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राहुल गाँधी की छवि अब खुद के हाथ में,भाजपा-कांग्रेस को अपनी नई छवि बनानी होगी

राजनीति            Dec 15, 2018


राकेश दुबे।
हाल ही में सम्पन्न विधानसभा चुनाव के नतीजों ने दो महत्वपूर्ण बातें प्रमाणित की हैं। पहली, नरेंद्र मोदी की कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना का हवा हो जाना और दूसरी राहुल गाँधी की दम-खम का पता लगना।

वास्तव में लोकतंत्र में किसी एक दल से युक्ति और प्रतिपक्ष से मुक्ति की बात उठाना आपका लोकतंत्र में अनास्था का प्रतीक है। कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने का सपना इतनी बदमजा बात है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी उससे खुद को अलग कर लिया था। इन चुनावों ने कांग्रेस मुक्त भारत का यह स्वप्न तोड़ दिया है।

यह सही है कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनावों में 44 सीटों तक सिमट गई थी, लेकिन उस बदहाली में भी उसे 10.7 करोड़ मतदाताओं का साथ मिला था, इसके विपरीत भाजपा को 17 करोड़ मत मिले थे। अपने सबसे बदतर प्रदर्शन करने की हालत में भी 10.7 करोड़ लोगों का समर्थन रखने वाली पार्टी को आप यूँ ही खत्म नहीं कह सकते हैं और न कर सकते हैं।

हालत यह है कि पिछले एक साल में भाजपा के सामने कांग्रेस-युक्त गुजरात की स्थिति बनी और अब तो समूचा हिंदी हृदय-स्थल ही कांग्रेस के नेतृत्व में आ चुका है। भाजपा को समय रहते अपनी इस अवधारणा को बदल लेना चाहिए। लोकतंत्र में मतदाताओं को ज्यादा भ्रमित नहीं किया जा सकता।

अब राहुल गाँधी इन विधानसभा चुनावों और उसके बाद की गतिविधियों ने राहुल गाँधी की एक नई छबि गढ़ी है। अब राहुल गांधी को किसी उपहास की तरह नहीं लिया जा सकता। इन चुनावों ने राहुल को एक राजनीतिक नेता के तौर पर मान्यता दे दी है। जो उनकी और उनकी पार्टी की मेहनत और प्रतिबद्धता का नतीजा है।

राहुल और उनके परिवार अर्थात कथित गाँधी परिवार की आलोचना राजवंशीय मद और विदेशी मूल के होने की उस धारणा पर की जाती रही है, जिसका अब कोई अर्थ भारतीय राजनीति में शेष नहीं है।

सही मायने में यह धारणा राहुल गाँधी के जब तक उदासीन नजर आने और अचानक गुम हो जाने से बनी थी और यह स्थाई आरोप का शक्ल लेती, उसके पूर्व इसमें हुआ सुधार कारगर रहा। अब समय और कांग्रेस उन्हें सच्चे और देसी सपूत की तरह मानेगा।

2019 में यही छबि नरेंद्र मोदी के सामने खड़ी होगी। भारत का मतदाता और विशेषकर युवा मतदाता वंशवाद के अहसास से नफरत करता है। इन चुनावों में राहुल गाँधी ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की।

राहुल अधिक विनम्र, पहुंच के भीतर वाले शख्स, कम हकदार और अधिक सकारात्मक नजर आए हैं।

अब प्रश्न इन दोनों विषयों के स्थायित्व का है। भारतीय जनता पार्टी का अति आत्म विश्वास जो अहंकार के अंतिम पायदान की ओर जा रहा था नीचे खिसक गया है।

कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना भाजपा भले ही आगे अपनी खुशफहमी की तरह कायम रखने की बात करे, मतदाता ने इस सिद्धांत को नकार दिया है। उसकी रूचि लोकतंत्र में थी और रहेगी।

राहुल गाँधी की छवि अभी खुद उनके हाथ में है। मतदाता ने कांग्रेस और राहुल के साथ न्याय किया है। अब भाजपा और कांग्रेस को अपनी नई छवि बनानी होगी, जिसमें वादों और इरादों की जगह देश दिखे। राष्ट्र हमेशा प्रथम होना चाहिए।

 


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