डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
फेसबुक से चिपके रहने वालों, सावधान! फेसबुक आपको अवसादग्रस्त कर सकता है। अगर आप किसी बात पर निराश हों, थके हुए हो और अच्छा महसूस नहीं कर रहे हों, तब भूलकर भी सोशल मीडिया वेबसाइट्स न खोलें। सोशल मीडिया आपको अवसादग्रस्त कर सकता है। यह बात सच है और अनेक अध्ययनोें के बाद इस नतीजे पर पहुंचा गया है।
‘सोशल नेटवर्किंग रिव्यू’ पत्रिका में सायबर साइकोलॉजी और मानव व्यवहार पर तरह-तरह के अध्ययन की रिपोर्ट प्रकाशित होती रहती है। हाल ही में इस पत्रिका में सायबर साइकोलॉजी और मानव व्यवहार को लेकर 14 देशों में हुए तीस से ज्यादा अध्ययन का विश्लेषण करके एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। 35 हजार लोगों ने इस अध्ययन में हिस्सा लिया। पूरे अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर जाकर लोग खुश तो होते है, लेकिन इसके विपरीत व्यवहार भी लोगों में देखने को मिलता है। आमतौर पर लोग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपने मित्रों के स्टेट्स पर पढ़ते है और उससे अपनी तुलना करते है।
अधिकांश मामलों में यह तुलना निराशाजनक साबित होती है और मित्रों की उपलब्धियों, व्यवहार और चित्रों से दूसरे लोग अवसाद के शिकार हो जाते हैं। आपने अपने मित्र का स्टेटस देखा कि वह स्विटजरलैंड में छुट्टियां बिता रहा है या मकाऊ में गुलछर्रे उड़ा रहा है या पेरिस में शामें रंगीन कर रहा है। कुछ लोगों को तो इससे खुशी होती है और वे वहां लाइक का बटन दबाकर खुशी का इजहार भी कर देते है, कई लोग बधाई भी लिख देते है, लेकिन इसके बावजूद कई लोग ऐसे होते है, जो ऐसे स्टेटस से अवसादग्रस्त होने लगते है, उनमें हीनता की भावना तेजी से बल पकड़ती जाती है जो उन्हें गहरी परेशानी में ले जा सकती है।
किशोर और युवा वर्ग के लोग जब सोशल मीडिया पर अपने मित्रों के चित्र देखते हैं, उनकी सुंदर तस्वीरें उनके ही मित्रों के लिए ईष्र्या का कारण बन जाती है और कई बार वे अपने बारे में अनुचित ख्याल भी ले आते है। सोशल मीडिया पर खासकर फेसबुक पर अधिकांश लोग अपने मित्रों के स्टेटस से अपनी तुलना करते है और कमतर पाए जाने पर निराश हो जाते हैं। सोशल मीडिया के मानसिक प्रभाव पर सैकड़ों अध्ययन हो चुके हैं। निष्कर्ष यही निकला है कि सोशल मीडिया को आप किस तरह लेते है, यही आपके मानसिक व्यवहार और स्वास्थ्य का पैमाना होता है। अपने ही मित्रों से तुलना करके भी कुछ लोग अपने आप को सुधारने का प्रयत्न करते है, लेकिन सब ऐसा करे, यह संभव नहीं है। मित्र के सामने होने पर उससे तुलना करना उतना बुरा नहीं है, जितना सोशल मीडिया पर मित्र से तुलना करके हीनता की भावना अपने मन में भर लेना बुरा है। जब मित्र आपके सामने रुबरू होता है, तब आप उससे बातचीत कर सकते है। आपका मित्र भी आपकी तारीफ कर सकता है और बात बराबरी पर निपट सकती है। सोशल मीडिया में तुलना करने पर ऐसा नहीं होता।
अध्ययन के निष्कर्षों में एक निष्कर्ष यह भी है कि वच्र्युअल लाइफ में आप भी उतने ही सक्षम और सुंदर हो सकते हैं। वच्र्युअल लाइफ में किसी को देखने पर लगता है कि सामने वाले के लिए जिंदगी फूलों की सेज है। वास्तव में ऐसा नहीं है। आपका कोई मित्र पर्वतारोहण कर रहा है। रास्ते में उसे दर्जनों परेशानियां आ रही है, लेकिन शिखर पर जाने के बाद वह अपना हंसता-खिलखिलाता और गर्वन्मत चित्र जब सोशल मीडिया पर शेयर करता है, तब एक झटके में आपको उसकी उपलब्धियों पर गर्व के साथ ही ईष्र्या का भाव भी हो सकता है। जब आप सोशल मीडिया पर उसकी तस्वीर देख रहे हो, तब संभव है कि वह वापस लौटकर रोजमर्रा के जीवन में संघर्ष कर रहा हो।
सोशल मीडिया पर शेयर की जाने वाली सेल्फी का भी प्रभाव लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। जो लोग ग्रुप में सेल्फी लेते दिखते है, वे ज्यादा चीयरफुल नजर आते है। या वे ऐसी सेल्फी ही शेयर करते है, जिसमें वे ज्यादा सुंदर और खुशमिजाज लगें। सेल्फी में शामिल दूसरे मित्र शायद इतने खुशमिजाज न नजर आते हो। इसका कारण यह भी हो सकता है कि सेल्फी लेते वक्त उनका मूड कुछ और हो। सेल्फी लेने वाला व्यक्ति तो जानता ही है कि वह किस तरह के पोज में ज्यादा आकर्षक नजर आता है। पश्चिमी देशों में इस तरह की सेल्फी प्रेमी-प्रेमिकाओं के जीवन पर बहुत ज्यादा बुरा असर डाल रही है। हमारे यहां भी ऐसा ही होगा, लेकिन इस बारे में कोई विशेष अध्ययन नहीं किया गया है।
हाल ही में हुए एक और अध्ययन का विषय था कि क्या लोग सोशल मीडिया के कारण अवसादग्रस्त होते है या फिर अवसादग्रस्त लोग सोशल मीडिया का उपयोग करते ज्यादा नजर आते है? अध्ययन का नतीजा कहता है कि जो लोग अवसादग्रस्त होते है, वे आमतौर पर अपने परिवार के लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं करते है। मित्रों का साथ भी उन्हें गवारा नहीं होता। वे लोग सोशल मीडिया पर घंटों बिताते हैं। रात को नींद नहीं आने की दशा में वे सोशल मीडिया की वेबसाइट में घुस जाते हैं। मोबाइल इंटरनेट के कारण वे बिस्तर पर लेटे-लेटे ही घंटों सोशल मीडिया पर बिता देते हैं। वे सक्रिय हैं, इसलिए उन्हें नींद नहीं आती और उन्हें नींद नहीं आती, इसलिए वे पूरी तरह स्वस्थ महसूस नहीं करते। इसलिए अगर आप कभी निराश हो तब कभी भी सोशल मीडिया पर जाने की न सोचें। जब आपका मूड अच्छा हो और आप स्वस्थ महसूस कर रहे हो, तब सोशल मीडिया का उपयोग नुकसानदेय नहीं होगा। हाल के अध्ययनों से यह भी पता चला है कि जिन लोगों ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल छोड़ दिया या कम से कम करने लगे, उनकी सेहत में अच्छा सुधार नजर आने लगा है।
रोटी, कपड़ा और मकान के बाद अब आदमी की प्राथमिकता सोशल मीडिया भी हो गई है। इस सोशल मीडिया का उपयोग किस तरह करना है और कितना करना है, यह उसकी बुद्धिमता पर निर्भर है। एक अलग अध्ययन में पता चला कि दुनिया की कई जानी-मानी सेलेब्रिटीज सुनियोजित तरीके से सोशल मीडिया से दूर होती जा रही हैं। कुछ लोगों ने तो सोशल मीडिया को लेकर इतने कड़े निर्णय किए कि सोशल मीडिया को अलविदा ही कह दिया। वह भी घोषणा करके कि हम कभी सोशल मीडिया पर नजर नहीं आएंगे। वेस्ट वल्र्ड की स्टार राचेल वुड दो दिन पहले सोशल मीडिया से ब्रेक ले चुकी हैं। उनका कहना है कि सोशल मीडिया पर मुझे मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से प्रताड़ित ही किया गया है।
सोशल मीडिया के कारण ही सेलेना गोमेज को अपनी मनोचिकित्सा के लिए रिहेबिटेशन सेंटर में रहना पड़ा था। पॉपस्टार सेलेना गोमेज वापस इंस्टाग्राम पर दिखी भी पर वहां उन्होंने केवल अपने फैन्स को धन्यवाद दिया, यह कहते हुए कि उन्होंने बुरे समय में साथ दिया। जस्टिन बीबर भी सोशल मीडिया से तौबा कर चुके हैं। उन्होंने तो इंस्टाग्राम को शैतान तक कह डाला और कहा कि वे कभी भी सोशल मीडिया पर वापस नहीं आएंगे। कैंडल जेनर दुनिया की जानी-मानी मॉडल है और वे केवल 21 साल की हैं। उन्होंने तो अपना इंस्टाग्राम अकाउंट ही डिएक्टीवेट कर दिया है। जिस इंस्टाग्राम पर उनके लाखों फॉलोअर्स थे, उससे तौबा करते हुए उन्होंने कहा कि यह परेशानी की वजह ज्यादा है। स्टार वार्स की अभिनेत्री डेजी रिडले ने इंस्टाग्राम और फेसबुक दोनों से ही तौबा कर ली हैं। अनेक सेलेब्रिटीज ने अपने सोशल मीडिया पेज को प्राइवेट कर लिया है यानी अब उनकी गतिविधियां केवल उनके खास-खास दोस्तों को ही नजर आएगी।
प्रकाश हिंदुस्तानी डॉटकाम से।
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