2023 के सत्य को देखने की कसमसाहट से परिपूरित शिवराज

राजनीति            Mar 28, 2022


प्रकाश भटनागर।
सतपुड़ा की रानी पचमढ़ी (Pachmarhi) में अलग-अलग ठिकानों से सूर्योदय और सूर्यास्त (Sunrise and sunset) को देखना बेहद सुखद अनुभव होता है।

बस इतना है कि आपकी नजरों को इन नजारों का दीदार करने के लिए खासी ऊंचाई वाली जगहों पर जाना होता है।

ऊंचाई अक्सर किसी दृश्य को स्पष्टता देने में मददगार साबित होती है। फिर चाहे मामला कलिंग के उस विशाल टीले का ही क्यों न हो, जिस पर चढ़कर सम्राट अशोक ने नीचे लाशों से भरे युद्धस्थल को देखा था।

देश के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा (Astronaut Rakesh Sharma) ने उस ऊंचाई पर बैठकर भारत को ‘सारे जहां से अच्छा’ दिख रहा बताया था। टीले की ऊंचाई से अशोक ने सत्य देखा और अंतरिक्ष से शर्मा ने उस कथ्य की नजर से भारत (India) को देखा, जो कभी अल्लामा इक़बाल (allama iqbal) ने लिखा था।

पचमढ़ी में सतपुड़ा की पहाड़ियों तथा घने जंगलों के बीच शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) के मंत्रिमंडल (cabinet) की दो दिन की ख़ास बैठक राज्य सरकार के सूर्योदय जैसे उजले पक्ष तथा सूर्यास्त जैसी किसी स्थिति के अवलोकन के हिसाब से बहुत मायनेखेज रही।

यहां शिवराज उस सत्य को देखने की कसमसाहट से परिपूरित रहे हैं, जो यह बताएगा कि वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव (2023 assembly elections) में भाजपा (BJP) के लिए किस तरह की परिस्थितियां आकार ले रही हैं।

कथ्य के सन्दर्भ में बात करें तो शिवराज हमेशा ही सकारात्मक दिखते हैं। पचमढ़ी के लिए रवाना हुई बस में शिवराज ने मंत्रियों से किसी बेबस भाव का प्रकटीकरण नहीं किया। वह आत्मविश्वास से लबरेज दिखे।

चौहान ने उन कार्यक्रमों का रेखाचित्र खींचा, जो उनके मुताबिक़ मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) को देश भर में एक ख़ास पहचान प्रदान कर देंगे।

योजना और कार्यक्रम ही नहीं, बल्कि उन पर अमल के लिहाज से भी शिवराज राज्य में अपने लगभग सभी पूर्ववर्तियों से काफी आगे हैं। इसका एक पक्ष यह भी है कि उन्हें CM के तौर पर राज्य में सबसे अधिक समय तक काम करने का अवसर भी मिला है।

इससे भी अधिक महत्वपूर्ण पक्ष यह कि चौहान ने नवाचार पर सर्वाधिक जोर दिया है। उनकी उपलब्धियों के खाते के वृहद आकार में इसी बात का सबसे बड़ा योगदान रहा है। लेकिन अब चुनौती और अधिक बड़ी है।

राज्य का कमजोर विपक्ष अगले साल तक भी यूं ही कमजोर रहेगा, ये धारणा नितांत बचकानी होगी। पांच राज्यों के चुनाव में हार के बाद कांग्रेस (Congress) ने संगठन में सुधार तथा बदलाव की कवायद शुरू कर दी है और निश्चित ही यह प्रक्रिया मध्यप्रदेश में भी अपनाई जाएगी।

यह ऐसे समय होने जा रहा है, जब राज्य में भाजपा का संगठन चुनाव के हिसाब से और अधिक तैयार होता जा रहा है। ‘शिवराज हैं ना’ वाली अवधारणा वर्ष 2018 के चुनावी परिणामों के पहले इस संगठन के सत्व को चूस चुकी थी, किन्तु आज भाजपा का यही मेरुदंड पुनः शक्तिशाली हो चुका है।

वरना तो बीते साल हुए पांच सीटों के उपचुनाव (by-elections for five seats) में जिस तरह शिवराज को पूरी ताकत झोंकना पड़ी थी, उससे यह लगने लगा था कि दल और सरकार के स्तर पर भाजपा की मजबूत दीवारें कुछ दरकने लगी हैं।

स्थिति में बहुत सुधार के बाद भी यह सही है कि इन दरारों को कैसे पूरी तरह पाटा जाए, यह इस समय राज्य में भाजपा के लिए बहुत बड़ा प्रश्न है।

जाहिर है कि पचमढ़ी की वादियों से बाहर आने के बाद शिवराज को इस स्थिति की तरफ भी दृष्टिपात करना होगा। वह भी तब, जबकि संगठन को पुरानी ताकत के साथ खड़ा करने के लिए चुनाव के लिहाज से काफी कम समय बचा है।

इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि पचमढ़ी में मंत्रियों के प्रजेंटेशन (Ministers’ Presentations) भर से बात नहीं बन जानी है। क्योंकि यह प्रोसेस तो शिवराज कई बार करवा चुके हैं। अब तो उस प्रजेंटेशन की घड़ी नजदीक आ चुकी है, जो प्रदेश की जनता ईवीएम के जरिये देगी। इसलिए यह संभव है कि अब शिवराज अपने मंत्रियों को होमवर्क दे दें।

चौथे कार्यकाल में चौहान के बदलाव किसी से छिपे नहीं हैं। लेकिन अब इसी बदलाव का सूर्योदय मंत्रिमंडल के भीतर भी करना होगा। सतपुड़ा की पहाड़ियों में इसी सूर्योदय की खोज कितनी सफल होगी, इस का उत्तर समय ही देगा। बाकी सूर्यास्त किसके नाम लिखा है, इसका उत्तर अगले साल जान लीजिएगा।

 



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