मल्हार मीडिया।
चेतन आनंद परेशान थे, उनकी पिछली दोनों फिल्में, अफसर व आंधियां कुछ खास नहीं रही थी। उन दिनों देवानंद एक दूसरे बैनर की फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। एक दिन शूटिंग से ब्रेक लेकर देवानंद स्टूडियो के रिकॉर्डिंग रूम में बैठे थे। तभी उनके संघर्ष के दिनों के एक साथी ने उनसे कहा, तुम टैक्सी ड्राइवरों पर कोई फिल्म क्यों नहीं बनाते? तुम्हारे ऊपर शूट करेगा टैक्सी ड्राइवर का किरदार।" देवानंद को वो आईडिया क्लिक कर गया। उन्हें लगा कि अगर वाकई में टैक्सी ड्राइवरों पर कोई फिल्म अच्छे से बनाई जाए तो वो बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल कर सकती है।
देवानंद ने अपने बड़े भाई चेतन आनंद से इस बारे में बात की। पहले तो चेतन आनंद, देवानंद का वो नया आईडिया सुनकर सिर्फ मुस्कुराकर रह गए। लेकिन जब कुछ देर सोचने के बाद उन्हें रियलाइज़ हुआ कि हां, वाकई में इस सब्जेक्ट पर फिल्म बन सकती है। तो वो देवानंद से इस नए आईडिया पर विचार-विमर्श करने लगे। आखिरकार तय हुआ कि टैक्सी ड्राइवर को सब्जेक्ट लेकर एक फिल्म ज़रूर बनाई जाएगी। देवानंद ही अपने बैनर "नवकेतन फिल्म्स" के अंडर में फिल्म को प्रोड्यूस करेंगे। और फिल्म का नाम भी टैक्सी ड्राइवर ही होगा।
स्क्रिप्ट लिखने की ज़िम्मेदारी दी गई गोल्डी उर्फ विजय आनंद को, जो चेतन आनंद व देवानंद के छोटे भाई थे। बतौर राइटर ये गोल्डी आनंद का पहला बड़ा प्रोजेक्ट था। अपनी आत्मकथा रोमांसिंग विद लाइफ" में देवानंद लिखते हैं, गोल्डी उन दिनों सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था। वो अपने कॉलेज की ड्रैमेटिक सोसायटी में अपने काम से अपना बढ़िया नाम बना चुका था। वो बहुत ब्रिलिएंट था। कॉलेज में वो खुद नाटक लिखता व डायरेक्ट करता था। उसके लिखे नाटकों को उसके साथी स्टूडेंट्स बहुत सराहते थे।
चूंकि पिछली दो फिल्मों के फ्लॉप होने से नवकेतन फिल्म्स फाइनेंशियली काफी घाटे में चला गया था, इसलिए टैक्सी ड्राइवर को बहुत छोटे बजट के साथ लॉन्च किया गया। वर्किंग यूनिट भी छोटी रखी गई। शूटिंग शुरू हुई। अधिकतर दृश्य मुंबई की आउटडोर लोकेशन्स पर ही एक फ्रेंच इक्लेयर कैमरा" से शूट किए गए। उस कैमरे को हैंडल करना काफी आसान था। पूरी टीम सुबह जल्दी शूटिंग के लिए निकल जाती और सारा दिन शूटिंग चलती। अधिक से अधिक दृश्य शूट करने का प्रयास रहता था। देर शाम तक ही काम खत्म होता था। और 35 दिनों से भी कम समय में टैक्सी ड्राइवर" की शूटिंग कंप्लीट कर ली गई।
"रोमासिंग विद लाइफ" में देवानंद कहते हैं कि चूंकि नवकेतन पिक्चर्स का भविष्य इस फिल्म की सफलता पर टिका था, इसलिए काम में कोई भी कोताही बरतने की गुंजाइश नहीं थी। प्लस, कम बजट की वजह से जल्द से जल्द काम फिनिश करने की प्रेरणा भी मिली। वो मेहनत बहुत काम आई। टैक्सी ड्राइवर सुपरहिट साबित हुई। इस फिल्म की सफलता ने ये भी साबित किया कि ज़रूरी नहीं है कि बहुत ज़्यादा बजट हो तभी कोई फिल्म बड़ी बन सकती है। ज़्यादा पैसे से एक बड़े प्रोजेक्ट का स्ट्रक्चर तैयार किया जा सकता है। उसमें चमक-धमक डाली जा सकती है। लेकिन इस सबसे फिल्म की सफलता की कोई गारंटी नहीं होती। किसी भी फिल्म की सफलता की गारंटी एक अच्छी कहानी होती है। ना कि कोई आर्टिफीशियिल ग्लैमर।
टैक्सी ड्राइवर में कल्पना कार्तिक उर्फ मोना सिंघा भी थी। वो फिल्म की हीरोइन थी। रोमांसिंग विद लाइफ" में देवानंद कल्पना कार्तिक जी के बारे में लिखते हैं, टैक्सी ड्राइवर में मोना ने शानदार काम किया। अपने रोल को उन्होंने खूब एंजॉय किया। वो तो पहले से ही नवकेतन का हिस्सा थी। या कहना चाहिए कि वो सिर्फ और सिर्फ नवकेतन की ही थी। हालांकि मोना को इस फिल्म के बाद दूसरे बैनर्स से भी ऑफर्स आने लगे थे। मुझे ये बात अच्छी भी लगी थी।
साथियों टैक्सी ड्राइवर फिल्म के दौरान ही देवानंद और कल्पना कार्तिक उर्फ मोना सिंघा की शादी हुई थी। इन दोनों की पहली मुलाकात का किस्सा तो मैं कल्पना कार्तिक जी के जन्मदिन के मौके पर बता ही चुका हूं। किसी सज्जन को वो किस्सा पढ़ना हो तो बताइएगा। लिंक को कमेंट बॉक्स में शेयर कर दिया जाएगा। हां, हर किसी को इंडीविजुअली शेयर करना बड़ा कठिन है। इसलिए कोई पढ़ना चाहे तो वो कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट्स चैक करे। वहां किस्सा टीवी की तरफ से लिंक मिल जाएगा। देवानंद और कल्पना कार्तिक की जी कहानी पर वापस आते हैं। एक और बात। ये कहानी आज इसलिए कही जा रही है क्योंकि साल 1954 में आज ही के दिन, यानि 5 नवंबर को टैक्सी ड्राइवर फिल्म रिलीज़ हुई थी। यानि आज इस फिल्म के 70 साल पूरे हो गए हैं। कहानी आपको पसंद आए तो लाइक-शेयर करने में कंजूसी मत कीजिएगा।
मैं सिर्फ बेस्ट रोल्स ही सिलेक्ट करूंगी। कल्पना कार्तिक ने देवानंद को गले लगाकर कहा। देवानंद समझ चुके थे कि कल्पना क्या कहना चाहती हैं। लेकिन इतनी जल्दी क्या है?" देवानंद ने कल्पना से पूछा। कल्पना जी ने मुस्कुराते हुए कहा,"तुम नहीं चाहते ना कि मैं तुमसे खो जाऊं? बिल्कुल भी नहीं।" देवानंद बोले। मुझे कमिटमेंट दो। मैं कोई दूसरा ऑफर अक्सेप्ट ही नहीं करूंगी। मेरा मतलब प्रोफेशनली।" कल्पना कार्तिक बोली। देवानंद ने कल्पना कार्तिक की आंखों में ऐसे देखा जैसे वो कन्फर्म करना चाहते हों कि कल्पना सच में ऐसा चाहती हैं।
कमिटमेंट करो। और मैं तुम्हारी हो जाऊंगी। सिर्फ अभी के लिए नहीं। पूरी ज़िंदगी के लिए। कल्पना ने कहा। देवानंद ने कुछ पल सोचा। फिर वो बोले, मुझे थोड़ा टाइम दो। लेकिन कल्पना ने उनसे फौरन जवाब देने को कहा। देवानंद कल्पना कार्तिक को अपनी कार में बैठाकर समंदर किनारे ले गए। वो ढलती शाम का वक्त था। देवानंद डूबते सूरज को देख रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि कल्पना को क्या जवाब दें। कितना समय और लोगे तुम? कल्पना ने पूछा। देवानंद ने कुछ कंकड़ उठाए और समंदर में फेंकने लगे। कल्पना कार्तिन ने भी एक कंकड़ उठाया और उसे आसमान की तरफ उछाला।
देवानंद वापस अपनी गाड़ी में बैठ गए। कल्पना भी उनके पीछे-पीछे आ गई। देवानंद अभी भी विचारों में खोए हुए थे। जबकी कल्पना कार्तिक उनके जवाब का इंतज़ार कर रही थी। कल्पना ने अपना सिर देवानंद की छाती से लगा लिया। जैसे वो देवानंद के दिल की धड़कनें सुन रही हों। तुम्हारे दिल की धड़कनें तेज़ हो रही हैं। कल्पना ने देवानंद को छेड़ते हुए कहा। जवाब में देवानंद बोले,"क्योंकि ये ज़िंदगी भर का फैसला है। चलो, चलते हैं। लेकिन कल्पना कार्तिक बिना देवानदं का जवाब सुने, जाने के मूड में नहीं थी। देवानंद ने उनसे कहा कि बाद में डिसाइड नहीं कर सकते क्या?
"मैं तुम्हें गाड़ी चलाने नहीं दूंगी।" ये कहकर कल्पना कार्तिक देवानंद से लिपट गई। देवानंद ने उनका चेहरा उठाया और उन्हें किस किया। एक लंबा सा किस। कल्पना कार्तिक के आंसू बह निकले। देवानंद ने धीमे से कहा,"मोना।" कल्पना अभी भी रोए जा रही थी। देवानंद फिर प्यार से, लेकिन ज़रा तेज़ आवाज़ में बोले, मोना। कल्पना कार्तिक चुप हो गई। उन्होंने देवानंद की तरफ देखा। अपनी आत्मकथा में देवानंद कहते हैं, उस वक्त मोना(कल्पना कार्तिक) के चेहरे पर जो मासूमियत थी, वो बहुत प्यारी थी। उस समय मोना पर मुझे जो प्यार आ रहा था वैसा पहले कभी नहीं आया था।
मैंने फैसला कर लिया है। देवानंद बोले। क्या फैसला किया है? कल्पना ने पूछा। हम हमेशा ऐसे ही साथ रहेंगे। कल हम सगाई करेंगे। लेकिन कल्पना जी ने कहा,"नहीं। कल नहीं। फिर कब? हैरान देवानंद ने उनसे पूछा। सगाई नहीं करेंगे। कल्पना ने कहा। लेकिन मेरी नज़र में तुम्हारे लिए एक खूबसूरत सी रिंग है। देवानंद बोले। कल्पना कार्तिक ने कहा, रिंग तो उस दिन भी पहनी जा सकती है जिस दिन हम शादी करेंगे।
"लेकिन किसी को पता नहीं चलना चाहिए मेरे इस खूबसूरत सीक्रेट के बारे में।" देवानंद ने शायराना अंदाज़ में कहा। कल्पना कार्तिक ने उनकी शर्त स्वीकार कर ली। तय हुआ कि शादी एकदम सादगी से होगी। कोई नाच-गाना नहीं होगा। कोई पार्टी नहीं होगी। कोई मेहमान नहीं होगा। कल्पना कार्तिक अब बहुत खुश हो चुकी थी। उन्होंने खुशी-खुशी देवानंद से कहा, तुम मेरे मेहमान होंगे। मैं तुम्हारे लिए कुछ अच्छा पकाऊंगी। देवानंद मुस्कुराए। "क्या तुम्हें उस दिन वाला चिकन पसंद आया था? कल्पना कार्तिक ने एक्सायटेड होते हुए पूछा। उससे अच्छा चिकन मैंने कभी नहीं खाया। देखो मेरे मुंह में पानी भी आने लगा है। देवानंद हंसते हुए बोले। चलो। मेरे घर चलो। मैं तुम्हारे लिए कुछ बनाती हूं।" कल्पना कार्तिक ने कहा। देवानंद ने अपनी कार स्टार्ट की। और दोनों वहां से चले गए।
देवानंद और कल्पना कार्तिक ने मैरिज रजिस्ट्रार के यहां अपनी शादी के लिए एक डेट रजिस्टर की। उन्हें दो सप्ताह बाद की तारीख मिली थी। शादी के लिए जो दिन तय हुआ था उस दिन देवानंद और कल्पना कार्तिक को टैक्सी ड्राइवर फिल्म कीभी करनी थी। शूटिंग के बीच में कैमरामैन, जिनका नाम शायद रातरा या रातड़ा था, उन्होंने लाइटिंग्स एडजस्ट करने के लिए एक ब्रेक लिया। देवानंद ने अपनी घड़ी देखी। फिर कल्पना कार्तिक की तरफ देखा। आंख मारकर उन्होंने कल्पना कार्तिक को चलने का इशारा दिया। कल्पना कार्तिक फौरन बाहर निकल गई। कुछ ही सेकेंड्स बाद देवानंद भी आर्ट डिपार्टमेंट रूम में बैठी इंतज़ार कर रही कल्पना कार्तिक के पास आए। फिर दोनों पैदल ही वहां से मैरिज रजिस्ट्रार के ऑफिस तक गए।
देवानंद ने अपनी जेब से एक अंगूठी निकाली और कल्पना कार्तिक को पहना दी। कल्पना कार्तिक ने शरमाते हुए देवानंद को गले लगा लिया। दोनों ने रजिस्टर में दस्तखत किए और पति-पत्नी बन गए। इस शादी के बारे में इन दोनों के अलावा सिर्फ चार लोगों को ही पता था। दो थे गवाह, जिन्हें साथ लाना इनकी मजबूरी थी। और अन्य दो में एक मैरिज रजिस्ट्रार खुद थे। दूसरा था उनका असिस्टेंट। अपनी वो गुपचुप शादी निपटाकर देवानंद और कल्पना कार्तिक वापस टैक्सी ड्राइवर के सेट पर लौट आए। किसी को खबर नहीं लगी कि हिंदी सिनेमा का एक बहुत बड़ा स्टार अपनी हीरोइन से शादी कर चुका था। सिवाय एक इंसान को छोड़कर। वो इंसान था कैमरामैन रातड़ा।
रातड़ा देवानंद और कल्पना कार्तिक का बहुत अच्छा दोस्त भी था। वो जानता था कि दोनों रिलेशन में हैं। हालाकि देवानंद ने शादी के बारे में रातड़ा को कुछ नहीं बताया था। लेकिन रातड़ा ने कल्पना कार्तिक की उंगली में मौजूद वो अंगूठी नोटिस कर ली जो देवानंद ने उन्हें शादी के वक्त पहनाई थी। रातड़ा ने वो अंगूठी नोटिस की कल्पना कार्तिक के एक सिंगल शॉट में। वो अंगूठी देखकर रातड़ा बड़बड़ाया,"ये अंगूठी पहले तो नहीं थी।" रातड़ा को अंदाज़ा हो गया था कि कल्पना कार्तिक ने ये अंगूठी क्यों पहनी है। उस वक्त वैसे भी सेट पर ये अफवाहें चला करती थी कि देवानंद और कल्पना कार्तिक किसी दिन चुपके से शादी कर लेंगे। रातड़ा ने शरारती नज़रों से देवानंद की तरफ देखा। आखिरकार देवानंद ने रातड़ा को अपनी शादी के बारे में बता दिया। और ये भी कहा कि शादी को सीक्रेट रखना है। इसलिए किसी को इसकी खबर ना मिले। इस तरह मैरिज रजिस्ट्रार, उसके असिस्टेंट, और दो गवाहों के अलावा अब एक पांचवा इंसान भी था जिसे पता चल चुका था कि टैक्सी ड्राइवर फिल्म की लीडिंग लेडी अब मिसेज देव आनंद बन चुकी है।
तमाम कोशिशों के बावजूद देवानंद और कल्पना कार्तिक की वो सीक्रेट शादी बहुत ज़्यादा दिनों तक सीक्रेट ना रह सकी। जाने कैसे, उस शादी की बात मीडिया तक पहुंच गई। फिर तो उस दौर के फिल्मी अखबारों व पत्रिकाओं में देवानंद और कल्पना कार्तिक की शादी के बारे में खूब बातें होने लगी। बातें हुई तो देवानंद के घर तक भी वो बातें पहुंची। एक दिन देवानंद के पिता पिशोरी लाल आनंद मुंबई आ गए। वो अपने बड़े बेटे चेतन आनंद के पास रुके। जिस जगह चेतन आनंद रहते थे, देवानंद वहां से कुछ ही दूर रहते थे। पिशोरी लाल खुद ही एक दिन देवानंद से मिलने उनके घर पहुंच गए। सालों बाद अपने पिता को देखकर देवानंद काफी खुश और भावुक हुए।
"तुमने शादी कर ली और अपने बाप को बताया तक नहीं।" देवानंद के पिता बोले। मैंने किसी को इस शादी के बारे में नहीं बताया। देवानंद ने पिता को जवाब दिया। "तुमने एक ईसाई लड़की से शादी की है?" पिता ने हैरान होते हुए देवानंद से पूछा। "इससे कोई फर्क पड़ता है क्या? देवानंद ने पिता से पूछा। पिता कुछ देर तक चुप रहे। फिर बोले, शायद पड़ता। मुझे कुछ साल बाद तुमसे पूछना चाहिए था अगर मैं जि़ंदा रहता तो। तब पता चलता।
मेरी शादी की आलोचना मत कीजिए आप।" देवानंद पिता से बोले। "हज़ारों खूबसूरत लड़कियां हैं जो तुमसे शादी करना चाहती हैं। पिता ने कहा। जवाब में देवानंद ने कहा,"मुझे जो चाहिए थी वो मुझे मिल चुकी है।" "तुम अभी बच्चे हो।" पिता बोले। जवाब में देवानंद ने कहा कि चूंकि वो अपने पिता से बात कर रहे हैं तो उनके लिए तो वो हमेशा बच्चे ही रहेंगे। "तुम्हारा उसके साथ किसी ना किसी दिन टकराव ज़रूर होगा।" पिता ने कहा। "वो तो किसी भी लड़की के साथ होता अगर होना ही है तो।" देवानंद। बोले। पिता ने कहा कि वो टकराव तुम दोनों के अलग-अलग बैकग्राउंड और कल्चर की वजह से होगा।
पिता की वो बात देवानंद को अच्छी नहीं लगी। उन्होंने कठोर शब्दों में पिता से कहा,"हम इंसान हैं। और प्यार का बंधन हमेशा एक जैसा होता है। उसमें कोई फर्क नहीं होता। कोई कल्चरल डिफरेंस नहीं होता।" "ज़िद्दी मत बनो देव। तुम्हारा बाप जो तुमसे कह रहा है उसे सुनो।" पिता ने ये वाक्य ऐसे कहा था जैसे वो गुस्से और विनती, दोनों भावों को एक साथ मिलाकर कह रहे हों। लेकिन देवानंद ने उनकी बात काटते हुए कहा,"क्यों? क्या आपने मेरी सुनी थी जब आप मुझे बैंक में क्लर्क बनाना चाहते थे? क्या आपने मेरी सुनी थी जब मैं लाहौर में अंग्रेजी लिटरेचर में मास्टर्स करना चाहता था?"
"तुम जानते हो मैं उस वक्त गरीब था। वो अफोर्ड नहीं कर सकता था।" पिता ने लाचारी भरी आवाज़ में देवानंद से कहा। "तो आप अपने उस बेटे पर हुक्म चलाना कैसे अफोर्ड कर सकते हैं जिसने आपसे एक ऐसे शहर में आने के लिए ट्रेन का किराया तक ना मांगा हो जहां गलाकाट प्रतिस्पर्धा रहती है?" देवानंद ने गुस्से में, बड़े रूड लहज़े में पिता से ये बातें कही। पिता ने एक गहरी सांस ली। वो बोले,"ये किस्मत है मेरे बेटे। तुम्हारी अपनी है और मेरी अपनी है। लेकिन मैंने जो कहा है उसे हमेशा याद रखना।" ये कहकर देवानंद के पिता पिशोरी लाल आनंद बहुत दुखी और टूटा दिल लिए वहां से चले गए। देवानंद लिखते हैं कि अपने शब्दों पर उन्हें बहुत अफसोस तो हो रहा था। लेकिन अपनी ईगो की वजह से उन्होंने अपने पिता को उस वक्त नहीं रोका। वो चले गए।
टैक्सी ड्राइवर बड़ी धूमधाम से रिलीज़ हुई थी। मुंबई के एक थिएटर में सिर्फ टैक्सी ड्राइवरों के लिए फिल्म का स्पेशल प्रीमियर रखा गया था। टैक्सी यूनियन के चेयरमैन को चीफ गेस्ट के तौर पर प्रीमियर में बुलाया गया था। उनके साथ शहर के लगभग सभी टैक्सी ड्राइवर प्रीमियर में फिल्म देखने आए थे। थिएटर के बाहर कई किलोमीटर टैक्सियों की लंबी लाइन लगी हुई थी। टैक्सी ड्राइवरों ने देवानंद को अपना हीरो घोषित कर दिया था। और "टैक्सी ड्राइवर" को अपनी फिल्म। फिल्म यूनिट के एक मेंबर ने खुशी-खुशी बताया कि उस शाम पूरी मुंबई में सवारी ढोने के लिए एक भी टैक्सी अवेलेबल नहीं थी। सारे टैक्सी ड्राइवर प्रीमियर में मौजूद थे। उस दिन सिर्फ एक ही टैक्सी ड्राइवर पर सबकी नज़रें थी। वो था देव आनंद।
"रोमांसिंग विद लाइफ" में टैक्सी ड्राइवर फिल्म की शूटिंग के दौरान का एक रोचक किस्सा याद करते हुए देवानंद लिखते हैं कि इस फिल्म की शूटिंग के दौरान उनका काफी वक्त सड़क पर टैक्सी चलाते हुए गुज़रा था। टैक्सी ड्राइवर की यूनिफॉर्म पहने वो मुंबई की कई सड़कों से टैक्सी चलाते हुए निकले थे। और कई दफा लोग उन्हें पहचान भी जाते थे। उन्हें देखकर भीड़ लगा लेते थे। ऑटोग्राफ मांगने लगते थे। एक दिन देवानंद एक सीन फिल्मा रहे थे जिसमें उन्हें ताज महल होटल के बाहर एक पैसेंजर को ड्रॉप करना था। जैसे ही वो सीन कंप्लीट हुआ, एक विदेशी, जिसके गले में कुछ कैमरे भी लटके थे, वो टैक्सी में आकर बैठ गया और बोला,"रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट, प्लीज़।"
देवानंद ने रियर व्यू मिरर से उस विदेशी की तरफ देखा। वो फिर बोला,"रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट।" देवानंद उसकी तरफ मुड़े और उसे देखने लगे। उन्होंने अपनी कैप हल्की सी उठाई। विदेशी फिर से बोला,"रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट। मैं जानता हूं तुम्हें पता है कि वो कहां है। मैं ज़रा जल्दी में हूं।" उस वक्त वहां शूटिंग देखने लिए लोगों की कुछ भीड़ भी जमा थी। भीड़ उस विदेशी पर हंसने लगी। भीड़ में से कुछ लोग आए और उन्होंने विदेशी को बताया कि वो इस वक्त भारत के एक मशहूर फिल्मस्टार से बात कर रहा है। उन लोगों की बात सुनकर वो विदेशी बड़ा हैरान हुआ। उसने हैरत से देवानंद को देखा।
"गुड आफ्टरनून, सर। माफ कीजिएगा लेकिन आपको दूसरी टैक्सी लेनी होगी। ये वाली हायर नहीं हो सकेगी।" देवानंद ने अपनी टोपी उतारते हुए बहुत प्यार से उस विदेशी से कहा। विदेशी अब भी हैरान था। देवानंद बोले,"इस टैक्सी को फिलहाल एक फिल्म की शूटिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।" तब वो विदेशी गाड़ी से उतरते हुए देवानंद से बोला,"आपका नाम क्या है सर?" देवानंद ने उसे जवाब दिया,"सर, अगर आप अपने देश में टैक्सी ड्राइवर नाम की हिंदी फिल्म देखेंगे, जब ये रिलीज़ होगी, तो आपको पता चल जाएगा कि आप अभी जिससे मिले हैं उसका नाम क्या है।" देवानंद उस विदेशी के उतरने से पहले ही टैक्सी से बाहर निकले और उन्होंने उसके लिए दरवाज़ा खोला। वो विदेशी अब भी बहुत हैरान था। वो शायद ये भी भूल चुका था कि उसे रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट पहुंचना था। वो भी बहुत जल्दी।
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