मल्हार मीडिया डेस्क।
हिन्दुस्तान टाइम्स में कोई वेतन बोर्ड का कर्मचारी नहीं
3. टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय की सच्चा ई .......?
टाइम्स ऑफ इंडिया का कहना कि “ALREADY .IMPLEMENTATION OF THE LATEST WAGE BOARD RECOMMENDATIONS HAS BLED A NUMBER OF PRINT COMPANIES TO THE POINT OF SICKNESS.”
पिछली कड़ी में आपने देखा हिन्दुस्तान टाइम्स ने मजीठिया वेतनमान अपने यहां लागू नहीं किया क्योंकि एचटी प्रबंधन की नजर में उसके यहां कोई वेज बोर्ड का कर्मचारी है ही नहीं। इसलिए मजीठिया वेज बोर्ड के कारण उसका खून चूसे जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। इस अखबार के बारे में यह कहना जरूरी है कि प्रबंधन ने अपना वेतनमान बना रखा है। इसके यहां प्रशिक्षु पत्रकारों और नियमित पत्रकारों के वेतन में सिर्फ पांच हजार का ही अंतर है। हिन्दू का दावा है कि उसके सभी कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन एवं अन्य सुविधाएं दी जा रही हैं। इसकी हकीकत की जांच की जानी चाहिए क्योंकि खबर है कि खानापूर्ति के लिए वहां कुछ ही को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन एवं अन्य सुविधाएं दी जा रही हैं।
इस भाग में हम आपको फिर से मजीठिया वेज बोर्ड की श्रेणियों और संशोधित वेतन की तालिका पेश करेंगे। लेकिन इससे पहले यह कि मजीठिया वेज बोर्ड की रिपोर्ट में अखबारों की माली हालत को देखते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि ये बोझ ये बर्दाश्त कर सकते हैं।
सिफारिश के अनुसार श्रेणी-I से लेकर श्रेणी-IV के अखबारों के कर्मचारियों के बेसिक वेतनमान में इससे करीब 2.90 से 3.20 गुना बढ़ोतरी हेागी और श्रेणी- V से लेकर श्रेणी-VIII के अखबारों के कर्मचारियों के बेसिक वेतनमान में इससे करीब 2.80 से 3.08 गुना बढ़ोतरी होगी।( देखें मजीठिया वेज बोर्ड की रिपोर्ट का पृष्ठ 72)
वैरिएबल के साथ बेसिक वेतन में 2.90 से 3.20 और 2.80 से 3.08 गुना की बढ़ोतरी होनी थी। लेकिन जहां भी सिफारिश लागू की गई वेतन 100 फीसदी से भी कम बढ़ा। (पीटीआई का उदाहरण सामने है।)
अब पूरे देश का हाल देखिए- मजीठिया वेतनमान, असम ट्रिब्यून ,ट्रिब्यून, आनंद बाजार पत्रिका में पूरी तरह लागू किए जाने की चर्चा है। हकीकत ये है कि ट्रिब्यून में ठेके पर रखे गए कर्मचारियों को इसका पूरा लाभ नहीं दिया गया। अन्य किसी भी अखबार ने मजीठिया वेतमान को अपने यहां लागू नहीं किया। इन अखबारों में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका , राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला(आंशिक) , नवभारत टाइम्स्, जनसत्ता, प्रभात खबर, नवभारत, नई दुनिया,सकाल, दिव्य भास्कर,आज, इंडियन एक्सप्रेस, लोकमत समाचार आदि देश के बड़े अखबार समूहों ने इसे लागू करने की जरूरत नहीं समझा। इनमें कुछ ऐसे भी अखबार है जो आजादी के बाद से किसी भी वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू नहीं किया।( आरटीआई आवेदन के जवाब में रोजगार एवं श्रम मंत्रालय ने यह जानाकरी दी है।) इनमें प्रमुख रूप से दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर और सकाल जैसे बहुसंस्करण वाले समूहों का नाम उल्लेखनीय है।( मजीठिया वेज बोर्ड न लागू करने के आरोप में सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे अवमानना के केस 411/ 2014, अभिषेक राजा एवं अन्ये बनाम संजय गुप्ता के मामले में दायर हलफनामों तथा सबूतों को देखें)
इनमें कुछ अखबारों ने अपने कर्मचारियों से मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों में उल्लेेखित 20 जे का हवाला देकर कहा है कि उन्होंने अपने यहां वेज बोर्ड को लागू कर दिया है। (यह कानूनी पहलू है, इस पर चर्चा आगे होगी।) इनमें प्रमुख रूप से दैनिक जागरण, दैनिक भास्करऔर राजस्थान पत्रिका जैसे बहुसंस्करण वाले समूहों का नाम उल्ले्खनीय है। इतना ही नहीं श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने एक आरटीआई आवेदन के जवाब में 11 जुलाई 2012 को यह स्पएष्ट कर दिया है कि गठित किसी भी आयोग की सिफारिशों को लागू कराने की जिम्मेदारी राज्य की है और इस मामले कोई सर्वे या रिपोर्ट तैयार नहीं कराई गई है।
अब सवाल उठता है कि जब किसी अखबार ने मजीठिया वेतनमान को लागू ही नहीं किया तो उनका खून कैसे बहा….? दूसरी बात यह कि सिफारिश में साफ किया गया है कि बेसिक वेतन में 2.90 से 3.20 और 2.80 से 3.08 गुना की बढ़ोतरी होनी थी। और टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार बढ़ा सिर्फ 40- 50 फीसदी और वह भी एकदम झूठ।
यह भाग अधिक विस्तृत हो गया है। इसलिए इस भाग को दो उपभागों में बांट कर अगली कडि़यों के रूप में पेश किया जा रहा है। इन उपभागों में टाइम्स ऑफ इंडिया के इस दावे को मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के आलोक में अन्य अखबारों में मिल रहे वेतन की तुलना में परीक्षण करेंगे।
अगली कड़ी में कर्मचारियों पर 58 प्रतिशत अधिक खर्च के कारण पड़े बोझ की सच्चाई भाग-3....... जारी
मजीठिया मंच फेसबुक पेज से।
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