राकेश दुबे।
और अब कमलनाथ के सिर पर चुनौतियों भरे मध्यप्रदेश का ताज है, वे किस तरह से चुनौतियों का सामना करते हैं? उन्होंने बता दिया पहले ही स्ट्रोक में 31 मार्च 2018 तक किसानों का 2 लाख तक कर्जा माफ़ कर दिया।
प्रदेश में 70 प्रतिशत रोजगार मूल निवासियों के लिए आरक्षित कर दिए और कन्या विवाह राशि बढाकर 51 हजार कर दी। वैसे भी कमलनाथ अपने-आप में असामान्य तरह के व्यक्ति हैं। राजनीति में वंशवाद से नहीं आये पर वंशवादी परम्परा के अनुगामी हैं।
इस परम्परा के तहत अपने पूर्व अनुगामी साथियों को “ बॉस इज आलवेज राईट” और हर फैसले के पहले दिल्ली दरबार की ओर निहारना, कमलनाथ ने ही सिखाया है।
मध्यप्रदेश कई अवसरों का साक्षी है। कमलनाथ दिल्ली दरबार दर्शन और मार्गदर्शन की परम्परा को कायम रखेंगे, यह बात हर खास और आम को समझ लेना चाहिए।
कमलनाथ मौजूदा लोकसभा के सबसे अनुभवी सांसद हैं और अपनी लोकसभा सीट छिंदवाड़ा से नौ बार निर्वाचित हो चुके हैं। एक विरोधाभास भी है कि वे एक ऐसे दल में शामिल उद्योगपति हैं, जिसके प्रमुख नेता अब भी खुद को समाजवादी मानते हैं।
दोस्तों के दोस्त, कमलनाथ की नई नियुक्ति की एक दिलचस्प वजह उनकी दोस्ती भी है। न तो वे मध्य प्रदेश में पैदा हुए न ही वह यहाँ पले-बढ़े हैं। उन्होंने केवल लोकसभा में इस राज्य का प्रतिनिधित्व किया है।
जब उन्हें मध्य प्रदेश में कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो उन्हें राज्य के दो बड़े नेताओं ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह ने खतरे के तौर पर देखा था।
बहरहाल कमलनाथ को ऐसी रणनीतियां बनाने का श्रेय दिया जाना चाहिए जिनके बूते कांग्रेस को जीत मिली। उन्होंने इस चुनाव में अपना निजी पैसा लगाया, खेमों और गुटों में बंटी पार्टी को एकजुट किया और अपने दशकों पुराने दोस्त दिग्विजय सिंह की सलाह को भी अहमियत दी।
बड़े कारोबारी साम्राज्य के मालिक कमलनाथ के खिलाफ किसी बड़े घोटाले या जांच का मामला सामने नहीं आया है। उन्होंने कांग्रेस के कई दिग्गजों के साथ भी जद्दोजहद भी की है। पी चिदंबरम के साथ एसईजेड के मसले, मोंटेक सिंह आहलूवालिया के साथ सड़कों और राजमार्गों के निर्माण ठेकों के आवंटन के मसले और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में व्यापार वार्ताओं के दौरान व्यापार मंत्री रहते समय उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से भी दो-दो हाथ किए थे।
चर्चाओं के बावजूद वह अपने मंत्रालय के अधिकारियों के साथ खड़े रहे और दबाव के आगे झुकने से मना कर दिया था। उन्होंने सड़क एवं राजमार्ग मंत्री रहते समय अपने कुछ अफसरशाहों के खिलाफ आरोप लगने के बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को जांच की इजाजत भी दी थी।
यूँ तो कमलनाथ के सामने चुनौतियां हैं। खजाना खाली है, सरकार कर्जे में है। प्रदेश का मानव विकास सूचकांक में काफी नीचे है। महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में राज्य सबसे ऊपर है।
आम तौर पर कानून का पालन करने वाले किसानों में भी असंतोष है। भाजपा हर दिन तख्ता पलटने की कोशिश में रहेगी। ताज पहनने के बाद आज से कमलनाथ पर प्रदर्शन करने का दबाव होगा।
छिंदवाड़ा से 9 बार चुनाव जीतना एक बात है और पूरे मध्य प्रदेश के लिए कारगर रणनीति बनाना एकदम अलग बात है। उन्हें कृषि क्षेत्र की समस्याओं को दूर करना है, राज्य में निवेश सुनिश्चित करना है और सबसे बढ़कर, उन्हें हमेशा अपने पीछे खड़े समर्थकों से भी सचेत रहना है।
कांग्रेस को राज्य में मामूली अंतर से मिले बहुमत को देखते हुए कई संदेह उभरते हैं, जिनमें सरकार पर बाहरी भीतरी और दिल्ली के दबाव शमिल हैं। संघर्ष करें, और अपनी एक नई छबि का निर्माण करें, शुभ कामना।
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