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सियासती 24 घंटे सियासत करते हैं, चैनल आग से खेलने से बचें

मीडिया            Mar 06, 2019


राघवेंद्र सिंह।
कहावतें हैं डायन और सटोरिया भी एक घर छोड़कर चलते हैं। तभी सट्टे में लोग नाल भी काटते हैं और उसमें माल भी खाते हैं। एक समय देश में सट्टे का कारोबार आज के घटिया दौर में कहा जाए तो सट्टा सम्राट रतन खत्री के हाथों में हुआ करता था।

शाम को मटके का खुला बंद नंबर रतन खत्री जो खोलता था पूरे देश में उसी पर करोड़ों का कारोबार होता था। लेकिन तब खत्री को सटोरियों का सरगना ही माना जाता था।

आज के दौर में शायद उसे सट्टा सम्राट मान लेते। ऐसे ही गांव देहात में उन लोगों के लिए जो अपने घर परिवार और गांव देश से भी धोखा देने से बाज नहीं आते थे कहा जाता था-डायन से भी गए गुजरे हो गए हो वो भी एक घर छोड़कर चलती है।

पुलवामा के बाद क्या सत्ता क्या विपक्ष और क्या तो मीडिया खासतौर से नेशनल न्यूज चैनल डायनों से भी गए गुजरे हो गए हैं। ऐसा लगता है पत्रकारों का बड़ा समूह चुनाव हराने जिताने की सुपारी लिए हुए है।

पत्रकार के नाते उनसे निवेदन है वे मीडिया छोड़ फिर राजनीति ही करें। हंसना और गाल फुलाना दोनों एक साथ संभव नहीं है।

चुनाव दो माह बाद होने हैं मगर मीडिया के साथ महात्मा गांधी से लेकर राहुल प्रियंका तक की कांग्रेस समेत विपक्ष को लग रहा है सरकार कल ही बनने वाली है।

एयर स्ट्राइक में बालाकोट तक के नतीजों को लेकर मीडिया और सियासत के लाल बुझक्कड़ तरह तरह के अनुमान और सवाल कर रहे हैं। सीधी सी बात है कि देश झूठा सच्चा मुश्किल में जरूर है।

नरेन्द्र मोदी सत्ता बचाए रखने के लिए विपक्ष सत्ता में आने के लिए जमीन आसमान एक किए हुए है। कल तक राफेल सौदे में घिरी सरकार बैकफुट पर थी और राहुल बाबा के सवालों पर आंए बांए उत्तर आ रहे थे।

सबको लग रहा था इस बार राहुल बाबा की सरकार। प्रियंका दीदी ने आकर इसे और मजबूत कर दिया।

तभी पुलवामा कांड हुआ चालीस से अधिक जवान शहीद हो गए। पूरा देश सन्न रह गया। मोदी सरकार पर नाराजगी और आरोपों का दौर शुरू हुआ। पूछा गया कहां है छप्पन इंच का सीना। चौतरफा हमलों के बीच केन्द्र सरकार राफेल से भी बड़े संकट में फंस गई थी।

लानत मलामत के बाद खबर आती है सीमा पार कर भारतीय वायु सेना ने आतंकी अड्डों पर अटैक कर उन्हें तबाह कर दिया है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का एक सधा और परिपक्व बयान आता है ऐसे मौक पर वे सरकार सेना और देश के साथ हैं। इससे लोगों में उनके प्रति सम्मान में और इजाफा हुआ।

आखिर राहुल बाबा इंदिराजी के पोते हैं और वे अपने दिवंगत पिता प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की परंपरा को आगे लेकर चलने वाले हैं।

इसके बाद देश में देशभक्ति का जुनून बढ़ने लगा। मोदी और सेना की वाहवाही होने लगी।

ऐसा लगा चुनाव हुए तो मोदी की डूबती नैया पुलवामा और आतंकी अड्डों पर हवाई हमलों के बाद फिर से पार लग जाएगी।

बस यहीं से सियासी दलों और उनके नेताओं की गंभीरता परिपक्वता हवा होने लगी। उन्हें देश की जनता पर शायद भरोसा नहीं है इसलिए दांए बांए से लिहाज में ऐसे सवाल किए जा रहे हैं जो मोदी पर कम सेना की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते हैं।

मोदी को कमजोर करने की जल्दबाजी में ऐसे सवाल भी हो रहे हैं जो पाकिस्तान को लाभ पहुंचाते हैं। बस यहीं से मोदी के नंबर बढ़ना शुरू होते लगते हैं।

इस पूरे मामले में हम माननीय नेताओं के सवालों और उनके जवाबों का जिक्र नहीं करना चाहते बल्कि हैदराबाद के औवेसी का एक वीडियो याद आता है जिसमें वो पाकिस्तान की उस धमकी का जवाब देते दिख रहे हैं जिसमें पाक ने कहा था भारत में मंदिरों से घंटों की आवाजें आना बंद हो जाएंगी।

औवेसी ने कहा है ऐसा करने की कोशिश में पाकिस्तान की कई नस्लें खत्म हो जाएंगी मगर ये संभव नहीं है। उसने कहा कि जब तक हम हैं मस्जिदों से अजान की आवाज भी आएगी और मंदिरों में घंटे भी बजेंगे। उसने यह भी कहा कि यही भारत और उसकी जम्हूरियत की खूबसूरती है।

ऐसा कहकर औवेसी ने पूरे हिन्दुस्थान का दिल जीत लिया। जबकि औवेसी की छवि मुल्क के बजाए मुस्लिम परस्त मानी जाती थी।

वे मुसलमान हैं इसलिए बेशक उनके मुस्लिम परस्त होने पर किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए। जो हिन्दू हैं वे हिन्दू परस्त रहें तो क्या दिक्कत है।

कोई इससे इंकार करे तो समझ लीजिए कि वह झूठा है। असल मुद्दा ये है कि आप को सबसे पहले मुल्क परस्त होना चाहिए और कुछ भी कहें औवेसी इसमें आगे निकल गए।

सियासत करने वाले चौबीस घंटे केवल सियासत ही करते हैं। कोई उनके घर जाकर देखे तो उनके मां बाप, भाई बहन, पत्नी बच्चों के साथ भी वे तमाम फैसले सियासत के नजरिए से करते होंगे।

मगर उनसे गुजारिश है कि वे देश के मुद्दे पर कम से कम औवेसी बन जाएं और देश की जनता के विवेक पर भरोसा रखें। मतदाता किसी को मुगालते में नहीं रखता। जो भी मुगालते में रहे हैं मतदाता ने देर से ही सही उन्हें दुरूस्त जरूर किया है।

दो तीन उदाहरण हैं दिल्ली विधानसभा,कर्नाटक,गुजरात से लेकर मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,राजस्थान के चुनाव नतीजे वोटर के विवेक की मिसाल हैं।

दिल्ली में कांग्रेस भाजपा दोनों को हाशिए पर कर आप पार्टी को बहुमत दिया। गुजरात में डेढ़ सौ से कम सीटें मिलने पर जश्न नहीं मनाने का अहंकार पूर्ण दावा करने वाले दल को मतदाता ने 99 सीट पर रोक दिया।

कल्पना कीजिए दावा एक सौ पचास का था और सौ पार नहीं हो सके। मध्यप्रदेश में दौ सौ पार का दावा किया था सत्ता से सात सीट दूर बैरियर लगा दिया। लोकसभा में अब दावा है चार सौ पार का।

ऐसे में विपक्ष को मतदाताओं की मंशा पर भरोसा रखना चाहिए। उसे चतुराई से धूर्तता के साथ कोई भी समझाएगा नतीजा सूपड़ा साफ भले ही न हो पर सत्ता का सुख उसे पाने के लिए ऐड़ियां बहुत रगड़नी पड़ेगी।

मतदाता माई बाप है और नतीजे बताते हैं अभी तक उसने नेताओं के माई बाप होने का प्रमाण होने का प्रमाण भी दिया है।

इसलिए अधीर होने की जरूरत नहीं है धीरज रखना चाहिए अगर पुलवामा में बालाकोट एयर स्ट्राइक पर शक करने की बजाए सेना पर भरोसा रखने की जरूरत है क्योंकि अगर वो अविश्वसनीय हो गई तो फिर कुछ बचेगा नहीं।

आज नहीं तो कल सब डायन के शिकार हो जाएंगे।सेना है तो देश है और देश है तो हम हैं। सियासत और चुनाव के फैसले बदलने का भ्रम पालने वाले चैनलों को आग से खेलने से बचना चाहिए। अगर वे देशभक्त और तटस्थ हैं तो दिखना भी चाहिए। देश को इसी की दरकार है कृपया दया करें।

 



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