ममता यादव।
मध्यप्रदेश की राजनीति का एक नया अध्याय आज से शुरू हो गया। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनी सरकार की टीम बनाकर प्रदेश के सामने रख दी। 28 सदस्यों की इस टीम में जातीय, क्षेत्र और अनुभव के साथ सबसे ज्यादा गुटों के संतुलन का पूरा ध्यान रखा गया।
बीते पाँच दिनों में कमलनाथ ने दिल्ली में जो मैराथन कवायद की, उस मंथन से ही ये 28 रत्न निकलकर बाहर आए हैं। इनमें से कई चेहरे तो पहले भी अलग-अलग मुख्यमंत्रियों की टीम का हिस्सा रहे हैं। लेकिन, मुद्दे की बात ये कि मुख्यमंत्री भले कमलनाथ हों, पर इस टीम पर दिग्विजय सिंह का इफेक्ट साफ़ नजर आ रहा है।
कमलनाथ ने विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के 6 दिन बाद 17 दिसंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ अकेले ली थी। अब 8 दिन बाद उन्होंने मंत्रिमंडल बनाया है।
आज हुए शपथ कार्यक्रम का दिलचस्प नजारा ये रहा कि सरकार को समर्थन देने वाले बसपा और सपा के 3 विधायकों को नहीं बुलाया गया। दूसरी बड़ी घटना थी अजय सिंह का कार्यक्रम से नदारद रहना।
विधानसभा के लिए 28 नवंबर को मतदान हुआ था और 11 दिसंबर को चुनाव नतीजे घोषित किए गए। 230 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 114 सीटें मिली और भाजपा को 109 सीटें। बहुमत के लिए जरुरी 116 का जादुई आंकड़ा कोई नहीं छू सका।
कांग्रेस ने दो बसपा विधायकों, एक समाजवादी पार्टी के विधायक और चार निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई! ये संयोग है कि चारों ही निर्दलीय कांग्रेस के बागी हैं, इस वजह से उसे इनका समर्तहन मिल गया और उसके खाते में 121 विधायक जमा हो गए।
शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री कमलनाथ एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद थे। अब विधानसभा का पांच दिवसीय सत्र 7 जनवरी से शुरू होगा। नर्मदाप्रसाद प्रजापति का विधानसभा अध्यक्ष बनना लगभग तय है।
डेढ़ दशक बाद सत्ता के सिंहासन पर पहुंची कांग्रेस में इस तरह गुट-मंथन होना स्वाभाविक था। कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया में से कोई भी किसी नाम पर समझौते के लिए शायद तैयार नहीं हुआ होगा।
यही कारण था कि एक-एक नाम पर बात हुई। जो भी नाम मंत्रिमंडल के लिए तय हुए, वे शायद खुद नहीं जानते कि वे पार्टी के कितने बहुमूल्य रत्न हैं। क्योंकि, इन नामों को लेकर सबसे ज्यादा खींचतान दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया में ही हुई है।
कुछ नाम तो ऐसे भी हैं जिनका मंत्री बनना अंतिम समय तक तय माना जा रहा था, पर वे शपथ लेते दिखाई नहीं दिए। शपथ लेने वाले इन 28 लोगों को गुटों में बांटा जाए तो मुख्यमंत्री कमलनाथ के 11 समर्थक, दिग्विजय सिंह के 9, ज्योतिरादित्य सिंधिया के 7 और अरुण यादव अपने भाई सचिन यादव को मंत्रिमंडल में शामिल कराने में सफल हुए हैं।
जो सदस्य मंत्री बनाए गए हैं, उनमें क्षेत्र के साथ सामाजिक समीकरणों का संतुलन भी बनाए रखा गया है। एक अल्पसंख्यक आरिफ अकील को फिर मंत्री बनने का मौका मिला। कांग्रेस के टिकट पर जीती 9 महिलाओं में से 2 को मंत्रिमंडल में लिया गया है। ठाकुर बाहुल्य मंत्रीमंडल में दो यादव और एकमात्र ब्राम्हण विधायक पीसी शर्मा को मंत्री बनाया गया है।
आज मंत्रिमंडल में शामिल किए गए सदस्य हैं डॉ गोविंद सिंह, आरिफ़ अक़ील, बृजेंद्रसिंह राठौर, सज्जनसिंह वर्मा, बाला बच्चन, लखनसिंह यादव, विजयलक्ष्मी साधो, हुकुम सिंह कराडा, तुलसी सिलावट, गोविंद राजपूत, औंकार मरकाम, सुखदेव पांसे, प्रभुराम चौधरी, जयवर्द्धन सिंह, हर्ष यादव, कमलेश्वर पटेल, लखन घनगोरिया, तरुण भानोट, पीसी शर्मा, सचिन यादव, सुरेंद्र सिंह उर्फ़ हनी बघेल, जीतू पटवारी, उमंग सिंगार, प्रधुम्नसिंह तोमर, प्रदीप जायसवाल, महेंद्र सिंह सिसोदिया, इमरती देवी और प्रियवत सिंह।
आज शपथ लेने वालों में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह थे। वे लगातार दूसरी बार पुश्तैनी राघौगढ़ सीट से चुनाव जीते हैं।
आज शपथ लेने वाले मंत्रियों में सबसे भारी भरकम नेताओं में डॉ गोविंद सिंह थे, जो लहार से सांतवीं बार चुने गए। गोविंद सिंह को सहकारी क्षेत्र का नेता माना जाता है। वे कांग्रेस सरकार में पहले भी मंत्री रह चुके हैं।
इसके बाद विजयलक्ष्मी साधौ हैं, जो निमाड़ की महेश्वर सीट से पाँचवीं बार विधानसभा पहुंची हैं। इसके बाद सोनकच्छ से जीते सज्जन सिंह वर्मा हैं, जो छात्र राजनीति से निकले हैं और कमलनाथ के सबसे करीबी माने जाते हैं।
वे दिग्विजय सिंह सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री रह चुके हैं। एक बार शाजापुर-देवास सीट से लोकसभा चुनाव भी जीत चुके हैं और कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव के रूप में गुजरात के प्रभारी रह चुके हैं।
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