समीर चौगांवकर।
मुलायम सिंह यादव नहीं रहे।
यह मुलायम सिंह ही थे जिन्होंने मनमोहन सिंह के अमेरिका से परमाणु समझौते के कारण गिरने के करीब पहुंच गई मनमोहन सरकार को बचा लिया था।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब 2005 में अमेरिका यात्रा के दौरान बुश से परमाणु समझौते पर बात करके आए थे, तब मुलायम इस समझौते के खिलाफ थे।
समाजवादी मुलायम हमेशा अमेरिका और खुले बाजार की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के खिलाफ रहे।
गैर कांग्रेसवाद उनकी राजनीति का पहला सिद्धांत और कारक रहा था।
कांग्रेस और भाजपा दोनों से दूरी और दोनों का विरोध मुलायम के राजनीतिक अस्तित्व की पहली शर्त था।
मनमोहन के पहले कार्यकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम के नारायण ने मुलायम को बुलाकर ऐसा मंत्र दिया था, जिसके बाद मुलायम कांग्रेस का परमाणु सौदे पर समर्थन करने को तैयार हो गए थे।
मुलायम सिंह यादव समाजवादी अखाड़े के पट्ठे रहे हैं और राजनीति में राम मनोहर लोहिया के नाम पर दंड बैठक लगाकर दॉवपेच लड़ाते रहे।
अमर सिंह ने मुलायम सिंह को समझाया कि लोकतंत्र पैसों से चलता है, अखाड़े में पहलवान को पटककर नहीं।
'खाओ और खाने दो का मंत्र अमर सिंह ने मुलायम को दिया था।
इसका ऐसा असर मुलायम पर हुआ कि मुलायम के अपने कार्यकाल में उत्तरप्रदेश को खुला खेल फर्रूखाबाद में बदल दिया था।
अमर सिंह के प्रभाव में कमाने और बनाने के लोभ में मुलायम सिंह यादव ने अपने सभी पुराने समाजवादी मित्र,सिद्धांत और संस्कार खो दिए।
जैसे लालू प्रसाद यादव ने बिहार में पैसा बनाया वैसे ही मुलायम ने उत्तरप्रदेश में संपदा बनाई।
बाद में जैसे लालू की दुर्गति हुई वैसे ही मुलायम की भी हुई।
सौदेबाजी और दलाली मुलायम के नाम पर अमर सिंह करते रहे और मुलायम बदनाम होते रहे।
मुलायम ने अपने सामने अपनी पार्टी को अपने हाथ से निकलकर अपने बेटे के हाथ में जाते देखा और कुछ नहीं कर सके, विवश बने रहे।
भाई शिवपाल और बेटे अखिलेश यादव की लड़ाई को भी मुलायम अपने जीते जी नहीं सुलझा सके।
अपने जीवन के अंतिम समय में मुलायम राजनीतिक और पारिवारिक रूप से निंतात अकेले पड़ गए थे।
विनम्र श्रंद्धाजलि
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
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