प्रकाश भटनागर।
मध्यप्रदेश विधानसभा में कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव गिर गया, ध्वनिमत के साथ। संख्या बल के हिसाब से यह परिणाम अनपेक्षित नहीं था।
अनपेक्षित यह रहा कि इस दौरान कांग्रेस अपने बल का कोई प्रदर्शन ही नहीं कर सकी।
वैसे उसकी तैयारी काफी आक्रामक दिख रही थी, जैसा माहौल बना, उसे देखकर एकबारगी यह लगने लगा था कि प्रस्ताव पर चर्चा में कांग्रेस राज्य की सरकार के लिए ज़ुबानी और तथ्यात्मक चाबुक चलाने में सफल रहेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
मामला, ‘बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का। जो चीरा तो इक क़तरा-ए-खूं न निकला’ वाला होकर रह गया।
इसकी बजाय यह हुआ कि शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने अपने धारदार पलटवार से कांग्रेस को खून के आंसू रोने वाली स्थिति में ला दिया।
इस चीरा वाली बात से कुछ याद आ गया। घाव जब नासूर बनने लगे तो उस पर चीरा लगाना पड़ता है।
ताकि अंदर जमा हो रहा मवाद और खतरनाक बैक्टीरिया बाहर निकालकर शरीर के उस हिस्से की रक्षा की जा सके।
यूं तो चीरा लगाने की यह प्रक्रिया कांग्रेस के लिए शीर्ष नेतृत्व से शुरू करने की स्थिति आ चुकी है।
लेकिन बिल्ली के गले में घंटी बांधने वाला इस पार्टी का साहस शशि थरूर या जी-23 के अंगुलियों पर गिने जा सकने लायक नेताओं के पास ही बचा है।
वह सब भी हाशिये पर धकेल दिए गए हैं इसलिए फिलहाल तो यही उम्मीद की जा सकती है कि यह पार्टी मध्यप्रदेश के स्तर पर ही कुछ ऐसा कर गुजरे।
उन सभी स्वयंभू दिग्गज नेताओं के शरीर में उसे लोहा उतारना होगा जो अविश्वास प्रस्ताव के जरिए शिवराज सरकार से लोहा लेने की कोशिश में कागजी तलवार से लड़ते हुए ढेर हो गए।
कमलनाथ को फुर्सत ही नहीं मिली कि सदन की तरफ देख भी लेते।
नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविन्द सिंह अपनी बात बोलकर निकल लिए और फिर शिवराज का जवाब सुनने का साहस भी नहीं दिखा सके।
जो जीतू पटवारी गरजे, वो अब सदन में गलत बयानी करने के आरोप से घिर गए हैं।
गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने पटवारी के ग्रह बिगाड़ने की तैयारी कर ली है, वह सदन की समिति से पटवारी की शिकायत करने की बात कह चुके हैं।
अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में कांग्रेस के 31 विधायकों ने अपनी बात रखी, इसके विरोध में सत्ता पक्ष के केवल सोलह विधायक बोले।
फिर भी स्थिति यह हुई कि पार्टी के दिग्गज ‘कितने आदमी थे?’ और ‘फिर भी वापस आ गए! खाली हाथ!’ वाली मुद्रा में ही इस पर सफाई मांग पा रहे होंगे।
क्योंकि सदन में कांग्रेस का जो प्रदर्शन रहा, वह देखकर बार-बार यही लगा कि यह दल अपने अविश्वास प्रस्ताव को लेकर खुद ही अविश्वास से जकड़ा हुआ था।
कांग्रेस की हार तय थी, लेकिन उसके विधायक जिस तरह पराजित मानसिकता से ग्रसित दिखे, उसे देखकर यह यकीन कर पाना मुश्किल लगने लगा कि सचमुच यह उस राज्य के मुख्य विपक्षी दल का मामला है, जहां अगले साल के विधानसभा चुनाव सिर पर आ चुके हैं।
इस अविश्वास प्रस्ताव में अपनी ताकत दिखाकर कांग्रेस यह जता सकती थी कि विधानसभा चुनाव के लिहाज से उसने खुद को कितना तैयार किया है, उसके पास मुद्दों की कमी नहीं थी।
सरकार को विभिन्न विषयों पर उलझाने के प्रचुर अवसर थे, फिर भी जिस ‘बंधे हाथ’ और ‘बंद मुंह’ वाली स्थिति का कांग्रेस ने प्रदर्शन किया, वह बताता है कि इस दल को 2018 का नतीजा दोहराने के लिये बहुत पसीना बहाने की आवश्यकता है।
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