पर हमला किया जाता है। हिरासत में लिया जाता है और यहां तक कि उन्हें गिरफ्तार भी किया जाता हैऔर हत्या कर दी जाती है।

सही मायने में यह प्रेस की स्वतंत्रता के पक्ष में एक पहल को प्रोत्साहित करने और विकसित करने और दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति का आकलन करने की एक तारीख है।

“रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स या रिपोर्टर्स सां फ्रांतिए” अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारिता की स्वतंत्रता की स्थिति पर सालाना रिपोर्ट जारी करती है। उसका आकलन है भारत पिछले साल के मुक़ाबले दो पायदान नीचे गिरा है, भारत 138वें नंबर से खिसककर 140 वें स्थान पर आ गया है, 2017 में भारत 136 वें स्थान पर था यानी यह लगातार हो रही गिरावट है।

रिपोर्ट बताती है कि 2018 में भारत में कम-से-कम छह पत्रकार अपना काम करने के दौरान मारे गये हैं। पत्रकारों की आवाज़ दबाए जाने के बारे में रिपोर्ट कहती है, "सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के खिलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज किए जाते हैं, कुछ मामलों में तो राजद्रोह का केस दर्ज किया जाता है जिसमें आजीवन कारावास की सज़ा हो सकती है।"

अब एक नया चलन चला है "उन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर संगठित तरीक़े से नफ़रत का अभियान चलाया जाता है जो ऐसे विषयों को उठाने की हिम्मत करते हैं जिनसे वर्ग विशेष के समर्थकों को चिढ़ है।

कई बार तो पत्रकारों को जान से मारने की धमकी भी दी जाती है| अगर पत्रकार महिला हो तो उसका हश्र और भी बुरा होता है।"जिन क्षेत्रों को सरकार ने संवेदनशील घोषित कर देती है, वहां से रिपोर्टिंग करना बेहद मुश्किल है। जैसे काश्मीर दूसरे राज्यों के पत्रकारों के कश्मीर जाने पर कई बार रोक लगाई गई है और वहां इंटरनेट अक्सर बंद कर दिया जाता है।"

प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स में नार्वे पहले नंबर पर है, पहले 10 देशों में ज़्यादातर उत्तरी यूरोप यानी स्कैंडेनेविया के हैं, इनमें न्यूज़ीलैंड और कनाडा भी काफ़ी ऊपर है। पत्रकारिता की स्वतंत्रता के मामले में भारत पड़ोसी देशों नेपाल और श्रीलंका से भी नीचे है।

अगर पाकिस्तान से तुलना करें तो वह भारत से सिर्फ़ दो पायदान नीचे, 142 वें नंबर पर है। ब्रिटेन 33 वें नंबर पर और अमरीका 48 वें नंबर पर है। पत्रकार सब जगह काम करते हुए मरते हैं, शहीद नहीं होते।

 


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