राजेंद्र सेन।
बदरुद्दीन अजमल के बड़े चर्चे सुने हैं,,,, सुना है पत्रकार के मुंह पे माइक दे मारा, गालियां भी दी। अच्छी बात है मतलब पत्रकारिता का ख़ौफ़ रखते हो अपने अंदर ,,, सही है।
यही तो हम पत्रकारों की जीत है, पूंजी है और पत्रकारिता में जुनूनी होने का पायदान भी। क्या सोच रहे हो आपकी बचकानी हरकतों से भारतीय पत्रकारिता शून्य हो जाएगी, अपना काम करना बंद कर देगी जनाब इतिहास तो टटोल लेते, किसी से सुन ही लेते भारतीय पत्रकारिता के गौरवमयी इतिहास के बारे में यूं ही मुँह उठाकर चले आये पत्रकार वार्ता करने।
'प्रताप' के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी दंगाइओं का शिकार हुए जान देदी पर अपना कर्म नहीं छोड़ा, 'पूरा सच' (दैनिक समाचार पत्र) के संपादक रामचंद्र छत्रपति डेरा सच्चा सौदा का भंडाफोड़ करने वाले एक अदने से पत्रकार ने राम रहीम को समाज के सामने नंगा करके रख दिया, गौरी लंकेश घर के सामने गोलियों से भून दिया गया।
मैं जिस प्रदेश (मध्यप्रदेश) का निवासी हूँ वहां वर्ष 2018 में 80 पत्रकारों की हत्याएं हुई हैं और अभी साल पूरा होने में 4 दिन शेष हैं। न जाने कब कौन सी अनहोनी घट जाए।
तो जनाब ये खेल भारतीय पत्रकारिता के लिए कोई नया नहीं है आप डराइये मत धमकाईये मत इन सब से कुछ होने वाला नहीं है जिम्मेदार बनिये और ससम्मान मीडिया का सामना करिये।
दकियानूसी हरकतों में कुछ नहीं रखा याद रखिये मरना एक दिन सबको है अमृतपान करके कोई नहीं आया।
आपकी इस हरकत पर हार्दिक लानतें!
फेसबुक वॉल से।
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