रजनीश जैन, रविंद्र भवन सागर से।
मध्यप्रदेश के सागर में हुये एक पत्रकार सम्मान समारोह में 150 पत्रकारों का सम्मान किया गया लेकिन नजारे अजब गजब हो गये। पढ़ें पूरा ब्ययौ सागर के वरिष्ठ पत्रकार की कलम से।
आज का दिन पत्रकारों के सम्मान का था। सारे दिन पत्रकार सम्मानित होते रहे। भाषण वाले भी बुलाये गये थे। हरेक भाषण के बाद फिर सम्मान का रेला चलता और फिर भाषण। तकरीबन डेढ़ सौ को सम्मानित करने के बाद सब खत्म हो गया। अर्थात न मोमेंटो बचे,न सम्मानपत्र,न मालाऐं। पत्रकारों के हिस्से यही था।शाल श्रीफल वगैरह मंचासीनों के निमित्त थे सो उन्होंने आपस में ले लिऐ। मोमेंटो की दो वैरायटियाँ थीं। बड़ी और छोटी। जाहिर है बड़ी शाल श्रीफल वालों के लिऐ थीं छोटी पत्रकारों के लिऐ।
आयोजकों ने मँचासीनों में भी वैरायटी का खयाल सावधानी से रखा था।...हाई ग्रेड से लेकर फुटपाथ तक विस्तार था। कार्यक्रम के पश्चात इन्हीं में से एक मंचासीन का मोमेंटो खो गया जो उनके सकल सम्मान का प्रतीक था।वे ढूंढ़ते हुए एक अन्य संदेही मंचासीन तक पहुँचे और बड़े ही अदब से दर्याफ्त किया...भाईसाब वो पटला कहाँ है? ...संदेही इंजीनियर कम नेता थे,वैसी ही मासूमियत से बोले कैंसो पटला? ...अरे बोई जो सब खों मिलो है पटला सो! पास खड़े एक सुधीजन समझ गये ,धीरे से उन्होंने बताया कि ये मोमेंटो की कह रय हैं।...संदेही ने तुरंत अपने ड्राइवर को बुलाया जिसने साफ किया कि भैय्या उनके गाड़ी में जो है वो उन्हीं का सम्मान है।
....लेकिन सबसे बड़ा संकट तो पत्रकारों के सम्मानों का था। मंचासीन अतिथियों में से एक समाजवादी चिंतक रघुठाकुर ने अपने भाषण में पत्र, पत्रकारिता, मजीठिया वेतनमान वगैरह को टटोलते हुए एक महान बात कही, "... हम पत्रकारों से ऊँचे मानदंड और निष्पक्षता की उम्मीद करते हैं, लेकिन उनकी आर्थिक सुरक्षा की चिंता कोई नहीं करता, ऐसे में पत्रकार कहाँ तक ईमानदार रह पाऐगा।तुलसीदास जी भी कह गये हैं कि भूखे भजन न होय गोपाला, जा डरी तोरी कंठी माला।" ...यह सुनते ही श्रोता पत्रकारों को अपना सूत्रवाक्य मिल गया था। कानाफूसी शुरू हो गई। पंक्तियाँ रिक्त होने लगीं और आयोजनस्थल की ऊपरी मंजिल पर लगे खाने की टेबलों पर भीड़ बढ़ गयी।
लेकिन हरेक पत्रकार के पास उसके सम्मान की दुविधा थी। खाने की प्लेट संभालें या सम्मान संभालें। जिनकी जेबें बड़ी थीं उनके सम्मान उनकी जेबों में बन गये। पर बहुतों के पास यह सुविधा नहीं होती। आखिर हमेशा की तरह भूख की विजय हुई। पत्रकारों ने अपने सम्मान छत की ओर जाने वाली सीढ़ियों की नजर कर दिये। उनकी इस चिंता को काँग्रेस के नेता सुरेंद्र चौबे ने समझा जो कुछ महीने पहले ही, न जाने क्यों पत्रकारिता से जुड़ गये हैं। उन्होंने पत्रकारों से कहा आप लोग खाना खाओ मैं आपके सम्मानों की रक्षा करता हूँ। चौबे जी अपलक प्लेटों पर टूट पड़े पत्रकारों को देखे जा रहे थे और मैं चौबे जी को।
संपर्क:9425170820
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