मल्हार मीडिया भोपाल।
मध्यप्रदेश की विधानसभा में यूं तो अनेकों संयोग हैं लेकिन राजनीतिक हासिये पर जाने का पक्का शर्तिया माध्यम है नेता प्रतिपक्ष का पद क्यों है।
पिछले तीन दशक का उदाहरण यदि उठाकर देखा जाए तो जितने लोगों ने भी नेता प्रतिपक्ष का पद सुशोभित किया है वे सभी राजनीतिक रूप से रसातल को ही प्राप्त हुए हैं।
क्या यही कारण है कि शिवराज सिंह या कोई दूसरे नेता ने जो राज्य में प्रमुख भूमिका मैं रहना चाहता है उसने नेता इस बार प्रतिपक्ष की पद के लिए उतनी आकांक्षा नहीं की।
1993 में दिग्विजय सिंह के शासनकाल में विक्रम वर्मा नेता प्रतिपक्ष बने थे बेचारे वर्मा जी का क्या हश्र हुआ सभी जानते हैं, उसके बाद गौरीशंकर शेजवार, बाबूलाल गौर, जमुना देवी, सत्यदेव कटारे और अजय सिंह नेता प्रतिपक्ष बने।
बाबूलाल गौर के अपवाद को छोड़कर जो दो साल के लगभग बीच में मुख्यमंत्री बने बाकी सभी नेता किसी ना किसी कारण राजनीति में हाशिए पर चले गए। गौर साहब भी किस तरह से अपमानित किये गए किसी से छुपा नहीं है।
वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार से बातचीत के आधार पर
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