राकेश दुबे।
अमृत महोत्सव अपनी भूमिका से इतर पक्ष और प्रतिपक्ष और कांग्रेस ने ई डी प्रवर्तन निदेशालय ] की कार्यवाही का नारा लगा कर महंगाई और बेरोज़गारी के मुद्दे पर प्रदर्शन किया.
कांग्रेस का ई डी से कितना सम्बन्ध है और कैसा सम्बन्ध है किसी से छिपा नहीं है.
एन डी ए भारतीय जनता पार्टी जिसका का प्रमुख घटक होकर सरकार पर काबिज है] वो ई डी का कैसे और कितना इस्तेमाल कर रही है] यह भी किसी से छिपा नहीं है.
सब जानते हैं पक्ष और प्रतिपक्ष इस समय जो भी कर रहे हैं वो लोकतंत्र में उनकी भूमिका नहीं है.
क्योंकि दोनों तरफ पारदर्शिता का अभाव है.
कोई नेशनल हेराल्ड संव्यवहार पर से पर्दा उठाना चाहता है तो कोई उसे महंगाई और बेरोज़गारी के मुद्दे में ढंकना चाहता है.
पक्ष प्रतिपक्ष की इस नूराकुश्ती में जनता का पक्ष गायब हो गया है.
कांग्रेस सांसदों ने कल काले कपड़े पहनकर प्रदर्शन किया था, प्रतिपक्ष के प्रदर्शन दिल्ली में होते रहे हैं.
इस बार जनता के मुद्दों के बहाने कांग्रेस ने अपने गुस्से के केंद्र में ई डी को रखा .
कहने को कांग्रेस ने संसद से राष्ट्रपति भवन तक जाने के लिए मार्च निकाला था, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी मार्च में शामिल हुए थे.
हालांकि मार्च को विजय चौक पर रोक दिया गया और सांसद वहीं धरने पर बैठ गए.
इसके बाद पुलिस ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया गया था, जिन्हें बाद में हमेशा की तरह रिहा कर दिया गया.
वैसे लोकतंत्र का मूल चरित्र होता है पक्ष और प्रतिपक्ष के सहयोग-सामंजस्य से शासन चलाना.
भारी बहुमत से हासिल सत्ता के ये मायने कदापि नहीं हैं कि प्रतिपक्षी दलों की आवाज को कमजोर किया जाये। '
उन्हें वित्तीय अनियमितताओं पर अंकुश लगाने के लिये बनी केंद्रीय एजेंसियों के जरिये दबाया जाये।
यह कोई नई प्रवृत्ति नहीं है और विगत में कई केंद्र में आसीन सरकारों पर भी इन सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप प्रतिपक्ष द्वारा गाहे-बगाहे लगाये जाते रहे हैं।
बात केवल इतनी ही कि ऐसे कानूनों व एजेंसियों के दुरुपयोग के मामलों की संख्या में कुछ अंतर रहा है।
इन दिनों प्रवर्तन निदेशालय की अति सक्रियता को लेकर प्रतिपक्ष मुखर है, उसका आरोप है कि गैर-भाजपा वाली राज्य सरकारों व उनके नेताओं को ही निशाना बनाया जाता है।
जबकि भाजपा शासित राज्यों में किसी नेता पर कार्रवाई होती नजर नहीं आती, यही वजह कि हाल ही में ईडी के अधिकारों को लेकर आए शीर्ष अदालत के फैसले पर प्रतिपक्षी दलों ने निराशा जतायी है।
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस समेत 17 प्रतिपक्षी दलों ने साझा बयान जारी करके प्रवर्तन निदेशालय को मिले अधिकारों पर सवाल उठाकर धनशोधन निवारण कानून यानी पीएमएलए की समीक्षा की भी मांग की है।
प्रतिपक्ष का मानना है कि ईडी को मिले अधिकारों पर शीर्ष अदालत के फैसले से केंद्र सरकार की मनमानी बढ़ेगी।
कालांतर सरकारें मनमाने व्यवहार करेंगी और भारतीय लोकतंत्र में उसके दूरगामी परिणाम होंगे।
प्रतिपक्ष का कहना है कि कोर्ट के फैसले में धनशोधन निवारण कानून में किये गये संशोधनों को यथावत रखा गया है। इन संशोधनों की व्यापक पड़ताल की जरूरत थी।
दरअसल, विपक्षी दलों को आशंका है कि ईडी के अधिकारों को मान्यता से केंद्र सरकार की राजनीतिक प्रतिशोध की प्रवृत्ति बढ़ेगी।
बड़े बहुमत से सत्ता में लगातार दूसरी बार आई भाजपा की केंद्र सरकार पर प्रतिपक्ष बदले की भावना से कार्रवाई करने का आरोप लगाता रहा है.
महाराष्ट्र में पूर्व सरकार के मंत्रियों व नेताओं के अलावा पश्चिम बंगाल आदि में प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी को प्रतिपक्ष राजनीतिक दुराग्रह की कार्रवाई के रूप में देखता है.
कांग्रेस नेशनल हेराल्ड मामले को ऐसा ही बनाना चाहती है , जबकि कांग्रेस को पारदर्शिता अपनाने की जरुरत है .पार्टी अपनी बला दिवंगत नेताओं के मत्थे मढ़ रही है .
कल का सारा प्रदर्शन जनता के मुद्दों से ज्यादा कांग्रेस के दो शीर्ष नेताओं से हुई पूछताछ और फिर नेशनल हेराल्ड के प्रतिष्ठानों पर छापेमारी के राजनीतिक दुराग्रह में छिप गया .
यंग इंडियन के दफ्तर को सील करने की यह तीखी प्रतिक्रिया थी. वैसे ऐसी कार्रवाई करते समय केंद्रीय एजेंसियों को अपनी विश्वसनीयता का ख्याल भी रखना चाहिए.
जैसे कि शीर्ष अदालत कई बार सीबीआई को पिंजरे के तोते की संज्ञा देकर उसकी विश्वसनीयता का प्रश्न उठाती रही है.।
सरकारें तो आती-जाती रहती हैं लेकिन लोकतंत्र की विश्वसनीयता व कानून की व्यवस्था के अनुपालन के लिये इन एजेंसियों को नीर-क्षीर विवेक से काम लेना चाहिए.
इस कार्रवाई की विश्वसनीयता व तार्किकता से देश की जनता को भी सहमत होना चाहिए।
निस्संदेह, देश में भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिए, लेकिन कोई कार्रवाई राजनीतिक दुराग्रह से प्रेरित नहीं होनी चाहिए .
अन्यथा जनादेश से होने वाले बदलाव के बाद फिर इसी तरह दुराग्रह से कार्रवाई का सिलसिला चलता रहेगा.
यह विडंबना ही है कि विपक्ष में रहते हुए जो राजनीतिक दल जिन एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते रहे हैं, वे सत्ता में आने के बाद उसी तरह के कृत्यों को अंजाम देने लगते हैं.
जिससे आम आदमी को समझ नहीं आता कि कौन सच कह रहा है और कौन झूठ।
निस्संदेह, ऐसी कार्रवाई से देश में बदले की राजनीति को ही प्रश्रय मिलेगा। जो स्वस्थ लोकतंत्र के हित में नहीं कहा जा सकता।
स्वस्थ लोकतंत्र में पारदर्शिता अनिवार्य अंग है, पक्ष और प्रतिपक्ष को इसका पालन सबसे पहले और अनिवार्य रूप से करना चाहिए |
Comments