राम विद्रोही।
मप्र विधानसभा के आगामी चुनाव को लेकर कांग्रेस इस समय आत्ममुग्धता की स्थिति में अति आत्मविश्वास के समंदर में गोते लगा रही है।
ऐसे में प्रदेश में कांग्रेस यदि अपने दो सौ सीटों पर चुनाव लडने के टारगेट पर अडी रही तो उसके लिए अपने चार सहयोगी दलों बसपा, सपा, गोंगपा और माकपा से सीटों का बटबारा करना दुधारी तलवार पर चलने जैसा हो जाने वाला साबित होगा।
इससे इतर हालात यह दिख रहे हैं कि कांग्रेस के कुछ नेता एन चुनाव के वक्त पार्टी को झटका देने के मनसूबे बांध रहे हैं तो पिछले चुनाव के समय कांग्रेस को दगा दे चुके नेता घर वापसी के लिए कांग्रेस का दरबाजा खटखटा रहे हैं।
यही अदला बदली कांग्रेस के लिए टिकट बंटबारे में गले की हड्डी भी साबित हो सकती है। क्यों कि इन आयाराम-गयारामों को टिकट मिल गए तो कांग्रेस में चुनाव लडने की तैयारी का खम्ब ठोकने के लिए तैयार बैठे नेताओं के लिए घर का पूत कुआंरा बैठा जैसी स्थिति बन सकती है।
मप्र में बसपा, सपा, गोंगपा और माकपा ग्वालियर चम्बल अंचल, बुंदेलखंड, विंध्यप्रदेश और महाकौशल की कुछ सीटों पर दावेदारी कर रहे हैं।
बसपा और सपा का जोर उप्र से कसे सटे हुए मप्र के जिलों में हिस्सेदारी मांगने पर है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी महाकौशल में तो माकपा विंध्य प्रदेश में यमुना प्रसाद शास्त्री तथा रामलखन शर्मा सहित कुछ अन्य सीटों पर दावेदारी कर सकती है।
सहयोगी दल जिन इलाकों में हिस्सेदारी मांग रहे हैं वह कांग्रेस के क्षत्रप नेताओं के प्रभाव क्षेत्र है और शायद कोई भी क्षत्रप अपनी हिस्सेदारी कम काने के लिए तैयार नहीं होगा।
मप्र कांग्रेस के प्रभारी महासचिव दीपक बाबरिया एक से अधिक बार यह कह चुके है कि इस बार किसी नेता की सिफारिश पर टिकट नहीं दिए जायेंगे, पार्टी जीतने वालों को ही चुनाव मैदान में उतारेगी। लेकिन जिनको कांग्रेस की जमीनी हकीकत का पता है वह दीपक बाबरिया की इस टिप्पणी को न तो गंभीरता से ले रहे हैं और न उन्हें इस पर विश्वास ही है।
क्योंकि जो कांग्रेस के चरित्र को जानते और समझते हैं उन्हें पक्का यकीन है कि प्रदेश कांग्रेस के क्षत्रप नेताओं के बीच ही उनके पसंद के लोगों को टिकट का बंटवारा होना है क्योंकि मप्र में एक नहीं कई कांग्रेस हैं।
टिकट बटवारे मेंं चुनाव जीतने की सम्भावना गौण और व्यक्ति निष्ठा में पसंद-नापसंद ही मुख्य रहने वाली है। ऐसे मेें अगर आयाराम-गयाराम भी टिकट बटोर ले गए तो चुनाव में रायता बिखर जाने वाला है।
इसमें जो टिकट पाने से बाहर हो जायेंगे उनके लिए तो घर का पूत कुआंरा बैठा और पडोसी के घर फेरा जैसी हालत हो जाने वाली है। मप्र में अभी तो कांग्रेस अपने अन्तर विरोधों को जीत कर बाहर ही नहीं निकल सकी है और अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी भाजपा से मुकाबले की तैयारी तो कहीं दिख ही नहीं रही है।
पार्टी में चुनाव जीतने का जोश और जजबा कहीं दिख ही नहीं रहा है। सच तो यह है कि कांग्रेस के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता अपनी सक्रियता में अपने नेता को मुंह दिखाई की रस्म तक ही सिमट कर रह गए है और वह इसे ही पार्टी की राजनीतिक सक्रियता मान बैठे हैं।
उनका समाज के साथ जमीनी रिश्ता और सम्वाद तो शून्य बटा सन्नाटा है। फिर भी बातें सरकार बनाने की हो रहीं हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।
Comments