Breaking News

फिल्म समीक्षा:दो नम्बर आखिर 2 नंबर ही होता है

पेज-थ्री            Dec 02, 2016


डॉ.प्रकाश हिन्दुस्तानी।

कहानी 2 में पिछली कहानी वाली बात नहीं है। दो नम्बर आखिर 2 नंबर ही होता है। जबरन सीक्वल बनाया गया है। विषय गंभीर उठाया गया है, लेकिन कहानी उतनी अच्छी तरह से बुनी नहीं गई है। इंटरवल के बाद तो कहानी अनुमान के अनुसार ही चलती जाती है।

कहानी 2 चार साल पहले आई कहानी से अलग है। अब इसे सीक्वल मन जाए या नहीं; अलग मुद्दा है। इसमें विद्या बालन दो अलग अलग भूमिकाओं में हैं। कहानी में वे ऐसी गर्भवती महिला के रोल में थीं, जो अपने लापता पति की खोज में जुटी थीं। इसमें उनके दो रूप रहस्य पैदा करते हैं। वे सिंगल मदर हैं, जिसके लिए अपनी स्पेशल चाइल्ड का विदेश जाकर इलाज कराना ही जीवन का लक्ष्य रहता है, लेकिन घटनाक्रम में बच्ची का अपहरण, फिर बच्ची को खोज रही विद्या का एक्सीडेंट, अच्छी पुलिस-बुरी पुलिस, रहस्यमयी डायरी, फिर डायरी का पुलिस के हाथ आना एक के बाद एक बदलते परिदृश्य और फिर इंटरवल के बाद बोझिल होता क्याइमैक्स। इसी बीच कोलकाता की अनदेखी गलियां, चंदनपुर और कलिंगपोंग की घटनाओं का तारतम्य. पर अंत आते आते कहानी का पूर्वभास हो जाता है।

सेक्स एब्यूज़ जैसे गंभीर विषय को मुद्दा बनाया गया है। निर्दशक सुजॉय घोष ने विषय का निर्वाह ऐसे किया है कि फिल्म के भोले भाले चाचा और सभ्य सी लगती दादी के प्रति घृणा होने लगती है। इसका शिकार ऐसी बच्ची को दिखाया गया है जो चल पाने से भी लाचार है।

विद्या बालन ने एक्टिंग शानदार की है। अर्जुन रामपाल, नायशा खन्ना ने भी अच्छी एक्टिंग की है। मासूम वाले बच्चे जुगल हंसराज की खलनायकी पचती नहीं।

फिल्म साधारण है। नहीं देखेंगे तो भी चलेगा।



इस खबर को शेयर करें


Comments