कौशल सिखौला।
क्या बात है ! जमाने का दस्तूर भी बड़े अजब तरीके से बदल जाता है !
अभी कल तक विपक्ष के तमाम नेता कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी से काफी दूरी बनाकर चलते थे !
जैसे ही राहुल की सांसदी गई , बंगला छिना , तमाम विपक्ष राहुल के पक्ष में खड़ा हो गया !
न सिर्फ़ खड़ा हो गया अपितु विपक्ष के तमाम नेता अडानी अडानी चिल्लाने लगे !
यहां तक कि केजरीवाल ने तो राहुल की चोंच से चोंच मिलाकर यहां तक कह दिया कि अडानी के पास जितना धन है , वह तो वास्तव में नरेंद्र मोदी का है ?
वे बोले की मोदी भारत के नंबर वन बनना चाहते हैं !
इसका कोई आधार उनके पास नहीं है , पर कहते हैं कि जेपीसी बन जाए तो मोदी की दौलत का खुलासा हो जाए !
राजनीति में केजरीवाल जिस मिट्टी पर उगे , वह अन्ना के गांव रालेगण सिद्धी से लाई गई थी ।
हालांकि उन्होंने न केवल उसी मिट्टी को रौंद डाला अपितु अन्ना हजारे की ईमानदारी का सारा खजाना लूट कर सत्येंद्र जैन और मनीष सिसौदिया की पौध लगा दी ।
राजनीति में आते ही केजरीवाल ने सोनिया गांधी की सहेली शीला दीक्षित से दिल्ली छीनी और कांग्रेस से पंजाब छीन लेने की बुनियाद रख दी ।
पलटीमार केजरीवाल खुद भ्रष्टाचार में फंसे तो अब राहुल केजरी भाई भाई गाने लगे ।
राहुल की कुर्सी छिनते ही केजरीवाल ने भी नरेंद्र मोदी और अडानी राग उसी धुन पर गाना शुरू कर दिया जिस पर राहुल गाते हैं ।
वैसे केजरीवाल ही क्यों , कईं विपक्षी नेता सप्तक लगाकर अडानी अडानी का गीत पंचम सुर में गा रहे हैं । ममता मुखर नहीं हैं और अखिलेश भी आपदा में अवसर तलाश रहे हैं ।
हां बिहारी नेताओं की खिड़कियों से अनेक बार विचित्र रागों में पगे सुर सुनाई दे जाते हैं ।
आज विपक्ष की चौदह पार्टियां बेशक राहुल के बहाने सहानुभूति लहर की प्रतीक्षा कर रही हों , परंतु नेतृत्व सामूहिक करना चाहती हैं ।
कांग्रेस पार्टी नेतृत्व तो सामूहिक चाहती है , परंतु पीएम की कुर्सी पर किसी का दावा मानने को तैयार नहीं ।
तो इस उलझन में मोदी अडानी पर बात डालकर माहौल अपने पक्ष में करने का प्रयास सभी कर रहे हैं ।
विपक्ष का पास आना यकीनन अच्छा होगा , बशर्ते नेता पर बात बन जाए । यही सबसे मुश्किल है ।
इस जमाने में डुगडुगी बजने से पहले अपने पत्ते भला खोलता ही कौन है ।
एक बात साफ है संसद चले ना चले, जेपीसी तो अब बनने वाली नहीं ।
सरकार जब मानती ही नहीं कि उसका अडानी प्रकरण से कुछ लेना देना है तो वह जेपीसी की बात मानेगी ही नहीं ।
राहुल की सजा के विषय को भी सरकार न्यायालय का विषय मानती है ।
जाहिर है केंद्र और विपक्ष के बीच यह घमासान अभी चलता रहेगा ।
वैसे विपक्ष चाहे तो कर्नाटक चुनाव में एकता का प्रदर्शन कर बीजेपी को आईना दिखा सकता है ।
यह और बात है कि किसी भी विपक्षी नेता ने कर्नाटक में कांग्रेस के साथ आने की बात अभी तक एक बार भी कही नहीं है ।
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