राकेश अग्निहोत्री।
मध्यप्रदेश की राजनीति के चुनावी साल में प्रवेश करने से पहले विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भले ही विपक्ष सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया हो।
लेकिन अविश्वास प्रस्ताव लाकर कांग्रेस ने खुजाकर ही खता कर ली मगर, सरकार,शिवराज के लिए ये ब्रांडिंग का जरिया बन गया और ये साबित हो गया कि शिवराज पर विश्वास कायम है।
संख्या बल के आधार पर कमलनाथ को भी विश्वास और पता रहा होगा कि अविश्वास प्रस्ताव का हश्र क्या होने वाला है। इसलिए वो सदन से दोनों दिन गायब रहे।
हालांकि कमलनाथ की सदन में गैरमौजूदगी को लेकर बीजेपी चुटकी ले रही है मगर, अविश्वास प्रस्ताव के जरिए संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने एक बार फिर शिवराज का विश्वास जीता तो नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने कांग्रेस विधायकों को एकजुट रखा और आलाकमान का विश्वास जीतने में कामयाब रहे।
भाजपा को इवेंट की पार्टी बताने वाली कांग्रेस ने उसके नेता शिवराज की जबरदस्त ब्रांडिंग का मौका उसे सदन के अंदर दिया.. शायद कांग्रेस खुजा कर खता कर बैठे वाली कहावत को चरितार्थ जाने-अनजाने कर गई।
क्योंकि पहले दिन आरोप-प्रत्यारोप और सवालों के जरिए कांग्रेस ने जो लाइन खड़ी की थी उसे शिवराज ने तुलनात्मक तौर पर ध्वस्त कर कौन बेहतर की दिशा में ही मोड़ दिया।
जब अविश्वास प्रस्ताव पर भाजपा ने चर्चा में पहले सबको सुना और बाद में मुख्यमंत्री ने दूसरे दिन विस्तार पूर्वक लंबा लेकिन लयबद्ध टोका-टाकी के बीच मुद्दों से भटके बिना अपनी बात कही।
फिर विपक्ष के एक-एक आरोप का सारगर्भित जवाब दिया, शिवराज ने अपनी लाइन बड़ी साबित करते हुए कमलनाथ सरकार को एक्सपोज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
मुद्दा भ्रष्टाचार का हो या फिर सरकारी योजनाओं को बंद करने की मुख्यमंत्री और सरकार की नीति और नियत से ही क्यों ना जुड़ा हो।
शिवराज खुलकर खूब बोले, अविश्वास प्रस्ताव के जरिए नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह का नाम विधानसभा के इतिहास में जरूर लिख गया कांग्रेस में विपक्ष के उप नेता की व्यवस्था जरूर महसूस की गई।
क्योंकि गोविंद सिंह की तरह पूर्व उप नेता बाला बच्चन भी नजर नहीं आए। कांग्रेस ने शिवराज को एक्सपोज करने की जो रणनीति बनाई थी, पार्टी की सकारात्मक सोच के बावजूद वह रणनीति नेतृत्व की एकजुटता पर सवाल खड़ा होने के कारण विवादों में आ गई।
वजह पूर्व नेता प्रतिपक्ष और पार्टी के अध्यक्ष, विधायक कमलनाथ का इस पूरी चर्चा से दूरी बनाना, तो नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह का पारिवारिक कारणों से मुख्यमंत्री के जवाब के समय सदन में नहीं रहने का फायदा भाजपा ने यह कहकर उठाया कि कांग्रेस नेतृत्व विहीन है !
इस बात में दम सदन के अंदर नजर भी आया, जब नरोत्तम का आक्रमक प्रभावशाली उद्बोधन हो या फिर कांग्रेस की ओर से जीतू पटवारी के गंभीर आरोप के बीच भाजपा और कांग्रेस के वक्ताओं पर शिवराज का भाषण भारी पड़ा।
शिवराज ने उद्बोधन के लाइव प्रसारण का फायदा उठाते हुए अपनी बात न सिर्फ गंभीरता से रखी बल्कि सदन समाप्ति के बाद 1 फरवरी से मंत्रियों द्वारा शुरू की जा रही विकास यात्रा का एजेंडा भी सेट कर दिया।
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के ठीक पहले कैबिनेट बैठक के दौरान अपने मंत्रियों को 1 फरवरी से विकास यात्रा में शामिल होने की जो निर्देश दिए थे।
चर्चा खत्म होने के बाद मुख्यमंत्री निवास पर तुरंत विधायक दल की छोटी बैठक बुलाकर न सिर्फ उसे एक नई दिशा दे दी।
शिवराज ने विधायकों से 121 की नए सिरे से शुरुआत कर अपना फोकस अब प्रदेश के विधानसभा क्षेत्रों में बनाने का संकेत दे दिया।
सड़क पर सियासी लड़ाई के इस रोड मैप के जरिए शिवराज.. कमलनाथ सरकार के तख्तापलट की पटकथा को सदन के रिकॉर्ड में भी ले आए तो अपनी 18 साल की उपलब्धियों का खाका भी बाखूबी खींच लिया।
कमलनाथ सरकार के 15 महीने के दौरान जन हितेषी योजनाओं को बंद करने के प्रमाण का दावा करते हुए मुख्यमंत्री ने सिर्फ विपक्ष को सोचने को मजबूर नहीं किया बल्कि भाजपा के अंदर अपनी मजबूत पकड़ और एक परिपक्व दूरदर्शी रणनीतिकार के तौर पर अपनी उपयोगिता साबित कर संदेश हाईकमान और पूरी पार्टी को दे दिया कि मिशन 2023 के लिए अनुभवी शिवराज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
पहली बार स्पष्ट संदेश गया कि मोदी और शाह की तर्ज पर मध्य प्रदेश की विधानसभा तक सीमित ना रहते हुए शिवराज और नरोत्तम की जोड़ी भविष्य में एक नई नजीर पेश कर सकती है।
शिवराज ने सरकार नहीं बनाने से लेकर कमलनाथ सरकार गिराने तक का राज खोलते हुए उन मुद्दों की हवा निकालने में विशेष दिलचस्पी ली।
शिवराज ने सिंधिया समर्थकों की उपचुनाव में जीत वह भी ज्यादा मतों से का हवाला देकर कांग्रेस को अलग-थलग साबित किया।
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