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फिल्म समीक्षा:देखनीय ‘दंगल’ : मनोरंजक और उद्देश्यपूर्ण

पेज-थ्री            Dec 23, 2016


डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।

दंगल फिल्म कुश्ती के बारे में तो है ही, महिला सशक्तीकरण के बारे में भी है। यह एक पिता और उसकी पुत्रियों का संघर्ष भी है और अहम का टकराव भी। इमोशनल सीन वाकई भावुक कर देते है और कॉमेकि सीन हंसाते है। फिल्म में रेसलिंग के बारे में बारीक बातें इस तरह से पहले ही बता दी गई कि समझने में दर्शकों को तकलीफ न हो। पौने तीन घंटे की दंगल मनोरंजन का कोई पहलू नहीं छोड़ती और संदेश भी दे जाती है।

राजकुमार फिल्म में शाहिद कपूर पर फिल्माए गए इस डायलॉग को गाना बनाकर इस फिल्म में पेश किया गया है- ‘बापू तू तो सेहत के लिए हानिकारक है’। इस फिल्म में केवल आमिर खान ही मिस्टर परफेक्शनिस्ट नहीं है। फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा, साक्षी तंवर भी परफेक्ट रोल में है। नीतेश तिवारी ने फिल्म के डायरेक्शन में जान लगा दी है और फिल्म मनोरंजन का कोई भी मौका नहीं छोड़ती।

दंगल में परंपरागत प्रेम संबंध, खलनायक, गाने, ढिशुम-ढिशुम आदि नहीं है, लेकिन फिर भी यह फिल्म दिल को छू जाती है। 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स तक की ही कहानी इस फिल्म में है। इसके बाद भी गीता और बबीता फोगट के जीवन में बहुत कुछ बीता है, लेकिन केवल झलकी दिखाई गई है। आमिर खान ने जिस तरह हरियाणा के पहलवान महावीर सिंह फोगट के जीवन को पर्दे पर उतारा है, वह विलक्षण है। अपनी कुश्ती के दांवपेच, बेटियों के प्रति दिल में उमड़ा प्यार और उन्हें ट्रेनिंग देने की पूरी कवायद उन्होंने बेहद स्वाभाविक तरीके से की है। अधेड़, मोटे, तोंद वाले आमिर को देखकर विश्वास नहीं होता कि यह वही आमिर खान है।

हरियाणा के पहलवान महावीर सिंह फोगट कुश्ती की अपनी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए अपने बच्चों को पहलवान बनाना चाहते थे। उन्हें अफसोस होता है कि परंपरा को आगे बढ़ाने वाला कोई पुत्र उनके घर में पैदा नहीं होता और पुत्र की आस में वे एक-एक के बाद चार बेटियों के पिता बन जाते हैं। बेटियों की हरकत से उन्हें एक दिन यह ख्याल आता है कि क्यों न उन्हें ही पहलवान बनाया जाए और फिर वे जुट जाते है अपने सपने को साकार करने में। पहलवान महावीर सिंह उर्फ आमिर खान अपनी बेटियों के पिता तो है ही गुरू भी है। दिक्कत यह होती है कि वह एक वक्त में एक ही रोल कर सकते थे। गुरू के रोल में उन्हें बेटियों के लिए कठोर फैसले करने पड़ते है और उन्हें अनुशासन में रखना पड़ता है, लेकिन पिता के रोल में वे उतने ‘हानिकारक’ नहीं होते। मौका पड़ने पर वे अपनी बेटियों के पांव भी दबाते हैं।

दो बेटियों को प्रशिक्षण देते-देते आमिर खान का अपनी बेटियों के प्रशिक्षण को लेकर अहम भी टकराता है। फिर वहीं नए और पुराने का संघर्ष दिखाने की कोशिश की गई है। परंपरागत और नए तरीके के कुश्ती प्रशिक्षण से लेकर रेसलर कोच की कटुता भी कहानी में डाली गई है। सुल्तान में पहलवान पति-पत्नी के बीच का अहम दिखाया गया था, इसमें पिता और पुत्री के बीच का अहम सामने आता है। दंगल का टाइटल सांग भी सुल्तान टाइटल सांग से मिलता-जुलता लगता है। अनेक नाटकीय मोड़ों से गुजरती हुई फिल्म दर्शकों को पूरे समय बांधे रखती है। फिल्म में कहीं भी हल्कापन या छिछली बातें नहीं है, जो आजकल की फिल्मों में गौण हो चला है।

भारतीयों की दुखती रग पर यह फिल्म हाथ रखती है। 125 करोड़ के देश के खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय खेलों में बहुत कम गोल्ड मेडल ला पाते है। फिल्म का एक डायलॉग है - ‘मेडलिस्ट पेड़ पर नहीं उगते, उन्हें बनाना पड़ता है, प्यार से, मेहनत से, लगन से’। कॉमनवेल्थ गेम्स में गीता फोगट के स्वर्ण पदक जीतने के बाद परंपराअनुसार विजेता खिलाड़ी के देश के राष्ट्रगान की धून बजती है, तब सिनेमा हाल के दर्शक खड़े हो जाते है और तालियां बजाते है।

लगभग सभी सिनेमाघरों और मल्टीप्लेक्स के स्क्रीन पर केवल दंगल ही दिखाई जा रही है। आगामी दो शुक्रवार भी कोई बड़ी फिल्म की रिलीज नहीं है। दर्शकों के सामने दंगल देखने के अलावा कोई चारा भी नहीं बचा है। बेशक, दंगल अच्छी फिल्म है, लेकिन फिल्म प्रसारण में इस तरह का एकाधिकार रोका जाना चाहिए।



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