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26 हफ्ते के अजन्मे बच्चे की जिंदगी का पर सुप्रीम कोर्ट से आया बंटा हुआ फैसला

राष्ट्रीय            Oct 11, 2023


मल्हार मीडिया ब्यूरो।

सुप्रीम कोर्ट ने एक विवाहित महिला की 26 हफ्ते की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग वाली याचिका पर आदेश दिया है. मामले में दो जजों की पीठ का फैसला बंटा हुआ है. न्यायमूर्ति हिमा कोहली का कहना है कि उनकी न्यायिक अंतरात्मा गर्भावस्था में महिला को अबॉर्शन करने की अनुमति नहीं दे रही है.

वहीं, दूसरी ओर जस्टिस बीवी नागरत्ना इस पर असहमति जताई और कहा कि हमें महिला के फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए.

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों वाली पीठ में इस पर एक राय नहीं कि क्या 9 अक्टूबर के अपने उस आदेश को वापस लिया जाए, जिसमें विवाहित महिला को 26 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी गई थी.

इससे पहले अदालत ने सोमवार (9 अक्टूबर) को एम्स के डॉक्टरों के पैनल को महिला का गर्भपात कराने का आदेश दिया था. हालांकि, बाद में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की दलीलों के बाद कोर्ट ने महिला के गर्भपात की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी. उन्होंने कोर्ट को बताया कि डॉक्टरों के पैनल ने भ्रूण के जन्म लेने की आशंका जताई है.

इसके बाद मंगलवार (10 अक्टूबर) को इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने की. इसको लेकर पीठ ने कहा कि एम्स के डॉक्टर दुविधा में हैं. इसके बाद कोर्ट ने उनसे आदेश वापस लेने के लिए औपचारिक आवेदन दायर करने को कहा.

अदालत ने कहा कि हम इस मामले को उस पीठ के सामने रखेंगे, जिसने इस पर आदेश पारित किया था. एम्स के डॉक्टर बहुत गंभीर दुविधा में हैं. मैं कल सुबह एक बेंच का गठन करूंगा. एम्स को अभी रुकने के लिए कहें.

इसके बाद सोमवार को जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाले पीठ ने मामले की सुनवाई की और महिला को अपनी गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति दे दी. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि वह एक महिला के अपने शरीर पर अधिकार को मान्यता देती है और महिला यह भी तय कर सकती है कि वह अपनी हालातों को देखते हुए बच्चे को पालने के लिए अयोग्य है.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अदालत याचिकाकर्ता के उस फैसले को मान्यता देती है, जिसमें उसने अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए अपनी शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक, वित्तीय और सामाजिक बैकग्राउंड की दलील दी है.

बता दें कि दिल्ली निवासी महिला ने यह दावा करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि उसे अपनी तीसरी गर्भावस्था के बारे में पता नहीं था, क्योंकि वह लैक्टेशनल एमेनोरिया (स्तनपान कराने वाली महिलाओं में मासिक धर्म न होना) से पीड़ित थी.

उन्होंने कहा कि उनकी दो डिलीवरी के बाद पोस्टडिप्रेशन का इलाज चल रहा था. उनका सबसे बड़ा बच्चा चार साल का है और सबसे छोटा बच्चा मुश्किल से एक साल का है. उन्होंने कहा कि वह आर्थिक कारणों से भी गर्भपात करवाना चाहते हैं.

 सरकार ने 2021 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) अधिनियम पारित किया था, जिसके तहत विशेष मामलों में भारत में गर्भावस्था को समाप्त करने की सीमा 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दी गई थी.

इस अधिनियम के तहत अगर कोई गर्भवती महिला भारत में 20-24 सप्ताह के बीच गर्भावस्था को समाप्त करना चाहती है तो एक राज्य-स्तरीय मेडिकल बोर्ड का गठन करके उसकी रिपोर्ट की जांच के बाद उसे निर्णय लेने की इजाजत दी जाएगी.

मार्च 2021 में संसद में पारित किए गए नए नियमों के अनुसार, गर्भपात अधिनियम में वे महिलाएं शामिल हैं, जो यौन उत्पीड़न, बलात्कार नाबालिग, जिनकी वैवाहिक स्थिति गर्भावस्था के दौरान बदल जाती है (विधवा और तलाक) और जो शारीरिक रूप से विकलांग हैं.

इसमें उन गर्भवती महिलाओं को भी शामिल किया गया है, जो मानसिक रूप से बीमार हैं.  इसके अलावा मानवीय आपदा या इमरजेंसी की स्थिति में गर्भावस्था वाली महिलाओं को भी इस अधिनियम के तहत गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी गई है.

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम से पहले महिलाओ को गर्भधारण के 12 सप्ताह के भीतर गर्भपात कराने पर एक डॉक्टर की राय और 12 से 20 सप्ताह के बीच अबॉर्शन कराने के लिए दो डॉक्टरों की राय की जरूरत होती थी.

 



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