राकेश दुबे।
मध्यप्रदेश की राजनीति किस मोड़ पर जा रही है, लगता है बदलाव की बयार गलत दिशा में बहने लगी है। ऐसा भी होने लगा है जिसकी उम्मीद नहीं थी। भाजपा अभी तक चेतना शून्य है, एक अकेले शिवराज ही मोर्चे पर डटे हैं और उनका आत्म विश्वास भी छीजता दिख रहा है। मध्यप्रदेश के खंडित जनादेश को वे “लंगड़ी-सरकार” मान रहे हैं, सच मायने में सरकार की इस दिव्यान्गता में उनकी भी भागीदारी है। उनके दल के भीतर और बाहर उनका विरोध हो रहा है।
दल के भीतर जो चेहरे चुनौती के रूप में खड़े है.उनके कद को मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज जी ने ही कहाँ बड़ने दिया था।
अब शिवराज का नाम जिस पत्थर पर खुदा था उसे भी मिटाने की कोशिश हो रही है। विरोध के इस तरीके के विरोध में भाजपा की सुस्ती बता रही है आज उस दूसरी पंक्ति की जरूरत है जो पिछले १५ सालों में तैयार नहीं होने दी गई। भाजपा में होने वाले बदलाव साफ़ दिख रहे हैं।
खुद शिवराज सिंह चौहान ने स्वीकार किया है की जनता का जुडाव भाजपा के साथ था तो अब उनका लंगड़ी सरकार का विशेषण खुद पर ही सवाल है। भाजपा हाईकमान ने उन्हें चुनाव के पूर्व, चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद भी मनमर्जी करने दी। वे ही तेज़ कदमो से चले और साथियों ने ही कदम नहीं मिलाये जिससे ताल बिगड़ गई। इस बिगड़ी ताल से चाल बदली और “दिव्यांग जनादेश” आ गया।
अब उनका यह कहना कि मध्य प्रदेश में किसी के पास बहुमत नहीं है। कांग्रेस की सरकार लंगड़ी है। वे चाहते तो हम भी सरकार बना सकते थे, पर जब भी बनाएंगे पूर्ण बहुमत के साथ। उनका कहना है “मैं लंगड़ी सरकार नहीं बनाऊंगा।“
इसका अब कोई अर्थ नहीं रह जाता। तब उनका “मैं” जागा हुआ था और उसी अहं को प्रदेश की जनता ने आईना दिखा दिया और अब भी जो अक्स उभर रहे हैं, वे भी स्याह है।
शिवराज का यह कहना कि नेता प्रतिपक्ष के लिए मेरा नाम नहीं चल रहा है, सही नहीं है। यह सही है, मध्य प्रदेश की विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष कौन होगा? इसका फैसला पार्टी ही करेगी। पर उन्हें यह मुगालता दूर कर लेना चाहिए कि वे ही भाजपा हैं।
जैसे चुनाव के दौरान वे ही सरकार थे, वे ही सन्गठन थे। अब भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं से लोकसभा चुनाव में जुटने का किया आह्वान किया। शिवराज तब ही चार महीने में हिसाब तभी चुकता कर सकेंगे, जब उनके साथ कार्यकर्ता जुटेंगे।
वैसे नेता प्रतिपक्ष के लिए शिवराज सिंह चौहान का नाम सबसे आगे चल रहा है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह और प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे को नेता प्रतिपक्ष चुनने की जिम्मेदारी सौंपी है। शिवराज सिंह को अब अपनी शक्ति सन्गठन में लगाना चाहिए, ऐसा भाजपा के उन लोगों का मानना है, जो पिछले सालों में घर बैठा दिए गये है।
ये घर बैठे नेता हबीबगंज रेलवे क्रॉसिंग के पास सावरकर सेतु पर लगी उद्घाटन शिला (पट्टिका) पर से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम को पेंट से पोत दिए जाने से भी दुखी हैं, वे इसे राजनीति का घटिया दौर मान रहे हैं। हालांकि कांग्रेस ने शिलापट्टिका में पेंट करने की कड़ी निंदा की है। पर शक की सुई बदलाव की राजनीति पर ही टिकती है।
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