मल्हार मीडिया ब्यूरो।
सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखें तो प्रधानमंत्री आवास या इसके इर्द-गिर्द का इलाका काफी चाक-चौबंद मालूम होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। चोरो और झपटमारो ने इस इलाके में भी लोगों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया है। ताजा मामला तब देखने को मिला जब प्रधानमंत्री आवास से महज एक किलोमीटर की दूरी पर आउटलुक हिंदी पत्रिका में सहायक संपादक आकांक्षा पारे काशिव का मोबाइल बदमाशों ने ने छीन लिया।
आकांक्षा जोरबाग मेट्रों स्टेशन के आगे सफदरजंग मदरसा के पास खड़ी होकर फोन पर बातचीत कर रही थी इतने में ही झपटमारों ने उनका मोबाइल छीन लिया। आउटलुक के ही एक अन्य सहयोगी सतेंन्द्र प्रकाश का मोबाइल फोन 29 दिसंबर को गणेश नगर मदर डेयरी से गायब हो गया, जिसकी सूचना मंडावली थाने में दर्ज है।
आकांक्षा ने अपनी पूरी दांस्ता फेसबुक पर कुछ इस तरह से लिखा है- मित्रों, बताते हुए आपार हर्ष हो रहा है कि नए साल के ठीक दूसरे दिन सफदरजंग मदरसा से चंद कदमों की दूरी पर पुराने साल में खरीदा हुआ मोटो जी प्लस 4 लूट लिया गया। धूम की तर्ज पर बाइक सवार आए, फोन छीना दादागिरी से निकल लिए और हम खड़े-खड़े खाली हाथ लिए हुए बाइक सवारों को देखते रहे। इसके बाद तुगलक रोड थाने पर मैंने और पतिदेव ने बड़ी रोमांचकारी शाम बिताई। छह बजे वहां पहुंचे और रात पौने दस बजे जीवन की पहली एफआईआर दर्ज करा पाए। पहले हवलदार से लेकर दूसरे स्टाफ तक को पूरी कहानी सुनाई, फिर एसएचओ साहब के कहने पर मौका-ए-वारदात पर गए।
अभी तक सिर्फ हिंदी फिल्मों में यह सब देखा था, पर इस बार खुद पुलसिया रवैये से रूबरू हुए। पुलिस के ऐसे-एेसे सवाल पूछे, जिसकी बानगी ऐसी है- फिर किस दिशा में हम बेभुल्ले से खड़े थे, किस हाथ में फोन था, बाइक सवार कैसे थे, नंबर नोट क्यों नहीं किया जैसे सवाल के जवाब दिए। फिर सड़क पर फोन पर बात नहीं करना चाहिए का ज्ञान लिया।
मोबाइल का क्या है मैडम फिर आ जाएगा जैसी दर्शन से भरी बातें सुनी और इसके बाद एसआई साहब की ढुंढाई शुरू हुई क्योंकि रिपोर्ट उन्हें ही लिखनी थी। सादे कागज पर चार बार उनके हिसाब से शिकायत लिखी। अब आई टाइप करने की। तो जो आज तक हमने ठीक काम सीखा था उसमें हिंदी टाइपिंग ही शायद ऐसा ज्ञान था। अपनी एफआईआर खुद टाइप की और इस बीच पुलिस वालों से खूब गप्पे लगाईं। नई सरकार बनने के बाद भी व्यवस्था नहीं सुधरी जैसा सवाल पूछ कर हमने भी अपने ज्ञान को परखना चाहा। हवलदार ने हमें गहरे से ताकते हुए कहा, मैडम जी, व्यवस्था हम बनाते हैं और सरकार हमारे हिसाब से चलती है। गुड हम कहना चाहते थे। नहले पर दहला। तो जब हम ने उनकी और दो चीजें टाइप कीं तो उनके टाइपिस्ट ने एसआई को लगभग अनुरोध करते हुए कहा, जा मैडम भोत अच्छी है जनाब, इंका मोबाइल तो मिलने ही चाहिए।
और हां जाते-जाते हमने उनसे पूछ ही लिया, जब हम फिल्म देखते जाते हैं और एक पुलिस वाला थ्रीडी स्टाइल में हाथ निकाल कर कहता है, अब दस मिनट में एफआईआर और फिर पीछे से गाना बजता है, दिल्ली पुलिस, दिल्ली पुलिस…वो कौन सी पुलिस है। घड़ी ने दस बजा दिए थे हम सभी को धन्यवाद कर निकल लिए।
बात का लब्बोलुआब यूं से है कि बहुत से नंबर तो जीमेल मैया के पास है। पर जिनके न मिलेंगे उनके लिए फेर एक मैसेज लिखेंगे। और यदी फोन उठा कर पूछे के कौन बोल रहे हैं तो बुरा मत मानना मित्रों…
इनपुट समाचार4मीडिया।
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