राघवेंद्र सिंह।
माननीय पूर्व सांसदों,विधायकों की पेंशन हमेशा से ही चर्चा और चिंता का विषय रही है। पंजाब राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने भले ही आर्थिक तंगी के चलते विधायकों की पेंशन में कटौती की है लेकिन यह आम जनता के लिए खुशी का सबब बन गया है।
पंजाब में विधायकों की पेंशन कटौती का फार्मूला तय कर राज्य सरकार ने जहां करोड़ों रुपए बचाने का काम किया है वहीं आम मतदाताओं में इसे लेकर सुखद आश्चर्य का माहौल है।
नए फार्मूले से पंजाब को हरेक पांच साल में अस्सी करोड़ रु की बचत होगी।
सीएम मान ने पंजाब के आर्थिक संकट या आपदा को जनता में अपनी छवि बनाने का अवसर बना दिया है।
पूरे देश में सांसद-विधायकों की पेंशन कटौती को लेकर चर्चा आम होती जा रही है।
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने पूर्व विधायक के तौर पर मिलने वाली पेंशन राशि को पहले ही छोड़ने की घोषणा कर दी है।
श्री बादल ने राज्य सरकार से अनुरोध किया कि उन्हें मिलने वाली राशि जनहित में खर्च की जाए।
पूरे देश में सबकी नज़रें इस बात पर लगी हुई है कि पेंशन कटौती के फार्मूले कर्ज में डूबे दूसरे राज्यों में कब लागू किए जाएंगे?
इसे लेकर राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में चर्चाएं शुरू हो गई हैं। आने वाले दिनों में यह चुनावी मुद्दा बन जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा।
आम आदमी पार्टी ने विधायकों की पेंशन में कटौती कर राजनीति में बदलाव का एक पत्थर तो जरूर उछाल दिया है।
अकेले पंजाब में 6 बार की विधायक ने पूर्व मुख्यमंत्री राजेंद्र कौर भट्ठल, लाल सिंह, सरवन सिंह फिल्लौर को हर महीने करीब सवा तीन लाख ₹ पेंशन के मिलते हैं।
रविंद्र सिंह, बलविंदर सिंह को हर महीने पौने तीन लाख रु मिलते हैं। वही 10 बार के विधायक की पेंशन छह लाख 62 हजार रुपए प्रतिमाह है।
पेंशन में कटौती के फैसले की चर्चा उन राज्यों में सर्वाधिक होनी है जहां अगले वर्ष तक चुनाव होने हैं।
पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा से लेकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात में भी विधायकों की पेंशन एक चुनावी मुद्दा बन सकती है।
असल में विधायक रहते वेतन, भत्ता तो समझ में आता है लेकिन पूर्व विधायक और मृत्यु उपरांत उनके आश्रितों को पेंशन भत्ता सालाना यात्रा के दौरान एक अटेंडर को भी यात्रा में सुविधा देकर एक बड़ी रकम पूर्व हुए सांसद और विधायक पर खर्च होती है।
5 साल के कार्यकाल पूरा करने वाले विधायकों की पेंशन में हर साल दो हजार ₹की बढ़ोतरी होती है।
दस साल विधायक रहने वालों को हर माह ₹ 35 हजार की पेंशन मिलती है। कुल मिलाकर पूर्व माननीयों को पेंशन भत्तों का एक अलग ही आर्थिक संसार है।
सांसद -विधायक नहीं रहने के बाद जो पेंशन मिलती हैं वह आगे जाकर राजनीति में सेवा के बजाय भ्रष्टाचार को ज्यादा तरजीह देती हैं। क्योंकि जो नेताजी चुनाव हार जाते हैं उनका जीवन यापन भी तो आखिर होता ही है।
तो फिर जीतने वाले सांसद, विधायकों को पद से हटने के बाद अपने जीने और परिवार को चलाने में क्या दिक्कत होती है ? यह नैतिक सुविधा के बजाय राजनीति में अनैतिकता का प्रतीक भी बन रही है।
आने वाले दिनों में लगता है माननीय को दी जाने वाली सुविधा वोट लेने देने का राजनीतिक मुद्दा बन सकती है।
एक आंकड़े के मुताबिक 8 सालों में पूर्व सांसदो की पेंशन पर करीब 500 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।
यह आंकड़ा हर बार सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही जाएगा क्योंकि माननीय रिटायर होंगे तो उनकी पेंशन बनेगी और रिटायरमेंट का यह सिलसिला तो अनवरत चलने ही वाला है।
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