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समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता का मामला, संविधान पीठ के पास पहुंचा, 18 अप्रैल को होगी सुनवाई

राष्ट्रीय            Mar 13, 2023


मल्हार मीडिया नई दिल्ली ब्यूरो।

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का मामला सोमवार 13 मार्च को 5 जजों की संविधान पीठ को सौंप दिया । कोर्ट ने कहा कि इस पर अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी।

केंद्र ने कोर्ट में दलील दी कि यह भारत की पारिवारिक व्यवस्था के खिलाफ है,  इसमें कानूनी अड़चनें भी है।  

कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक विवाह से संबंधित मुद्दा अहम महत्व का है और इस पर पांच-न्यायाधीशों की पीठ के विचार किए जाने की आवश्यकता है।

कोर्ट ने बताया कि कि इसका सीधा प्रसारण (लाइव-स्ट्रीम) किया जाएगा. वहीं केंद्र सरकार ने मामले में दोनों पक्षों की दलीलों में कटौती नहीं करने का अदालत से आग्रह किया कि इस फैसले का पूरे समाज पर प्रभाव पड़ेगा।

गौरतलब है कि याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह के रजिस्ट्रेशन की मांग की गई है।

कोर्ट में रविवार (12 मार्च) को भी केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध से संबंधित याचिकाओं का यह कहते हुए विरोध किया था कि इससे व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों में संतुलन प्रभावित होगा।

हाई कोर्ट में दाखिल हलफनामे में रविवार (12 मार्च) को केंद्र सरकार ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के जरिये इसे वैध करार दिये जाने के बावजूद, याचिकाकर्ता देश के कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं।

केंद्र सरकार ने एफिडेविट में कहा कि विवाह, कानून की एक संस्था के रूप में, विभिन्न विधायी अधिनियमों के तहत कई वैधानिक परिणाम हैं।

इसलिए, ऐसे मानवीय संबंधों की किसी भी औपचारिक मान्यता को दो वयस्कों के बीच केवल गोपनीयता का मुद्दा नहीं माना जा सकता है।

हलफनामे में आगे कहा गया कि भारतीय लोकाचार के आधार पर ऐसी सामाजिक नैतिकता और सार्वजनिक स्वीकृति का न्याय करना और उसे लागू करना विधायिका का काम है।
भारतीय संवैधानिक कानून न्यायशास्त्र में किसी भी आधार के बिना पश्चिमी निर्णयों को इस संदर्भ में आयात नहीं किया जा सकता है।

ज्ञातव्य है कि रविवार 12 मार्च को भी सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध से संबंधित याचिकाओं का यह कहते हुए विरोध किया कि इससे व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों में संतुलन प्रभावित होगा।

गौरतलब है कि कोर्ट ने छह जनवरी को समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर देश भर के विभिन्न हाई कोर्ट के समक्ष लंबित सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए उन्हें अपने पास स्थानांतरित कर लिया था।



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