मल्हार मीडिया डेस्क।
मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने का सच
2. टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय की सच्चाई .......?
टाइम्स ऑफ इंडिया कहता है- नवीनतम वेतन बोर्ड की सिफारिशों के क्रियान्वंयन ने अखबारों का इतना खून चूस लिया या उनके शब्दों में इसके कारण हुए घाव से इतना खून बहा कि अखबार बीमार हो गए। इस कारण और कम विज्ञापन, लाभ में कमी तथा डीएवीपी के विज्ञापन दरों में बढ़ोतरी न होने से तथा कगाज के दाम बढ़ने से 2011-12 से 2015-16 में सीएजीआर राजस्वं में केवल 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि श्रम शक्ति में 58 फीसदी की वृद्धि बड़े अखबारों को सहना पड़ा।
हकीकत- एक तो ये बड़े अखबार हमेशा मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को खलनायक बना कर बहुत कुछ इन सिफारिशों के खिलाफ अनर्गल और अतिशंयोक्तिपूर्ण आरोप लगाते हैं और अपने माध्यमों का गलत इस्तेमाल कर अफवाह फैलाते हैं। सच में देखा जाए तो देश के कोई भी अखबार या मीडिया ने इस रिपोर्ट को कभी भी न तो आंशिक रूप से और न ही पूर्ण रूप से आम लोगों के सामने लाने की कोशिश की है। बस रिपोर्ट में ये कहा गया है रिपोर्ट में वो कहा गया है। हम सभी मीडिया संस्थानों को रिपोर्ट के तथ्यों कोऔर दोनों पक्षों के साथ आम आदमी के सामने लाने की चुनौती देते हैं।
बहरहाल भारत के किसी भी मीडिया संस्थालन में यह कूवत नहीं है। हम पहले भी इस बोर्ड की सिफारिशों को सार्वजनिक करते रहे हैं और आज फिर इसके कुछ मुख्य् अंशों को सामने रखते हुए टाइम्स ऑफ इंडिया के इन दावों की हकीकत की जांच करते हैं।
सबसे पहले तो यह कहना कि “ALREADY. IMPLEMENTATION OF THE LATEST WAGE BOARD RECOMMENDATIONS HAS BLED A NUMBER OF PRINT COMPANIES TO THE POINT OF SICKNESS.”
i यह एक दम झूठ है
देश के एक दो अखबारों को छोड़कर किसी ने भी मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू नहीं किया है। और जहां लागू की गई हैं वहां भी बहुत ही बेईमानी और शरारतपूर्ण तरीके से कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने के बजाय घटा दिए गए हैं। खुद टाइम्सं ऑफ इंडिया के कर्मचारी इस बेईमानी और धूर्तता के शिकार हुए हैं। (सर्वोच्च न्याेयालय में दायर याचिका और हलफनामे में मालिकों की इस बेईमानी और धूर्तता की पोल खोली गई है।)
ii अब 58 प्रतिशत और सिफारिशों की हकीकत दिल्लीं से
जिस बड़े कथित राष्ट्रीय अखबार की बिना नाम लिए इस संपादकीय में बार-बार चर्चा की जा रही है, वह अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स है। हिन्दु़स्ता्न टाइम्स के मुख्यालय, नई दिल्लीा में ऑन रिकार्ड कोई वेज बोर्ड के तहत आने वाला कर्मचारी काम नहीं करता और यह हम नहीं उप श्रम आयुक्त के यहां जमा अपनी रिपोर्ट में हिन्दुास्तान टाइम्स के प्रबंधन ने कहा है। (इसकी कॉपी कोई भी आरटीआई कानून के तहत आवेदन कर प्राप्त। कर सकता है।) हिन्दू के प्रबंधन ने भी उप श्रमायुक्त के यहां जमा अपनी रिपोर्ट में श्रमायुक्त द्वारा भेजी गई 19 प्रश्नों की सूची का जवाब दिया है बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतन देने का दावा किया है। लेकिन कर्मचारियों के वेतन का हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार विस्तृत व्योरा नहीं दिया है। खबर है कि हिन्दू अपना ही वेतमान लागू करता है।
Iii पीटीआई के बारे में कहा गया है कि इसके कर्मचारियों के वेतन में मजीठिया वेतनमान के कारण 173 फीसदी का इजाफा हुआ है। हम यहां उप श्रमायुक्ता के यहां जमा रिपोर्ट में एक कर्मचारी के वेतना का नमूने के तौर पर पेश कर रहे हैं।
एक कर्मचारी का वेतन नवंबर 2011 में बेसिक+ वीपी +डीए+एचआरए+ट्रांसपोर्ट भत्ता+मेडिकल + एचएस =36361 रुपये मजठिया के अनुसार था जो मार्च 2014 तक आते –आते +डीए+एचआरए+ट्रांसपोर्ट भत्ताे+मेडिकल भत्ता+ + एचएस =69302 रुपये हो गया।
इसी कर्मचारी का मणिसाना वेतनमान के अनुसार पुराना वेतन इस प्रकार था- नवंबर 2011 में बेसिक+ डीए+आईआर+एचआरए+सीसीए +ट्रांसपोर्ट भत्ता+मेडिकल के + एचएस =21,075 रुपये थे जो मार्च 2014 में बेसिक+ डीए +आईआर+एचआरए+सीसीए +ट्रांसपोर्ट भत्ता7+मेडिकल के + एचएस = 38,282 रुपये हो गया।
पिछले तीन सालों के दौरान पीटीआई कर्मचारियों के वेतन में 100 प्रतिशत से भी कम की वृद्धि हुई। अगर 100 प्रतिशत भी वेतन बढ़ता तो यह क्रमश: 42,150 और 76,564 रुपये होता। इस वृद्धि के भी कई पहलू हैं। भत्तों को निकाल दें तो वेतन का भाग कितना बचेगा यह भी विचारणीय प्रश्न् है। इसलिए टाइम्स आफ इंडिया का कहना कि पीटीआई कर्मचारियों के वेतन में 173 फीसदी का इजाफा हुआ है भ्रामक ही नहीं तथ्यों से परे भी है।
पीटीआई कर्मचारियों के बारे में दो बातें और भी कहनी है- एक तो यह कि यह वेतनमान संस्थान में रखे गए ठेके के कर्मचारियों पर लागू नहीं होता। उन्हें केवल 35 प्रतिशत वैरिएबल ही दिया गया और एरियर नहीं दिया गया। मजीठिया वेतनमान के तहत आने वाले कर्मचारियों को एरियर की अंतिम किस्त आखिरकार पिछले महीने मिल गई ।
दूसरी यह कि संस्था्न ने श्रमजीवी पत्रकार एवं अन्य गैर पत्रकार समाचार पत्र (सेवा शर्तें ) एवं प्रकीर्ण प्रावधान अधिनियम, 1955 के श्रमजीवी पत्रकारों के लिए तय ड्यूटी की दैनिक अवधि में भी बदलाव कर दिया है। इस अधिनियम की धारा 8 के अनुसार किसी भी हाल में श्रमजीवी पत्रकार के लिए भोजनावकाश के समय को छोड़कर प्रतिदिन का काम करने का समय छह घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए। पीटीआई ने इस कानून का उल्लंघन कर एक नया शिफ्ट बनाया है और श्रमजीवी पत्रकारों से आठ घंटे काम ले रही है। इस हिसाब से भी वेतन 173 या 100 प्रतिशत नहीं बढ़ा।
यह भाग अधिक विस्तृत हो गया है। इसलिए इस भाग को तीन भागों में बांट कर अगली कडि़यों के रूप में पेश किया जा रहा है। इन उपभागों में टाइम्स ऑफ इंडिया के इस दावे को मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के आलोक में अन्य अखबारों में मिल रहे वेतन की तुलना में परीक्षण करेंगे।
अगली कड़ी में कर्मचारियों पर 58 प्रतिशत अधिक खर्च के कारण पड़े बोझ की सच्चाई
भाग-2....... जारी
मजीठिया मंच फेसबुक वॉल से।
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