राघवेंद्र सिंह।
मध्यप्रदेश भाजपा में गिरावट का जो दौर दस साल पहले महसूस होना शुरू हुआ था अब उसकी कर्कशता बहरों को सुनाई और नेत्रहीनों को भी दिखाई देने लगी है।
कभी गुटबाजी जात - पांत, क्षेत्रवाद, व्यक्तिपूजा के जो महारोग कांग्रेस में थे अब उन्होंने भाजपा को शिखर तक जकड़ लिया है।
इससे भाजपा का सामान्य सा कार्यकर्ता तक चिंतित है और नगरीय चुनावों में करारी हार को वह प्रमाण के तौर पर देख रहा है।
उच्च स्तर पर गुटबाजी के कारण हर महीने संगठन व सरकार में बदलाव की हवाएं पंख लगाए उड़ रही हैं।
खास बात ये है कि अस्थिरता फैलाने वाली खबरों को रोकने के लिए भोपाल से दिल्ली तक कोई आगे नही आ रहा है।
बल्कि नेताओं की गतिविधियां, मेलजोल,बॉडी लेंग्वेज तो अफवाहों को हवा देती दिख रही हैं।
कोई देखने वाला, न सुनने वाला और न रोकने वाला, सब मजे लेते दिख रहे हैं।
पहले यह सब कांग्रेस में होते देखा है, नतीजा यह हुआ कि 2003 से 15 साल 2018 तक जनता और कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस को मजे लेने लायक भी नही छोड़ा था।
भाजपा अपने संगठन की समरसता और अनुशासन की शक्ति को विस्मृत कर जात पांत के जंजाल में गले तक उलझती जा रही है।
केंद्रीय नेतृत्व आदिवासी और ओबीसी को साधने के लिए गम्भीर है। तो दूसरी तरफ प्रदेश में भाजपा प्रीतम लोधी निष्कासन विवाद के बाद ब्राह्मण विरुद्ध ओबीसी के जाल में फंसती दिख रही है।
सम्हाला नही गया तो इसके दूरगामी नतीजे आएंगे। कांग्रेस और उनके नेता दिग्विजयसिंह पहले भी ठाकरे - पटवा , कैलाश जोशी काल में बीजेपी को ब्राह्मण- जैन पार्टी कह चुके हैं।
इस टिप्पणी को गलत साबित करने में टीम कुशाभाऊ ठाकरे को बहुत सतर्क होकर निर्णय करने पड़े थे।
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