राकेश दुबे।
भारत में राजनीतिक यात्राओं और पदयात्राओं का इतिहास काफी लम्बा है, हर यात्रा के पीछे एक उद्देश्य होता है।
कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गाँधी अपनी “भारत जोड़ो यात्रा” के साथ मध्यप्रदेश में प्रवेश करने जा रहे हैं।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में इस यात्रा के विश्लेष्ण को लेकर पिछले दिनों “हम-सब” नामक संस्था ने एक कार्यक्रम आयोजित किया।
विश्लेष्ण के दौरान मीडिया में समुचित समाचार न आना भी एक मुद्दा था, ख़ैर।
इस सुविधा सम्पन्न यात्रा के मुकाबले गंगा के अविरल और निर्मल प्रवाह के घोषित उद्देश्य को लेकर श्री के एन गोविन्दाचार्य भी पद यात्रा कर रहे हैं, उत्तरप्रदेश के समाचार पत्रों में हर दिन यह पद यात्रा जगह पा रही है |महत्व समाचार प्रकाशन का नहीं, उद्देश्य और लक्ष्यपूर्ति का है।
ज्ञात इतिहस के अनुसार देश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी ने अंग्रेज सरकार के ख़िलाफ़ भारत की आज़ादी की लड़ाई में पदयात्रा का पहला राजनीतिक इस्तेमाल किया था। शायद पदयात्रा के विचार का जन्म यहीं से हुआ।
1930 में जब तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने लोगों पर नमक पर टैक्स लगा दिया था, तब महात्मा गांधी ने डांडी मार्च निकाला था| इस पदयात्रा में लाखों भारतीय उनके साथ जुड़ गए थे।
तीन साल बाद महात्मा गांधी ने छुआछूत के ख़िलाफ़ एक और पदयात्रा निकाली थी, उद्देश्य साफ थे।
इसी तरह इसके 17 साल बाद विनोबा भावे ने इस तरीक़े का इस्तेमाल करके भूदान आंदोलन शुरू किया था।
भूदान के दौरान लाखों एकड़ जमीन मिली थी अब कहाँ और किसके कब्जे में है, एक अनुझ पहेली है, उद्देश्य पवित्र था, अंजाम ?
1983 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी भारत को और बेहतर तरीक़े से समझने के लिए तमिलनाडु से अपनी पदयात्रा शुरू की थी और एक तरह से कहा जा सकता है कि उन्होंने पदयात्रा के सिद्धांत को फिर से जीवित किया था।
चंद्रशेखर ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोगों से बात करते हुए लंबा समय बिताया था।
वो किसानों से कृषि की अर्थव्यवस्था से जुड़े सवाल करते थे, पीने के लिए पानी की उपलब्धता के बारे में पूछते थे और स्थानीय परंपराओं और संस्कृति को समझते थे।
हाल के सालों में कांग्रेस नेता डॉ. वाईएस राजशेखर रेड्डी ने 2003 में राजनीतिक रूप से पदयात्रा का इस्तेमाल किया था और तेलगुदेशम पार्टी को राज्य की सत्ता से हटा दिया था।|
अविभाजित आंध्र प्रदेश में उन्होंने चुनाव जीत लिया था।
बाद में आंध्र प्रदेश के बंटवारे के बाद उनके बेटे वाईएस चंद्रशेखर रेड्डी ने साल 2017 में प्रदेशभर की पदयात्रा निकाली और 2019 में चुनाव जीता, उद्देश्य स्पष्ट था।
कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, तमिलनाडु में एमके स्टालिन और कई अन्य राज्यों के नेताओं ने चुनावों के दौरान राज्य के लोगों से जुड़ने के लिए पदयात्राएं निकाली और उद्देश्य के तहत राज्य में सरकार बनाई।
भोपाल में हुए विश्लेषण में इस भारत जोड़ो यात्रा की पृष्ठभूमि में देश की वर्तमान स्थिति और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके प्रेरक सन्गठन द्वारा समाज में बनाया जा रहा वातावरण ही जिम्मेदार बताया गया |
अवधि आठ वर्ष, यहाँ एक प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि अभी क्यों ? पिछले सालों में क्यों नहीं ?
विश्लेष्णकर्ताओं में कुछ के हित यात्रा आयोजक कांग्रेस के साथ नत्थी हो सकते हैं। कांग्रेस का लक्ष्य अगला चुनाव होगा।
सवाल सत्ता में बैठे लोगो के साथ यात्रा करती विभूतियों से भी है , “क्या देश में एकजुटता जरूरी नहीं है ?”
देश प्रथम की बात करने वाली भाजपा और उसके पैतृक सन्गठन की प्राथमिकता बदल गई है ? सबको मिलकर यह कोशिश करना चाहिए देश मजबूत हो।
देश सिर्फ प्रार्थना में “परम वैभवशाली” कहने से नहीं बनता और चुनाव पूर्व यात्रा से नहीं बनता देश आपके इरादों से बनता है।
गाँधी याद आते हैं, उनके एक लम्बे भाषण का सार है “ पूर्वाग्रह को लेकर किसी भी दुराग्रह के खिलाफ सत्याग्रह नहीं किया जा सकता।
इन यात्राओं में लोग गोविन्दाचार्य जी और राहुल गाँधी से जो लोग ताल मिला रहे हैं, उसमे हर आयु अर्थात युवा से बुजुर्ग सब हैं गोविंदाचार्य और उनके साथी चुनाव के लिए यह अब नहीं कर रहे हैं। उनका लक्ष्य साफ है, अविरल गंगा निर्मल गंगा।
काश भारत जोड़ो यात्रा भी पारदर्शी हो जाये ? लक्ष्य देश हित है, तो सबको साथ होना चाहिए, बिना किसी पूर्वाग्रह और दुराग्रह के।
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