भाजपा के लिए अभेद्य किला रहा है छिंदवाड़ा, अभी तक कांग्रेस सिर्फ एक उपचुनाव हारी, खुद शाह संभालेंगे मोर्चा

राजनीति            Mar 18, 2023


मल्हार मीडिया विश्लेषण डेस्क।

यह सर्वज्ञात है कि मध्यप्रदेश कह छिंदवाड़ा विधानसभा सीट भाजपा के लिए अभेद्य किले की तरह है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के गृहजिले के अलावा यह सीट नाथ परिवार के नाम से कई दशकों से रही है।

पिछले लोकसभा चुनावों में पूरे भारत में सूपड़ा साफ होने के बाद भी कांग्रेस की यह संसदीय सीट बच गई थी। इतिहास को देखें तो कांग्रेस इस सीट से सिर्फ एक उपचुनाह हारी है।

आजादी के बाद हुए आम चुनावों में इस सीट का विजेता एक ही परिवार रहा है और वह नाथ परिवार।

1997 में पार्टी के हाथ से ये सीट फिसली थी जब उपचुनाव में एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री बीजेपी नेता सुंदरलाल पटवा ने कांग्रेस के दिग्गज कमलनाथ को शिकस्त दी थी। उसी एक अपवाद को छोड़कर यहां हर बार कांग्रेस जीतती आई है।

2014 में मोदी लहर में भी बीजेपी कांग्रेस के इस किले को नहीं भेद पाई। 2019 में भी उसने पूरा जोर लगाया लेकिन कांग्रेस का ये किला अभेद्य रहा।

पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रदेश की 29 में से 28 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की। जिस एक सीट पर हारी, वह छिंदवाड़ा ही थी।

यही कारण हे भाजपा ने आसन्न विधानसभा चुनावों में छिंदवाड़ा में पूरी ताकत झोंकने का फैसला किया है। इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि छिंदवाड़ा का मोर्चा खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संभाल लिया है। वे 25 मार्च को छिंदवाड़ा पहुंच रहे हैं। कमलनाथ की गढ़ में उनको घेरने की तैयारी है।

जिले के प्रभारी मंत्री कमल पटेल लगातार वहां सक्रिय हैं। शाह के दौरे से पहले बीजेपी के प्रदेश संगठन मंत्री हितानंद वहां का दौरा कर चुके हैं।

25 मार्च से पहले वहां बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक के कार्यक्रम होंगे। शिवराज पिछले महीने भी छिंदवाड़ा गए थे।

19 फरवरी को छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के मौके पर सौंसर में थे। बीजेपी की रणनीति इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव और फिर अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से उसके सबसे मजबूत गढ़ को छीनने की है।

दूसरी तरफ, कमलनाथ भी गढ़ बचाने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। शाह के दौरे से पहले 19 मार्च से वह अपने बेटे और छिंदवाड़ा सांसद नकुलनाथ के साथ वहां 3 दिनों तक कैंप करने वाले हैं।

छिंदवाड़ा बेशक मध्य प्रदेश में कांग्रेस का सबसे मजबूत किला है, लेकिन इसे देश में भी ग्रैंड ओल्ड पार्टी का सबसे मजबूत दुर्ग कहा जा सकता है। 2014 के प्रचंड मोदी लहर में सूबे से कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज उखड़ गए लेकिन छिंदवाड़ा में कमलनाथ का ही जादू चला।

तब प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से सिर्फ दो सीटों- कमलनाथ की छिंदवाड़ा और ज्योतिरादित्य सिंधिया की गुना पर भगवा नहीं लहरा पाया। 2019 में बीजेपी ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराकर कांग्रेस से गुना सीट छीनने में तो कामयाब हो गई लेकिन छिंदवाड़ा ने उसके 'पर्फेक्ट 29' के सपने को तोड़ दिया।

2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद सूबे में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। अगले साल 2019 के लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ने कांग्रेस से ताल ठोकी और उन्होंने बीजेपी के नत्थन शाह को पटखनी दी।

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट के तहत विधानसभा की 7 सीटें आती हैं- जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, चौराई, सौसर, छिंदवाड़ा, परसिया और पांढुर्णा। इस सातों की सातों विधानसभा सीटों पर अभी कांग्रेस का कब्जा है।

 छिंदवाड़ा लोकसभा सीट यूं ही कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ नहीं है। आजादी के बाद से यहां अबतक जितनी बार आम चुनाव हुए हैं, हर बार कांग्रेस ही जीती है। इस संसदीय सीट पर सिर्फ एक बार 1997 में उपचुनाव हुआ था और उसमें कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था।

छिंदवाड़ा में कांग्रेस की वह अबतक की इकलौती हार है। 1952 में जब देश में पहला लोकसभा चुनाव हुआ तब छिंदवाड़ा से कांग्रेस के रायचंदनभाई शाह जीते थे।

उसके बाद 1957, 1962, 1967, 1971 ,1977, 1980, 1984, 1989, 1991 और 1996 तक लगातार कांग्रेस जीतती रही। 1997 के उपचुनाव में यहां पहली बार कांग्रेस हारी लेकिन उस एक अपवाद के बाद उसकी जीत का सिलसिला अबतक जारी है।

कमलनाथ 1980 में पहली बार यहां से सांसद बने और देखते ही देखते छिंदवाड़ा का पर्याय बन गए। तबसे यहां कमलनाथ और उनके परिवार का ही सिक्का चलता आया है।

मंडल-कमंडल की राजनीति से कांग्रेस देश में कमजोर होती गई लेकिन छिंदवाड़ा में उसकी जीत का पताका फहरता रहा। 1989 से 1996 तक लगातार 4 लोकसभा चुनावों में कमलनाथ ने यहां से जीत का झंडा गाड़ा।

1996 में जैन हवाला केस में उनका नाम आने के बाद कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। उनकी जगह पर उनकी पत्नी अलका नाथ को उम्मीदवार बनाया गया और वह चुनाव जीत गई।

1997 में पहली बार छिंदवाड़ा में कांग्रेस अगर हारी भी तो उसके पीछे कमलनाथ की ही एक गलती थी। दरअसल, ये उपचुनाव हुआ क्यों, इसकी भी दिलचस्प कहानी है। 1996 में सांसद बनीं कमलनाथ की पत्नी अलका नाथ ने 1997 में इस्तीफा दे दिया, जिस वजह से छिंदवाड़ा में उपचुनाव हुआ। कमलनाथ को लुटियंस जोन में सांसद के तौर पर एक बड़ा बंगला मिला था।

1996 में जैन हवाला कांड में नाम आने के बाद उन्हें कांग्रेस का टिकट नहीं मिला। उनकी पत्नी भले ही जीत गईं लेकिन कमलनाथ को वह बंगला खाली करने का नोटिस मिल गया। वजह ये कि वह सांसद नहीं थे। उन्होंने बहुत कोशिश की कि वह बंगला उनकी सांसद पत्नी को मिल जाए लेकिन फर्स्ट टाइमर एमपी को वह बड़ा बंगला नहीं मिल सकता था।

बंगला न खाली करना पड़े इसके लिए कमलनाथ ने 1997 में अपनी सांसद पत्नी से इस्तीफा दिलवा दिया ताकि उपचुनाव में वह जीतकर बंगला बरकरार रख सकें। लेकिन उपचुनाव में बीजेपी के सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को उनके ही गढ़े में कड़ी शिकस्त दे दी। वो कमलनाथ और कांग्रेस की छिंदवाड़ा में पहली और अबतक की इकलौती हार थी।

हालांकि, 1998 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो कमलनाथ ने पटवा को हराकर फिर से इस सीट पर कब्जा कर लिया। उसके बाद 1999, 2004, 2009 और 2014 में भी कमलनाथ इस सीट पर जीत का डंका बजाते रहे।

2018 में वह एमपी के मुख्यमंत्री बन गए और अगले साल 2019 में उनके बेटे नकुलनाथ को छिंदवाड़ा से कांग्रेस का टिकट मिला। उन्होंने भी अपने पहले ही चुनाव में जीत हासिल की।

2019 में वह कांग्रेस से जीतने वाले मध्य प्रदेश के इकलौते सांसद हैं। उन्होंने बीजेपी के नत्थन शाह को शिकस्त दी। नकुलनाथ को 5,47,305 वोट मिले और उनका वोटशेयर करीब 47% रहा। वहीं नत्थन शाह को 5,09,769 वोट मिले और वोटशेयर 44 प्रतिशत रहा।

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। छिंदवाड़ा में कमलनाथ के गढ़ को भेदने के लिए बीजेपी अपनी पूरी ताकत झोंक रही है।

विधानसभा चुनाव में अगर बीजेपी यहां खाता खोलने में कामयाब रही तो 2024 में वह यहां गुना वाला करिश्मा भी कर सकती है।

यही वजह है कि कमलनाथ भी अपने इस गढ़ को बचाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते। अमित शाह का छिंदवाड़ा दौरा प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ से 2023 विधानसभा चुनाव के लिए एक तरह से बीजेपी की यलगार होगी।

 



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